दिल्ली सल्तनत के दौरान फारसी साहित्य के विकास के कारण
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मंगोल आक्रमणों के कारण मध्य एशिया से विद्वानों का भारत की ओर प्रवासन।
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भारत में कई शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना।
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दिल्ली सल्तनत की राजनीतिक स्थिरता।
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इस्लामी इतिहासलेखन की परंपरा।
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कागज़ के व्यापक उपयोग से लेखन और संरक्षण में सहूलियत।
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शासकों की व्यक्तिगत रुचि और संरक्षण।
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फारसी भाषा का राजकीय भाषा होना, जिससे यह रोजगार का मुख्य माध्यम बनी।
क. ऐतिहासिक रचनाएँ
1. हसन निज़ामी – ताज-उल-मासिर
हसन निज़ामी भारत में मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के दौरान आए। उन्होंने 1205 ई. में ताज-उल-मासिर लिखना शुरू किया। यह ग्रंथ 1192 से 1218 ई. तक के सैन्य अभियानों का वर्णन करता है और इन अभियानों में अपनाई गई नीतियों को स्पष्ट करता है। इसमें तत्कालीन महत्वपूर्ण स्थानों, त्योहारों और मनोरंजन के साधनों का भी उल्लेख है। यह प्रारंभिक सल्तनत काल के सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन की महत्त्वपूर्ण जानकारी देता है। हालांकि, इसकी कुछ बातें अस्पष्ट और भ्रमित करने वाली हैं। जैसा कि यू. एन. डे कहते हैं – "यद्यपि पुस्तक की भाषा अत्यंत कलात्मक और अलंकारिक है, फिर भी इसके द्वारा दी गई सामान्य जानकारी प्रायः सत्य प्रतीत होती है।"
2. मिन्हाज-उस-सिराज – तबक़ात-ए-नासिरी
1260 ई. में पूर्ण हुई यह कृति मुहम्मद गौरी के भारत विजय से लेकर 1260 तक की घटनाओं को समेटती है। यह ममलूक (गुलाम) वंश की गतिविधियों का प्रत्यक्षदर्शी विवरण देती है। लेखक बलबन की अत्यधिक प्रशंसा करते हैं और इल्तुतमिश तथा अन्य शासकों के प्रति पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण अपनाते हैं। फिर भी, इसकी कालानुक्रमिक सटीकता और समकालीन सामाजिक-आर्थिक स्थिति के विस्तृत वर्णन के कारण यह एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्रोत है।
3. अमीर खुसरो – ऐतिहासिक रचनाएँ
अमीर खुसरो (1253–1325 ई.), उत्तर प्रदेश के पटियाली (इटावा) में जन्मे, मध्यकाल के प्रमुख इतिहासकार और कवि थे। वे कई सुल्तानों के दरबारी थे और युद्ध अभियानों में सक्रिय भाग लेते थे। उनकी ऐतिहासिक रचनाएँ हैं:
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(i) किरान-उस-सअदैन (1289 ई.) – बुगरा ख़ाँ और उनके पुत्र क़ैक़ुबाद की मुलाकात का वर्णन; तत्कालीन दिल्ली के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का चित्रण।
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(ii) मिफ़्ताह-उल-फ़तूह (1291 ई.) – जलालुद्दीन खिलजी की प्रारंभिक विजयों, विशेष रूप से मलिक छज्जू के विद्रोह की पराजय का उल्लेख।
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(iii) आशिका (1316 ई.) – ख़िज्र ख़ाँ (अलाउद्दीन खिलजी के पुत्र) और देवळ देवी (गुजरात के राजा कर्ण की पुत्री) की प्रेम कथा; बाद की घटनाओं में ख़िज्र ख़ाँ की हत्या, अलाउद्दीन की बीमारी और मलिक काफूर का उदय शामिल।
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(iv) नुह सिपेहर – कुतुबुद्दीन मुबारक शाह को समर्पित, इसमें भारत की जलवायु, वनस्पति, जीव-जंतु, धार्मिक विश्वास और रीति-रिवाजों का विवरण है।
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(v) ख़ज़ाइन-उल-फ़तूह (तारीख़-ए-अलायी) (1311 ई.) – अलाउद्दीन खिलजी के शासन के पहले 15 वर्षों का वर्णन, उसकी विजय, आर्थिक सुधार और स्थापत्य कार्य। इसमें जलालुद्दीन की हत्या का कोई उल्लेख नहीं है।
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(vi) तुग़लक़नामा – अमीर खुसरो की अंतिम ऐतिहासिक कविता, जिसमें ख़ुसरो ख़ाँ के पतन और ग़ियासुद्दीन तुग़लक़ के राज्यारोहण का वर्णन है।
4. ज़ियाउद्दीन बरनी
बरनी (1285–1357 ई.) तुग़लक काल के प्रमुख इतिहासकार थे, हालांकि वे व्यक्तिगत और धार्मिक दृष्टिकोण से पक्षपाती थे। उनके चाचा अलाउल मुल्क, अलाउद्दीन खिलजी के शासन में दिल्ली के कोतवाल थे। उनकी रचनाएँ:
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(i) तारीख़-ए-फ़िरोज़शाही (1359 ई.) – खिलजी और तुग़लक वंश का पूर्ण इतिहास; इसमें राजनीतिक घटनाओं, सामाजिक एवं आर्थिक सुधारों, न्याय प्रणाली, शिक्षा और समकालीन विद्वानों का वर्णन मिलता है।
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(ii) फ़तवा-ए-जहाँदारी – इस्लामी शासन के सिद्धांतों पर आधारित राजनैतिक निबंध, जिसे फिरोज तुग़लक को संबोधित किया गया था। इसमें ग़ज़नी के महमूद को आदर्श शासक बताया गया है।
5. शम्स-ए-सिराज अफीफ़ – तारीख़-ए-फ़िरोज़शाही
1350 ई. में अबू हार में जन्मे अफीफ़ दीवान-ए-वज़ारत में कार्यरत थे और दरबारी हलकों में उनकी पहुँच थी। उनकी रचना बरनी की कृति के बाद शुरू होती है और 1357 से 1388 ई. तक फिरोज तुग़लक के शासनकाल को कवर करती है। इसमें 90 अध्याय हैं, जो अभियान, प्रशासनिक सुधारों, धार्मिक नीतियों और दरबारियों की जीवनी को दर्शाते हैं।
6. फतूहात-ए-फ़िरोज़शाही – फ़िरोज़ शाह तुग़लक द्वारा
फ़िरोज़ तुग़लक द्वारा रचित यह आत्मकथात्मक कृति उनके प्रशासन, धार्मिक नीतियों और सैन्य उपलब्धियों का सार देती है। यद्यपि यह संक्षिप्त है, फिर भी इसका समकालीन महत्व अत्यधिक है।
7. अबू बक्र इसामी – फतूह-उस-सलातीन
इसामी इल्तुतमिश के समय भारत आए और 1349 ई. में यह काव्यात्मक इतिहास पूर्ण किया। इसे शाहनामा-ए-हिंद भी कहा जाता है। इसमें ग़ज़नवी से लेकर मुहम्मद बिन तुग़लक तक के शासकों का विवरण है। यह अलाउद्दीन हसन बहमनी को समर्पित है। इसामी ने अलाउद्दीन खिलजी के शासन की सराहना की है और मुहम्मद तुग़लक की राजधानी परिवर्तन नीति की आलोचना की है, जिसने लेखक को भी प्रभावित किया।
8. याह्या बिन अहमद सिरहिंदी – तारीख़-ए-मुबारकशाही
यह कृति 1388 से 1434 ई. तक की घटनाओं का वर्णन करती है, विशेष रूप से फ़िरोज़ तुग़लक की मृत्यु के बाद सल्तनत के पतन और तैमूर के आक्रमण के परिणामों का। इसे कालानुक्रमिक रूप से लिखा गया है और सैय्यद वंश के शासक मुबारक शाह को समर्पित है, जो लेखक के मित्र थे।
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