रजिया सुलतान भारतीय इतिहास की प्रथम और अब तक की सबसे प्रभावशाली महिला शासकों में से एक थीं। इल्तुतमिश की सबसे योग्य उत्तराधिकारी मानी जाने वाली रजिया ने 1236 ई. में दिल्ली की गद्दी संभाली और लगभग चार वर्षों तक शासन किया। उनके शासनकाल ने न केवल राजनीतिक कुशलता और प्रशासनिक दक्षता का परिचय दिया, बल्कि उस युग के सामाजिक और सांस्कृतिक विरोधाभासों को भी उजागर किया। हालांकि, रजिया का शासनकाल अनेक चुनौतियों और षड्यंत्रों से भरा रहा। उनके पतन के पीछे के कारण बहुआयामी थे, जिनमें व्यक्तिगत, सामाजिक, और राजनीतिक तत्व शामिल थे।
1. रजिया का स्त्री होना
रजिया का सबसे बड़ा दोष, जो उनकी असफलता का मूल कारण बना, उनका महिला होना था। मध्यकालीन भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति गहरे पूर्वाग्रह थे। पुरुष-प्रधान तुर्की अमीर और दरबार के सरदार एक महिला के अधीन काम करने को अपमानजनक मानते थे। रजिया ने पर्दा प्रथा का त्याग कर, पुरुषों जैसे वस्त्र धारण किए और खुले तौर पर सत्ता का प्रदर्शन किया। उनके इस साहसिक कदम ने न केवल तुर्की अमीरों के अहंकार को ठेस पहुँचाई, बल्कि उन्हें विद्रोह के लिए प्रेरित भी किया। यदि रजिया पुरुष होतीं, तो उन्हें ऐसी चुनौतियों का सामना शायद न करना पड़ता और उनकी राजनीतिक दक्षता को अधिक मान्यता मिलती। मिनहाज के मतानुसार रजिया ने तीन वर्ष, पाँच माह और छः दिन शासन किया था, वह रजिया के गुणों की प्रशंसा करता है। उसने लिखा है कि, “सुल्तान रजिया एक महान् शासक थी—बुद्धिमान, न्यायप्रिय, उदारचित्त और प्रजा की शुभचिन्तक, समदृष्टा, प्रजापालक और अपनी सेनाओं की नेता, उसमें बादशाही के समस्त गुण विद्यमान थे—सिवाय नारीत्व के और इसी कारण मर्दों की दृष्टि में उसके सब गुण बेकार थे।”
2. तुर्की अमीरों का स्वार्थ और शक्ति का संघर्ष
रजिया के शासनकाल में तुर्की अमीरों की शक्ति अपने चरम पर थी। इन अमीरों ने ग़ुलाम वंश के सुल्तानों के शासनकाल में अपनी स्वायत्तता और विशेषाधिकार प्राप्त किए थे। रजिया ने इस शक्ति को सीमित करने का प्रयास किया, जिससे वे उनके खिलाफ हो गए।
- इख्तियारूद्दीन एतिगीन जैसे शक्तिशाली अमीरों ने संगठित होकर षड्यंत्र रचा।
- पंजाब के गर्वनर कबीर खाँ अयाज और भटिण्डा के मलिक अल्तूनिया जैसे क्षेत्रीय शासकों ने भी विद्रोह किया।
- तुर्की अमीरों का यह स्वार्थ और संगठित षड्यंत्र रजिया के पतन का एक बड़ा कारण बना।
3. इस्माइलिया मुसलमानों का विद्रोह
दिल्ली सल्तनत में इस्माइलिया मुसलमानों का उदय एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया था। इन मुसलमानों ने सुल्तान के खिलाफ षड्यंत्र रचा, लेकिन रजिया ने कुशलता से उनका विद्रोह दबा दिया। हालांकि, इस संघर्ष ने सुल्तान और प्रजा के बीच संबंधों को कमजोर कर दिया।
4. निजमुल मुल्क जुनैदी का वध
ग्वालियर के हाकिम निजामुल मुल्क जुनैदी को रजिया ने 1238 ई. में दिल्ली बुलाया। जुनैदी के लापता होने और उसकी हत्या की अफवाहों ने तुर्की अमीरों में रजिया के प्रति घृणा और संदेह को बढ़ा दिया।
- तुर्की अमीरों ने इसे विश्वासघात माना और धीरे-धीरे रजिया के खिलाफ षड्यंत्र रचने लगे।
- इस घटना ने रजिया की राजनीतिक स्थिति को कमजोर कर दिया।
5. याकूत के प्रति विशेष लगाव
रजिया के पतन में उनके अबीसीनियाई हब्शी गुलाम जमालुद्दीन याकूत के प्रति विशेष अनुराग ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- रजिया ने याकूत को अमीर-ए-आखूर (घुड़साल का अध्यक्ष) नियुक्त किया और उसे दरबार में प्रमुख स्थान दिया।
- याकूत के साथ उनके संबंधों को लेकर दरबार और जनता में अपवाद फैल गया।
- यह बात तुर्की अमीरों को गहरी चोट पहुँचाने वाली थी, क्योंकि वे स्वयं को उच्च रक्तवंशीय मानते थे।
- अंततः, याकूत का वध कर दिया गया और रजिया को बंदी बना लिया गया।
6. शम्सी तुर्क सरदारों का षड्यंत्र
रजिया पर यह आरोप लगाया गया कि वह शम्सी तुर्क सरदारों की शक्ति को समाप्त करना चाहती हैं। यह आशंका सरदारों को एकजुट होने के लिए पर्याप्त थी।
- पंजाब और भटिण्डा के शासकों ने विद्रोह किया।
- रजिया ने कई स्थानों पर विद्रोह दबाया, लेकिन यह विद्रोह पूर्णतः समाप्त नहीं हुआ।
- इस षड्यंत्र और विद्रोह ने रजिया की सत्ता को कमजोर किया।
7. जनता का सहयोग न मिलना
मध्यकालीन समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक विभाजन स्पष्ट था।
- मुस्लिम प्रजा ने कट्टरपंथी इस्लामी परंपराओं के कारण रजिया का समर्थन नहीं किया।
- हिन्दू प्रजा से समर्थन मिलना पहले से ही असंभव था क्योंकि तुर्की शासक विदेशी और विधर्मी माने जाते थे।
- जनता के समर्थन के अभाव ने रजिया को अकेला और कमजोर बना दिया।
8. इल्तुतमिश के अन्य पुत्रों का जीवित रहना
इल्तुतमिश के अन्य पुत्रों, विशेष रूप से बहरामशाह, का जीवित रहना रजिया के लिए घातक सिद्ध हुआ।
- षड्यंत्रकारियों ने इन राजकुमारों का उपयोग रजिया के विरुद्ध किया।
- अंततः, बहरामशाह को गद्दी पर बैठाकर रजिया को पदच्युत कर दिया गया।
9. केन्द्रीय सरकार की दुर्बलता
दिल्ली सल्तनत उस समय अपने शैशव काल में थी।
- प्रांतीय शासक और हाकिम स्वतंत्र रूप से कार्य करते थे।
- केन्द्रीय सरकार इन पर अपना प्रभाव स्थापित करने में असमर्थ रही।
- इन प्रांतीय शासकों के विद्रोह और षड्यंत्र ने रजिया को कमजोर किया।
10. रजिया की हत्या
भटिण्डा के गर्वनर मलिक अल्तूनिया के विद्रोह के बाद रजिया को बंदी बना लिया गया।
- अल्तूनिया से विवाह कर रजिया ने अपनी स्थिति सुधारने का प्रयास किया।
- उन्होंने दिल्ली की गद्दी वापस पाने का प्रयास किया, लेकिन बहरामशाह की सेना के सामने पराजित हो गए।
- भागते समय, कैथल के निकट कुछ लुटेरों ने रजिया और अल्तूनिया की हत्या कर दी।
निष्कर्ष
रजिया सुलतान का शासनकाल भारतीय इतिहास में साहस, नेतृत्व, और संघर्ष का प्रतीक है।
- उनकी असफलता का मुख्य कारण मध्यकालीन समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता, तुर्की अमीरों की स्वार्थपरता, और राजनीतिक षड्यंत्र थे।
- यद्यपि रजिया अपने समय से आगे की सोच वाली शासक थीं, लेकिन तत्कालीन राजनीतिक और सामाजिक संरचना में उनके लिए टिक पाना असंभव था।
- रजिया की असफलता का विश्लेषण करते हुए यह स्पष्ट होता है कि वह अपनी व्यक्तिगत योग्यताओं के बावजूद समाज की रूढ़ियों और राजनीतिक षड्यंत्रों के चलते पराजित हो गईं।
रजिया का पतन न केवल एक सुल्तान का पतन था, बल्कि उस युग के सामाजिक और राजनीतिक पूर्वाग्रहों का भी प्रतीक है। उनका जीवन और संघर्ष आज भी इतिहास में प्रेरणा का स्रोत है।
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