1. प्रारंभिक उपलब्धियां
अ. सेना में उत्कर्ष
· जलालुद्दीन की पृष्ठभूमि तुर्क और अफगानी
सांस्कृतिक प्रभावों का मिश्रण था, क्योंकि उसका
परिवार हेलमंद घाटी (अफगानिस्तान) में दो शताब्दियों से बसा हुआ था।
· जलालुद्दीन के पूर्वज इल्तुतमिश के समय भारत में
आकार बसे तथा तुर्क सुल्तानों की सेवा में रहे.
· जलालुद्दीन ने बलबन के समय से सेना में नौकरी की
· बलबन इसकी योग्यता से प्रभावित हुआ तथा
पश्चिमोत्तर सीमा की सुरक्षा का दायित्व दिया.
· मंगोलों के विरुद्ध संघर्ष में इसने योग्यता का
परिचय दिया
· आगे चल कर इसने आरिज – ए – ममालिक अर्थात सैन्य
मंत्री का पद प्राप्त किया
ब. राजनीति में उत्कर्ष
·
कैकुबाद
का दौर
o
अपनी
मृत्यु के पूर्व बलबन ने अपने पौत्र कैखुसरो (मुहम्मद के पुत्र) को अपना
उत्तराधिकारी नियुक्त किया था किन्तु बलबन की मृत्यु के बाद दिल्ली के कोतवाल
फखरुद्दीन मुहम्मद ने एक षड्यंत्र रच कर कैखुसरो को मुल्तान की सुबेदारी देकर उसे
वहां भेज दिया तथा बुगरा खां के पुत्र कैकुबाद को सुलतान बना दिया.
o
कैकुबाद
की उम्र इस समय मात्र 17 या 18 वर्ष थी. कोतवाल फखरुद्दीन मुहम्मद के दामाद
निजामुद्दीन जो दादबेग अर्थात नगर अधिकारी था ने इसका लाभ उठा कर सुलतान को
भोगविलास की तरफ प्रेरित किया.
o
जलालुद्दीन
खल्जी इस समय सूमाना का सूबेदार था
o
निजामुद्दीन
अब नायब – ए – ममालकत बन गया और शासन के
सभी कार्य अपने अधिकार में ले लिया।
o
लखनौती
(बंगाल) में कैकुबाद के पिता बुगरा खाँ को उसकी गतिविधियों के बारे में पता चला तो
वह विशाल सेना के साथ दिल्ली की ओर कूच किया। 1288 ई० में
अयोध्यामें घाघरा के निकट बुगरा खाँ व कैकूबाद की भेंट हुई।
o
बुगरा
खां ने कैकूबाद को अमोद-प्रमोद में जीवन न व्यतीत करने तथा निजामुद्दीन से पीछा
छुड़ाने की सलाह दी।
o
पिता
की सलाह पर कैकुबाद ने तुरन्त अमल किया तथा कुछ समय के लिए भोग विलास त्याग दिया।
उसने निजामुद्दीन को मुल्तान जाने को कहा किन्तु जब उसने टालमटोल किया तो उसे विष
दिलवाकर मरवा डाला।
o
निजामुद्दीन
के मृत्यु के साथ ही शासन अस्त-व्यस्त हो गया। अब शासन सत्ता दो तुर्क सरदारों
मुलिक कच्छन व मलिक सुर्खा के हाथों में चली गयी।
o
कैकूबाद
ने समाना से मलिक फिरोज खिल्जी (बाद में सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी) को बुलाया और
उसे बरन (बुलन्दशहर) का राज्यपाल तथा आरिज-ए-मुमालिक नियुक्त कर शाइस्ता खां की
उपाधि प्रदान की।
ब. क्यूमर्स
का दौर
o
जलालुद्दीन
की इस नियुक्ति से तुर्की सरदार असंतुष्ट हो गए। अब दरबारी सामन्तों का विरोध दो
प्रतिद्वन्द्वी दलों में परिवर्तित हो गया। एक का नेता मलिक फिरोज खिलजी
(जलालुद्दीन खिलजी) तथा दूसरे दल का लेता ऐतमूर सुर्खा था।
o
फिरोज
खिलजी के नेतृत्व वाला दल नए तत्वों का प्रभुत्व चाहता था जबकि दूसरा दल (सुर्खा
के नेतृत्व वाला) बलबन के वंशज को सत्तारूढ़ कर तुर्क सामंतों के हितों की रक्षा
करना चाहता था।
o
इस
बीच कैकबाद को फालिस मार दिया । तुर्की सरदारों ने अवसर का लाभ उठाकर, उसके तीन वर्षीय पुत्र क्यूमर्स को गद्दी पर बैठाया तथा शम्सुद्दीन
द्वितीय का खिताब दे कर नासिरी चबूतरे पर उसका राज्याभिषेक किया गया।
o
मलिक
कच्छन और सुर्खा ने शासन में तुर्की की श्रेष्ठ बनाए रखने के लिए सभी गैर तुर्क
सरदारों की कत्ल की योजना बनाई। इसमें सबसे पहला नाम जलालुद्दीन खिलजी का था। मलिक
कच्छन ने स्वयं जलालुद्दीन को मारने का उत्तदायित्व लिया। वह धोखे से उसे मारने के
लिए सुलतान से मिलने का आदेश दिया किन्तु जलालुद्दीन इस षड्यन्त्र को भांप गया और
कच्छन की हत्या कर दी।
o
तत्पश्चात्
जलालुद्दीन अपनी सेना के साथ दिल्ली में प्रवेश कर सुल्तान तथा कोतवाल फखरुद्दीन
के बच्चों को बंदी बना लिया। जलालुद्दीन ने फरूखद्दीन व मलिक छज्जू को सुल्तान का
संरक्षक बनने का प्रस्ताव रखा किन्तु दोनों ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। अन्त में
जलालुद्दीन स्वयं सुल्तान का संरक्षक बना।
o
परन्तु
तीन माह पश्चात् जलालुद्दीन ने क्यूमर्स की हत्या करवा दिया। कैकूबाद को एक खिलजी
सरदार ने उसी के चादर में लपेट कर यमुना नदी में फेंक दिया। इसी के साथ इल्बारी
वंश का अंतहो गया तथा खिलजी वंश के नाम से एक नया राजवंश सत्ता में आया।
·
सिंहासनारोहण
o
70
वर्ष की उम्र में जलालुद्दीन फिरोज का राजयारोहण 13 जून,
1290 ई० को कैकुबाद द्वार बनवाए गए अपूर्ण किलोखरी (कीलूगढ़) के महल
में हुआ। उसने एक वर्ष तक वही रहने का निश्चय किया क्योंकि दिल्ली की जनता इल्बारी
तुर्को के शासन की अस्सी वर्षों से अभ्यस्त हो चुकी थी। अतः वह एकाएक जलालुद्दीन
खिलजी के शासन को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी।
o
एक
वर्ष पश्चात् दिल्ली के कोतवाल एवं अन्य व्यक्तियों के आमंत्रण पर वह दिल्ली
पहुंचा। दिल्ली पहुंचकर वह बलबन के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट की तथा उसके सिंहासन
पर बैठने से इंकार किया।
o
उसने
अमीरों से भावविह्वल शब्दों में कहा “तुस जानते हो कि मेरे पूर्वजों में कोई
भी शासक नहीं था जिससे राजत्व का अभिमान और गौरव मुझे विरासत में मिलते। सुल्तान
बलबन यहाँ बैठते थे और मैंने उनकी सेवा की है। उस शासक के भय और गौरव को मेरे हृदय
ने अभी त्यागा नहीं है। यह महल बलबन ने बनवाया था जब वह खान था और यह उसकी, उसके पुत्रों एवं सम्बन्धियों की संपत्ति है।" इससे
दिल्ली की जनता एवं अमीर अत्यधिक प्रभावित हुए।
2. नीतिगत उपलब्धि : सत्ता का विस्तृत आधार
· जलालुद्दीन ने सभी तुर्की-सरदारों को संतुष्ट
करने की नीति अपनायी। उसने सभी तुर्को को सत्ताच्युत नहीं किया। शासन के
महत्वपूर्ण पदों पर विश्वासपात्र व्यक्तियों की नियुक्ति की।
· बलबन का भतीजा मलिक छज्जु को कड़ा मानिकपुर का
सुबेदार बनाया गया।
· फखरुद्दीन दिल्ली का कोतवाल बना रहा। ख्वाजा खतिर को वजीर रहने दिया गया।
· सुल्तान ने अपने सबसे बड़े पुत्र को खानखाना, दूसरे को अर्कलीखां व तीसरे को कद्रखां की उपाधियां दी।
· सुल्तान के छोटे भाई को यगरश खाँ की उपाधि तथा
अरीज-ए-मुमालिक बनाया गया।
· अपने भतीजे अलाउद्दीन व अलमास वेग को उच्च पद
प्रदान किया तथा अपने सम्बन्धी अहमद चप को अमीर-ए-हाजिब का पद दिया।
· जलालुद्दीन ने अपने कार्यों से शासन में एक नए
प्रकार की संकल्पना प्रस्तुत की जो मूलतः सभी समुदायों के लोगों की सद्भावना और
समर्थन पर आधारित थी।
· शासन में उसने अनावश्यक हस्तक्षेप व क्रूर नीति
त्याग दिया। उसके नीतियों के विषय मैं बरनी ने लिखा है कि,
"वह एक चींटी को भी नुकसान न पहुंचाने की नीति में विश्वास
करता था।" ।
· वह रक्तपात से घृणा करता था तथा शांतिप्रिय जीवन
व्यतीत करना चाहता था। वह एक धर्मपरायण मुसलमान था तथा हिन्दुओं को बलात
धर्मान्तरित करने या अपमानित करने की नीति का विरोधी था।
· अपने निकट सहयोगी अहमद चप के साथ बहस करते हुए
उसने हिन्दुओं द्वारा मूर्तिपूजा करने, अपने धर्म का
प्रचार करने एवं अनुष्ठानों का संपादन करने का भी पक्ष लिया।
3. विद्रोह का दमन :
·
मलिक
छज्जू का विद्रोह
o
1290 ई०
में कड़ा-मानिकपुर के सुबेदार मलिक छज्जू ने विद्रोह किया। उसने सुल्तान
मुगीसुद्दीन की उपाधि धारण कर अपने नाम के सिक्के चलाए तथा खुत्बा पढ़वाया। इस
विद्रोह में अवध का सुबेदार हातिम, मलिक छज्जु के साथ था।
o
एक
विशाल सेना के साथ वह बदायूँ के मार्ग से दिल्ली की ओर बढ़ना आरम्भ किया। बदायूं
में मलिक बहादुर और आलम गाजी अपनी सेना के साथ मलिक छज्जू से आ मिले।
o
जलालुद्दीन
इस विद्रोह को दबाने के लिए स्वयं सेना के साथ कूच किया। अपने ज्येष्ठ पुत्र
खान-ए-खाना को राजधानी का दायित्व सौंपा। दूसरा पुत्र अर्कली खाँ उसके साथ था
अर्कली खो सेना के अग्रिम भाग के साथ गया और बदायूँ के निकट मलिक छज्जू को परास्त
कर बंदी बना लिया।
o
मलिक
छज्जू और उसके अन्य साथियों को जंजीरों में बांध कर गन्दे वस्त्रों में सुल्तान के
समक्ष पेश किया गया। छज्जू की दयनीय दशा देखकर सुल्तान द्रवित हो उठा। मलिक छज्जु
को क्षमादान कर मुल्तान भेज दिया गया तथा उसके सभी साथियों को मुक्त कर दिया या।
o
जलालुद्दीन
ने पराजित अमीरों से सम्मानजनक व्यवहार करने का आदेश दिया। अलाउद्दीन को मलिक
छज्जू के स्थान पर कड़ा मानिकपुर का सुबेदार बनाया गया।
·
जलालुद्दीन
की उदारता
o
जलालुद्दीन
उदार,
विनम्र और दयालु व्यक्ति था। वह रक्तपात से घृणा करता था। विद्रोहियों
के प्रति उसने दुर्बल नीति अपनाई और कहा, "मैं एक
वृद्ध मुसलमान हूँ और मुसलमानों का रक्त बहाने की मेरी आदत नहीं।"
4. षड्यंत्रों को असफल करना
अ. षडयंत्रकारी
अमीर
o जलालुद्दीन की उदार नीति ने अमीरों की
महत्वाकांक्षा को जागृत कर दी। इस उदार नीति को उसकी कमजोरी समझ कर अमीरों ने एक
सामाजिक उत्सव पर सुल्तान जलालुद्दीन का वध कर उसके स्थान पर ताजीदुद्दीन कूची को
सिंहासनारूढ़ करने का षड्यंत्र रचे.
o ताजुद्दीन कूची बलबन के समय के प्रभावशाली
सरदारों के गुटों में से एक था। सुल्तान को यह सूचना मिली तो उसने षड्यंत्रकारियों
को खुली चुनौती दी। बाद में क्षमा मांगने और चाटुकारितापूर्ण व्यवहार करने से वह
प्रसन्न हो गया।
o षड्यंत्रकारियों को केवल चेतावनी देकर एक वर्ष
के लिए दरबार से बाहर निकाल दिया।
ब. सीद्दी मौला का षड्यंत्र
o सीद्दी मौला ईरान से आया एक संत था। वह अजोधन के
शेख फरीदुद्दीन गंज शकर का अनुयायी था। बलबन के शासन काल में ही वह दिल्ली में बस
गया था।
o वह एक विशाल खानकाह चलाता था जिसमें प्रतिदिन
हजारों भूखे लोग खाना खाते थे। सिद्दी मौला के प्रभाव से आकर्षित होकर अनेक अमीर व
अधिकारी खानकाह में जाने लगे जहां राजनीतिक चर्चाएं होने लगी।
o सुल्तान का पुत्र शाहजादा खानखाना भी सीद्दी
मौला का अनुयायी था। सीद्दी मौला पर यह आरोप लगाया गया कि दो हिन्दू अधिकारियों
हथियापायक व निरंजन कोतवाल ने सुल्तान की हत्या करने व सीद्दी मौला को सुल्तान
बनाने के लिए षड्यंत्र रचा। यह सूचना सुल्तान को मिली। हथियापायक व निरंजन कोतवाल
को मृत्यु दण्ड दिया गया। सीद्दी मौला को हाथियों से कुचल दिया गया।
o सिद्दी मौला के मृत्यु के कुछ दिन बाद ही
जलालुद्दीन के ज्येष्ठ पुत्र खानखाना की मृत्यु हो गयी।
5. उपद्रवों को ठीक करना : ठगों
का दमन
o चोरों व ठगों के विषय में भी जलालुद्दीन ने अपनी
उदार नीति का ही परिचय दिया। चोरी, लूटमार,
डकैती व हत्या करने वाले लगभग एक हजार ठग दिल्ली में पकड़े गए।
o सुल्तान ने उन्हें दण्डित नहीं किया बल्कि एक
नाव में बिठाकर बंगाल की ओर रवाना कर दिया।
6. हमलों का जवाब : मंगोल आक्रमण
· मंगोलों से सुरक्षा के लिए जलालुद्दीन ने सुनाम, दीपालपुर, व मुल्तान सीमा पर अर्कली खां, की नियुक्ति की।
· जलालुद्दीन के समय में अब्दुल्ला के नेतृत्व में
1292
ई० में मंगोलों ने आक्रमण किया किन्तु मंगोल पराजित हुए।
· अब्दुल्लाव सुल्तान जलालुद्दीन के मध्य
मैत्रीपूर्ण संधि हुयी। जलालुद्दीन ने उसे अपना पुत्र कहा तथा मंगोलों ने पुनः
युद्ध न करके वापस जाने का निर्णय किए।
· किन्तु कुछ समय पश्चात् हलाकू के पौत्र उलूग ने
आक्रमण किया। बाद में उलूग खां ने अपने 4000 समर्थकों
के साथ इस्लाम धर्म स्वीकार कर भारत में ही रहने का निश्चय किया।
· सुल्तान ने उन्हें भारत में रुकने की अनुमति
प्रदान की। मंगोलों को रहने का स्थान, भत्ते और
राजकीय पद प्रदान किए गए।
· सुल्तान ने अपनी एक पुत्री का विवाह उलूग के साथ
किया। यही मंगोल बाद में नवीन मुसलमान कहलाए और वह स्थल आज भी मंगोल पुरी के नाम
से प्रसिद्ध है।
7. जलालुद्दीन के सैन्य अभियान
·
अहमद
चाप का ताना – “अगर कोई शासक कठोर निर्णय नहीं ले सकता तो उसे अपनी गद्दी
छोड़ देनी चाहिए.”
·
जलालुद्दीन
का जवाब –“ सही बात है मेरे घर के सामने से ही मूर्ति पूजक ढोल तास नगाड़े के
साथ निकलते हैं और उन्हें देख कर मेरा दिल रोता है”
·
“मैंने
आज तक किसी भी मुहद्दी ( ईश्वर की एकता में विश्वास नहीं करने वाले) की हत्या नहीं
की है, मैं कयामत के दिन अल्लाह को क्या मुँह दिखाऊंगा.”
अ. रणथम्भौर
अभियान
o वर्तमान में रणथम्भौर राजस्थान के सवाईमाधोपुर
जिले में स्थित प्राचीन ऐतिहासिक एवं सामारिक महत्व के दुर्गों में स्थान रखता है।
यह एक अत्यन्त विशाल पहाड़ी दुर्ग है जो अरावली पहाड़ियों से घिरा है।
o तत्कालीन समय में यहां का प्रसिद्ध शासक हम्मीर
देव था। उसके नेतृत्व में राजपूत चौहान अत्यधिक शाक्तिशाली हो गए थे।
o जलालुद्दीन रणथम्भौर की ओर बढ़ा। मार्ग में उसने
झायन के दुर्ग को जीता तथा मंदिरों को नष्ट किया। इसके पश्चात् वह रणथम्भौर
पहुँचा। किन्तु दुर्ग की सुदृढ स्थिति देखकर उसे जीतने की इच्छा छोड़ दी।
o उसने कहा कि - “वह एक मुसलमान के एक बाल को
भी ऐसे दस किलों की तुलना में अधिक महत्व देता है”। इस प्रकार रणथम्भौर को
बिना जीते ही सुल्तान दिल्ली वापस लौट आया।
o बाद में उसने मंदौर पर आक्रमण किया तथा उसे
दिल्ली के अधीन कर लिया।
ब. अलाउद्दीन
द्वारा अभियान
o अलाउद्दीन खिलजी (अली गुरशास्प), जलालुद्दीन का भतीजा व दामाद था। जलालुद्दीन ने उसे कडा मानिकपुर का
सुबेदार नियुक्त किया था। किन्तु धीरे-धीरे वह सलतनत की राजनैतिक गतिविधियों का
केन्द्र बनने लगा। उसके व्यक्तिगत महत्वकांक्षा को मलिक छज्जु ने और उत्साहित किया
जिसने यह सलाह दी कि सफल विद्रोह के लिए धन की आवश्यकता पड़ती है।
o इसी धन के संग्ग्रह के लिए अलाउद्दीन ने भिलसा व
देवगिरि के दो सैन्य अभियान किया।
भिलसा
अभियान
o अलाउद्दीन सुल्तान से अनुमति लेकर मालवा स्थित
भिलसा पर आक्रमण किया तथा विजय प्राप्त की। यहां से अपार धन लूट कर वह दिल्ली लाया
जिसका एक भाग सुल्तान के पास भेज दिया।
o सुल्तान उसकी इस सफलता से प्रसन्न होकर उसे कड़ा
मानिकपुर के साथ-साथ अवध का भी सुबेदार नियुक्त कर दिया।
o भिलसा अभियान की सफलता से अलाउद्दीन की विजय और
धन दोनों की लालसा जागृत हो गयी। वास्तव में वह दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करना
चाहता था। उसे अपनी शक्ति और समर्थकों की संख्या में वृद्धि करने के लिए धन की
अत्यधिक आवश्यकता थी।
ब. देवगिरी
का अभियान
o
भिलसा
अभियान के दौरान ही अलाउद्दीन ने दक्षिण के देवगिरि राज्य की शक्ति और वैभव के
बारे में सुना था। इस कारण वह इस पर आक्रमण करने के लिए लालायित था।
o
अतः
उसने देवगिरि को लूटने का निश्चय किया। परन्तु अपनी योजना को गुप्त रखा। सुल्तान
जलालुद्दीन से उसने चन्देरी पर आक्रमण करने की आज्ञा मांगी किन्तु 1296 ई० में लगभग 8000 चुने घुड़सवारों के साथ चन्देरी
का बहाना बनाकर देवगिरि की ओर चल दिया।
o
यहां
का शासक रामचन्द्र देव एक योग्य और साहसी राजा था। उसने मालवा और मैसूर के राज्यों
को जीत कर न केवल अपनी राज्य सीमा का विस्तार किया था बल्कि व्यापार व कृषि की
उन्नति कर देवगिरि राज्य को सम्पन्न एवं वैभवपूर्ण बना दिया था।
o
अलाउद्दीन
मलिक अलाउल मुल्क को कड़ा में अपना प्रतिनिधि नियुक्त कर चन्देरी और मिला होते हुए
देवगिरि की उत्तरी सीमा पर स्थित एलिचपुर पहुँचा। मार्ग में उसने यह अफवाह फैला
दिया कि वह अपने चाचा से अप्रसन्न है और तेलंगाना राज्य में नौकरी करने की आशा से
जा रहा है। इस कारण किसी ने उसका विरोध नहीं किया।
o
देवगिरि पहुंचकर अलाउद्दीन ने अचानक उस पर
आक्रमण कर दिया। इस सहसा हुए आक्रमण से राजा रामचन्द्रदेव चकित रह गया।
o
अलाउद्दीन
ने यह अफवाह फैला दी कि उसकी सेना दिल्ली से आने वाली 20 हजार की मुख्य सेना का अग्रगामी भाग है।
o युद्ध क्षति के रूप में अतुल सम्पत्ति लेकर
अलाउद्दीन वापस लौट आया। इस सम्बन्ध में डॉ० एस० राय ने लिखा है कि, "वास्तव में दिल्ली को देवगिरि में जीता गया क्योंकि दक्षिण के स्वर्ण ने
अलाउद्दीन के सिंहासन पर बैठने का मार्ग प्रशस्त कर दिया”।
जलालुद्दीन का वध
o
जब
अलाउद्दीन देवगिरि को लूटकर कड़ा-मानिकपुर की ओर वापस लौट रहा था, उस समय जलालुद्दीन ग्वालियर में था। ग्वालियर में ही उसे अपने भतीजे
(अलाउद्दीन) के दक्कन के गुप्त अभियान एवं धन प्राप्ति का समाचार मिला।
o
अहमद चाप
ने सुल्तान को अलाउद्दीन के
महत्वाकांक्षा के विरुद्ध सचेत किया तथा उसे चंदेरी में रोकने की सलाह दी। किन्तु
सुल्तान ने अहमद चाप के इस सलाह को ठुकरा दिया और दिल्ली चला आया। अलाउद्दीन बिना
किसी बाधा के कड़ा-मानिकपुर पहुँच गया।
o
कुछ
दिनों पश्चात् अलाउद्दीन ने अपने भाई अलमास बेग (उलूग खां) को जो उस समय सुल्तान
के दरबार में था, को पत्र लिख कर दक्षिण अभियान
के लिए सुलतान से क्षमा मांगी और पूरा धन जलालुद्दीन को देने का वचन दिया। किन्तु
उसने यह शर्त रखा कि सुल्तान कड़ा-मानिकपुर आए।
o
उसने
यह भी चेताया कि यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह आत्महत्या कर लेगा या बंगाल भाग जाएगा।
जलालुद्दीन बहुत भावुक हो गया और कड़ा मानिकपुर जाने का निर्णय किया।
o
स्वयं
जलालुद्दीन नदी मार्ग से मानिकपुर गया। उसकी सेना अहमद चप के नेतृत्व में
स्थलमार्ग से आयी ।। अलाउद्दीन ने कड़ा छोड़कर गंगा नदी को पार कर मानिकपुर पहुँचा
जिससे स्थल मार्ग से आने वाली सुल्तान की सेना को नदी पार करने में कठिनाई हुयी।
o
अलमास
बेग मे जलालुद्दीन से निवेदन किया कि वह अकेले ही अलाउद्दीन से मिलने जाए क्योंकि
वह सेना देखकर भयभीत हो जाएगा। उसके बातों में आकर जलालुद्दीन ने अपने कुछ सरदारों
के साथ अलाउद्दीन से मिलने के लिए चल पड़ा।
o
तट पर
पहुंचने से पहले ही अलमास बेग की प्रार्थना पर उसने स्वयं तथा अपने सरदारों के
शस्त्र उतार दिया। अलाउद्दीन नदी के तट पर जलालुद्दीन से मिलने आया और सुल्तान के
पैरों पर गिर पड़ा।
o
जलालुद्दीन ने उसे प्रेमपूर्वक उठाकर हृदय से
लगा लिया तथा उसका हाथ पकड़ कर नाव की तरफ बढ़ने लगा। उसी समय अलाउद्दीन के इशारे पर मुहम्मद सलीम ने सुल्तान
पर आक्रमण किया।
o
सुल्तान
घायल होकर नाव की तरफ यह कहता हुआ भागा कि, "धोखेबाज
अलाउद्दीन यह तूने क्या किया।" तत्पश्चात् अलाउद्दीन के दूसरे सहयोगी
इख्तियारुद्दीन हृदने सुल्तान की सिर धड़ से अलग कर दिया।
o
20 जुलाई,
1296 ई० को सुल्तान जलालुद्दीन के वध के बाद अलाउद्दीन को सुल्तान
घोषित किया गया। सुल्तान के कटे हुए सिर को कडा मानिकपुर व अवध की सीमाओं में
घुमाया गया। इस घटना में एक मात्र मलिक फखरुद्दीन को छोड़कर सुल्तान के सभी साथी
कत्ल कर दिए गए।
जलालुद्दीन का मूल्यांकन
o
लगभग
सभी इतिहासकारों का मत है कि जलालुद्दीन के उदारता की नीति शासक के रूप में उसकी
अयोग्यता को सिद्ध करता हैं।
o
बरनी –
“राजत्व उसके लिए धोखा था”
o इस सम्बन्ध में डॉ० एस०लाल ने लिखा है कि, "राजमुकुट के लिए शायद ही कोई व्यक्ति इतना अनुपयुक्त रहा होगा जितना कि
खिलजी वंश के संस्थापक ।"
o डॉ० ए० बी० पाण्डेय ने जलालुद्दीन के सम्बन्ध में अपना मत प्रस्तुत किया है कि, "जलालुद्दीन पहला शासक था जिसने उदारता को शासन की आधारशिला बनाने का प्रयत्न किया।"
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