रविवार, 18 सितंबर 2022

21वीं सदी की भूमण्डलीकृत दुनिया के लिए शिक्षा : मूल्यों में प्रतिमान विस्थापन

Pandey, Rajiv Kumar, and Siddharth Shankar Rai. “21वीं सदी की भूमण्डलीकृत दुनिया के लिए शिक्षा : मूल्यों में प्रतिमान विस्थापन/Education for the Globalized World of the 21st Century: Paradigm Shift in Values.” शोध धारा 4.63 (2021): 301–308. Print.

सार

21वीं सदी का भूमण्डलीकरण तथा उसके प्रतिरोध का एक सतर्क तथा सुनियोजित हस्तक्षेप, अपने-अपने प्रभावक औज़ारों के दम पर संस्कृतियों के विभिन्न आयामों से एक संवाद की खोज में लगा है, ताकि वह सामाजिक विमर्श की माँग वाले उन तमाम उभरते ज्वलंत प्रश्नों का हल ढूँढ़ने में मदद कर सके जो समाज और उसकी संस्थाओं को संक्रमण की उस सार्वभौम पीड़ा से मुक्ति दिला सके जो उनके तीव्र, बेमान और असमान विकास के प्रतिउत्पाद हैं। शिक्षा इस संवाद की सबसे भरोसेमंद भाषा है शिक्षा समाज की रचना का न केवल मुख्य औजार है, बल्कि यह लोकतांत्रिक पसंद की वह नींव है, जो दृष्टि को स्पष्टता की ताकत प्रदान करती है। यह मूल्यों की उस कुशलता को जन्म देती है, जो मनुष्य की बुनियादी संभावनाओं को आगे बढ़ातें हैं तथा आवश्यक क्षमताओं, दक्षताओं और अधिकारों के विकल्पों में वृद्धि करते हैंयह शोधपत्र इक्कीसवीं सदी की भावी दुनिया के सरकते प्रतिमानों का न केवल पहचान करता है, बल्कि परिवर्तन के अनुरूप तथा समाज लाभकारी शिक्षा व्यवस्था के नए स्वरूप के पक्ष में, उन तर्कों को रचता है जिससे हमारे अस्तित्व का भविष्य जीवंत और विश्व के लिए कल्याणकारी बना रहे

बीज शब्द

भूमण्डलीकरण, शिक्षा, मूल्य, प्रतिमान, उद्योग 5.0, समाज 5.0

1. पृष्ठभूमि : भविष्य का इतिहास  

1.1. इक्कीसवीं सदी में इतिहास की अग्रगति : उत्पादन के नए साधनों का समाज- हम इतिहास के उस चरण के गवाह बन रहें हैं जहाँ इंटरनेट की चीजें, डिजिटल तकनीकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स में तीव्र भूमण्डलीय विकास, समाज और उद्योग की निर्माणकारी शक्तियों में महत्वपूर्ण संरचनात्मक परिवर्तन ला रहा है तथा नए मूल्यों के निर्माण का एक आधार स्तंभ बन रहा है। अब हमारी दुनिया और लोगों के मूल्य, तीव्रता से वैविध्य भरे और जटिल होते जा रहें हैं इतिहास की यह अग्रगति अभी भी मानव की प्रगति के अपने नियामकों, उत्पादन के साधन तथा उसकी प्रणाली से मुक्त नहीं हैं। निकट भविष्य, समाज और साधनों का जो सेतु बना रहा है उसके पार की दुनिया सीखने और सिखाने के लिए निश्चित ही वह नहीं होगी जिससे हम परिचित हैं।

1.2. उद्योग 5.0 : उत्पादन के लिए मनुष्यों की बुद्धि पर फिर विश्वास- उद्योग 5.0 शब्द रोबोट और स्मार्ट मशीनों के साथ काम करने वाले लोगों को संदर्भित करता है। यह उन रोबोटों के बारे में है, जो इंटरनेट ऑफ थिंग्स और बिग डेटा जैसी उन्नत तकनीकों का लाभ उठाकर, मनुष्यों को बेहतर और तेज़ी से काम करने में मदद करते हैं यह स्वचालन और दक्षता के उद्योग 4.0 स्तंभों के लिए एक व्यक्तिगत मानवीय स्पर्श जोड़ता को है। अब जबकि समझा जा रहा है कि रोबोट ऐतिहासिक दृष्टि से खतरनाक तथा प्रदर्शन में नीरस है, जैसा कि टेस्ला के सी.ई.ओ. एलन मस्क ने स्वीकार किया है कि उनकी कंपनी में ‘अत्यधिक स्वचालन’ एक गलती थी, उन्होंने ट्वीट किया कि "मनुष्यों को कम आंका गया है’’(1) हालाँकि कोविड महामारी से कुछ कार्पोरेट ने चिंताजनक रूप से यह अवश्य सीखा है कि मशीने बीमार नहीं पड़ती हैं। उद्योग 5.0 का उद्देश्य संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग क्षमताओं तथा सहयोगात्मक संचालन में संसाधनशीलता के साथ मानवीय बुद्धिमत्ता को मिलाना है साधारण शब्दों में इस उद्योग का उत्पाद एक ख़ास तरह के शिक्षित और कुशल मनुष्य हैं। यूरोप में प्रस्फुटित इस नई डिजिटल-मानव तकनीकी को लक्षित करने वाली गतिविधियों को दुनिया जहाँ “क्रांति" का नाम दे रही है वहीं यह चीन में मेड इन चीन 2025 नाम से औद्योगिक नीति का स्तंभ बन रहा है (2,3,4)।

1.3. समाज 5.0 : विकास के मानवीय चेहरे की तरफ झुका भविष्य का पलड़ा- इस क्रांति के लिए तथा इस क्रांति से रचित, समाज 5.0 एक ऐसे समाज को संदर्भित है जो साइबर स्पेस(आभासी) और फिजिकल स्पेस(भौतिक) के बीच उच्च स्तर का अभिसरण प्राप्त करता है अर्थात आभासी और भौतिक दोनों जगहों पर न केवल पाये जाते हैं बल्कि इन स्थानों को परस्पर तीव्रता से एकीकृत भी करतें है। मानव-केंद्रित यह समाज एक ऐसी प्रणाली विकसित करता है जो सामाजिक समस्याओं के समाधान के साथ प्रगति के भिन्न आयामों और भिन्नताओं को भी संतुलित करता है। समाज 5.0 को 5वीं साइंस एंड टेक्नोलॉजी बेसिक प्लान में भविष्य के समाज के रूप में प्रस्तावित किया गया है, जिसकी जापान को जल्द ही आकांक्षा करनी चाहिए। यह शिकार समाज (समाज 1.0), कृषि समाज (समाज 2.0), औद्योगिक समाज (समाज 3.0), और सूचना समाज (समाज 4.0) का अनुसरण करता है कहा जा रहा कि है कि जापान से शुरू हुआ दुनिया का हालिया वातावरण भारी परिवर्तन वाले समाज 5.0 के युग में है। जापान, समाज 5.0 को एक नए समाज के रूप में एक वास्तविकता बनाना चाहता है जो सभी उद्योगों और शिक्षा सहित सामाजिक गतिविधियों में इन नई तकनीकों को शामिल करेगा तथा समानांतर रूप से सामाजिक समस्याओं का समाधान और आर्थिक विकास दोनों को प्राप्त करेगा (5,6)।

1.4. प्रगति की भूमण्डलीय दुविधा : समस्याओं का मुहँ बाकर जस का तस खड़े रहना- परन्तु जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, जीवन समृद्ध और सुविधाजनक होता जा रहा है, ऊर्जा और खाद्य पदार्थों की माँग बढ़ रही है, जीवनकाल लंबा होता जा रहा है जिससे समाज ज्यादा बूढ़ा हो रहा है। इसके अलावा, अर्थव्यवस्था का तीव्र भूमण्डलीकरण हो रहा है, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा तेजी से गंभीर होती जा रही है, और धन का संक्रेंद्रण और क्षेत्रीय असमानता जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। इस तरह एक समाधान के रूप में, आर्थिक विकास तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विरोध से उत्पन्न होने वाली सामाजिक समस्याएं भी तेजी से जटिल हो गई हैं। यहाँ, कई तरह के उपाय आवश्यक हो गए हैं जैसे ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी, उत्पादन में वृद्धि, खाद्य पदार्थों की कम हानि, वृद्ध समाज से जुड़ी लागतों का शमन तथा असमानता का चयन करने वाली नीतियों की प्राथमिकता में बदलाव इत्यादि(7)। दुनिया में इस तरह के बड़े बदलावों के सामने, इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स, रोबोटिक्स, ए.आई. और बिग डेटा जैसी नई प्रौद्योगिकियां, जो समाज की संरचना को प्रभावित कर सकती हैं, प्रगति के लिए जारी हैं।

1.5. अभूतपूर्व क्रांति की भूल भुलैया : मार्गदर्शक के रूप में शिक्षा- प्रगति के इन उच्च प्रतिमानों के समानान्तर हम बढ़ती जटिलता तथा अनिश्चितता के एक चुनौतीपूर्ण युग में हैं जहाँ शिक्षा आयोग की रिपोर्ट शोक करती है कि "शिक्षा के ज्ञात और बढ़ते लाभों के बावजूद, दुनिया आज सीखने के वैश्विक संकट का सामना कर रही है"। यहाँ सीखना हमारी दुनिया में हो रहे व्यापक परिवर्तनों पर कड़ी नज़र रखने का अर्थ समेटे हुये है। इस प्रकार हम एक अभूतपूर्व क्रांति का सामना कर रहे हैं। हमारी सभी पुरानी रचनायें टूट रही हैं, और उन्हें बदलने के लिए अब तक कोई नई तथा विश्वसनीय रचना उभरी नहीं है। सवाल है कि हम खुद को और हमारे बच्चों को ऐसे अभूतपूर्व परिवर्तनों और कट्टरपंथी अनिश्चितताओं की दुनिया के लिए कैसे तैयार कर सकते हैं? उस बच्चे को क्या सिखाया जाना चाहिए जो भविष्य की दुनिया में उसे जीवित रहने और विकसित करने में मदद करेगा? कुछ पाने के लिए उसे किस तरह के कौशल की आवश्यकता होगी, वह दृष्टि उसे कैसे प्राप्त होगी जिससे वह यह देख सके कि उसके चारों ओर क्या हो रहा है, और जो उसके जीवन की भूलभुलैया पर मार्गदर्शन करें (8)?

2. शोध पत्र का उद्देश्य : समाधानों को छानना

इक्कीसवीं सदी से हमारी अपेक्षाएँ और आशाएँ जो भी हों, मानवता आज संक्रमण के भयावह दौर से गुज़र रही है। वैज्ञानिक-प्रौद्योगिक विकास और सामाजिक विकास की असमान गति विराट शैक्षणिक अलगाव को जन्म दे रही है और इसकी विसंगतियों से सामाजिक मान्यताएँ क्षीण हो रही हैं और सांस्कृतिक मूल्य विश्रृंखलित हो रहे हैं(9)। नई प्रौद्योगिकी व्यक्ति की सर्जनात्मकता का हरण कर रही है(10)। भूमण्डलीकरण रचित मूल्य अपने सुगम चालन हेतु परंपरा के छटाव की माँग कर रहे हैं(11)। वहीं देसी परंपरा की संपोषणीयता तथा प्रसांगिकता का तर्क अपने प्रतिरोध तथा उपस्थिति को नया बना रहा है(12)

चूंकि ‘निगम’ और ‘उद्यमी’ जो तकनीकी क्रांति का नेतृत्व करते हैं स्वाभाविक रूप से अपनी रचनाओं की प्रशंसा कर रहे हैं तथा इन्हें जरूरतमंद ‘सत्ता’ का संरक्षण भी हासिल है। एक लालची ‘गठजोड़’ उन समाजशास्त्रियों, दार्शनिकों और इतिहासकारों को हाशिये पर पटक रहा है जो सतर्क करतें हैं और उन तरीकों और चीजों को समझते-समझाते हैं जिनसे चीजें बहुत गलत हो सकती है। इस शोध पत्र का उद्देश्य इक्कीसवीं सदी के समाज को रचने वाले इन्हीं भूमण्डलीय प्रश्नों के समाधान की शैक्षणिक कोशिशों तथा स्थितियों की जाँच के इर्द-गिर्द घूमता है

3. शोध विधि एवं स्रोत : जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ

प्रस्तुत शोध पत्र के लिए परिवर्तन और प्रगति की बुनियादी भूमण्डलीय अवधारणाओं को शिक्षा के विश्लेषण के लिए, परिप्रेक्ष्य के रूप में लिया गया हैयहाँ विश्लेषण की जिस कसौटी को आधार बनाया गया है, वह विज्ञान द्वारा प्रदत्त ‘कल्पित वास्तविकता’ तथा मनुष्य के सनातन अस्तित्व की ‘वस्तुनिष्ठ वास्तविकता’ के बीच संतुलन के आग्रह से जुड़ी है। शोध परिणाम में निदर्षित विचारों और तर्कों के निर्माण के लिए भारत सहित दुनिया भर के विभिन्न अकादमिक क्षेत्रों के विभिन्न विद्वानों, तकनिकीविदों तथा दुनियाँ को प्रभावित करने वाले कार्पोरेट हस्तियों के विचारों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्टों के हम ऋणी हैं हालाँकि लेखक इस पर अपने समय तथा आसपास की परिस्थितियों के अनुभवाश्रित तथा अचेतन प्रभाव से इनकार नहीं कर सकता।

4. शोध परिणाम : शिक्षा के वैश्विक प्रतिमान में ‘गिलहरी योगदान’

4.1. 21वीं सदी में प्रतिमान विस्थापन

4.1.1. देखने की स्पष्टता : उद्देश्यपरक सूचनाओं का मायावी समंदर - फेसबुक जैसी अभिव्यक्त चीजें, प्रगति के झंडाबरदार समाज वाले इस भौतिक युग के अभिशप्त खालीपन के भराव के भान की जगह बनती जा रही हैं। जहाँ हम अक्सर इस ताकतवर, परिणामी और उद्देश्यपरक आभासी दुनिया में गैरजरूरी मुद्दों और अप्रासंगिक सूचनाओं  के सागर में डूबे रहतें हैं हमारे लिए इसके होने से अधिक इसे ‘देखने की स्पष्टता’ ताकत है जबकि कुछ के लिए इसका ‘होना’ ही ताकत है। सिद्धांत रूप में यहाँ कोई भी मानवता के भविष्य के बारे में हो रही बहस में शामिल हो सकता है लेकिन स्पष्ट दृष्टि बनाए रखना बहुत कठिन है। अक्सर हम यह भी ध्यान नहीं देते कि क्या बहस चल रही है, प्रमुख प्रश्न क्या हैं और इन प्रश्नों के उद्देश्य क्या हैं? हममें से अरबों लोग शायद ही इस जाँच की विलासिता बर्दाश्त कर सकते हैं, क्योंकि हमारे पास काम करने के लिए बहुत अधिक दबाव है, हमें काम पर जाना है बच्चों का ख्याल रखना है या बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल करना है। दुर्भाग्य से इतिहास कोई छूट नहीं देता है। आपकी अनुपस्थिति में जब मानवता का भविष्य तय किया जा रहा है तब क्योंकि आप बहुत व्यस्त हैं और अपने बच्चों को खाना खिला रहे हैं या कपड़े पहना रहें हैं तब भी उन्हें और आपको परिणामों से मुक्त नहीं किया जाएगा। यह बहुत अनुचित है परन्तु आखिर किसने कहा है कि इतिहास में सब कुछ उचित ही था(13)।

4.1.2. दोहरी वास्तविकता : सत्ता रचित महाख्यान- हम लगातार दोहरी वास्तविकता में रह रहें हैं। एक ओर रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी ‘वस्तुनिष्ठ वास्तविकता’ है। वहीं दूसरी तरफ राष्ट्र, धर्म, जाति, भगवान, प्रौद्योगिकी जैसी ‘कल्पित वास्तविकता’ है। समय गुजरने के साथ ‘कल्पित वास्तविकता’ शक्तिशाली हो कर अब ‘कल्पित सत्ता’ है। हमारा ‘वस्तुनिष्ठ जीवन’ इसी ‘कल्पित सत्ता’ के रहमों करम पर निर्भर है। जिसकी कहानियों का हर स्वरूप एक ‘उद्देश्य’ रचता है। वह उससे हमें सहमत करना चाहता है तथा हितैषी होने का एहसास कराता है। ‘रचयिता’ पक्ष और उसका अधिवक्ता दोनों है। लोककहानियाँ अब कल्पनायें हैं जबकि हम सत्ता रचित ‘महाआख्यान’ की अच्छी बुरी परछाइयाँ हैं। अब एक बार का झूठ हमेशा के लिए सच है लोगों को एकजुट करने वाली ‘झूठी कहानियों’ को ‘सच’ पर स्वाभाविक वर्चस्व प्राप्त है। सफल कहानियों का अन्त खुला रहता है इसलिये यह जवाब नहीं होती हैं जीवन कहानी नहीं है अलबत्ता सफल कहानियाँ नियंत्रण हैं हमारी रचनाएं न केवल हमें रच रहीं हैं बल्कि हमारी जगह से हमें विस्थापित भी कर रही हैं (14)

4.1.3. आलोचनामूलक विवेक : निष्ठा और श्रद्धा की माँग करती कट्टरता- अब सही और गलत का निर्णायक तथा उसको पहचानने की क्षमता के लिए सराहे जाने वाले विवेक का स्थान कट्टरता ले रही है, वह केवल आज्ञापालक चाहती है। सत्ता की कामना को निष्ठा और श्रद्धा चाहिए वह आलोचनामूलक विवेक और उत्तरदायित्व को भी घातक यत्न कह कर हटा रही है। वह जनता को दासत्वपूर्ण आज्ञापालन का सुख प्रदान करना चाहती है तथा उनसे स्वतंत्रता तथा विवेक यह कह कर छीन लेना चाहती है कि यह एक बोझ है। वह उसके त्याग और कष्ट को प्रभावशाली कहानियों में बदल रही है। दरअसल हम एक ‘सच से परे’ की दुनिया में रह रहें हैं जहां हम अभी विकास और अन्याय को स्पष्टतः अलग नहीं कर सकते हैं। हम उस स्पष्ट सीमा को भी नहीं पहचान सकतें हैं जो वास्तविकता को कहानी से अलग करती है। किसी बदलाव के पहल की अपेक्षा, वर्तमान राजनीतिक परिवेश उदारवाद और लोकतंत्र के बारे में किसी भी चिंता को तानाशाही और अनुदारवादी आंदोलनों द्वारा अपहरण कर रहा है, जिसका भुगतान सिर्फ यह नहीं है कि उदारवादी लोकतंत्र मरीचिका बन रहा है बल्कि यह नागरिक को उसके भविष्य के बारे में एक खुली चर्चा में संलग्न होने के अवसर को खत्म कर उत्तेजनायुक्त गैरजरूरी बहसों की तरफ मोड़ कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रतिरोध का भान पैदा कर रहा है।

4.1.4. सत्य एक मार्गरहित भूमि : सभ्यता का रोग - इक्कीसवीं शताब्दी में हमें बड़ी मात्रा में जानकारी मिली है जो सेंसर तो नहीं है अलबत्ता गलत जानकारी फैलाने या अपरिवर्तनीयताओं के साथ हमें विचलित करने में व्यस्त है स्मार्टफ़ोन है तो आप हर सूचना से बस एक क्लिक दूर हैं जो इतने विरोधाभासी हैं कि यह जानना मुश्किल है कि किस पर विश्वास करना है। इसके अलावा अनगिनत अन्य चीजें भी सिर्फ एक क्लिक दूर हैं जिसे ध्यान में रखा जा सकता है। जब राजनीति या विज्ञान बहुत जटिल लगते हैं तो यह हमें कुछ मजेदार कुत्ते बिल्लियों के वीडियो, मनोरंजन, सेलिब्रिटी गपशप या पोर्न की तरफ मोह लेता हैं (15) । हम उस फँसान में हैं जिसे गाँधी "सभ्यता का रोग" कहते हैं(16)। जहाँ बारूद चीनी से तथा युद्ध हमारे तनाव से कम खतरनाक है(17)।

4.2. वर्तमान स्थिति

4.2.1. प्रगति में असमानता : आधुनिक सभ्यता का पुरस्कार- दुनिया के लगभग ज्यादातर देश एक ही साथ कई कालों में और कई जगहों पर जी रहे हैं असमान विकास के कारण लगभग हर देश में एक छोटा बड़ा बरुंडी और एक अमेरिका है। इन देशों में रह रहा समाज भी एक ही साथ मध्यकालीन कट्टरता और आधुनिक लोकतांत्रिक जीवन शैली का व्यवहार कर रहा है। जाहिर सी बात है कि कोई भी व्यवस्था चाहे उसका सम्बन्ध शिक्षा से ही क्यों न हो उसकी पहुँच सब तक नहीं है और न ही वह उसके लिए उपयुक्त है। विकास और शिक्षा जैसे उसके संसाधनों की यह असमान दौड़ हमारे समय की विशेषता और मज़बूरी दोनों है क्योंकि हम किसी के लिए किसी को छोड़ नहीं सकते। यहाँ वर्तमान में हो रहे कुछ परिवर्तनों की एक सूची है जो पाँचवीं औद्योगिक क्रांति में आम होने वाली है- कुछ और लोग नियमित रूप से दूर से काम करेंगे। कठिन काम मशीनों द्वारा किया जाएगा। स्वास्थ्य और अन्य उद्देश्यों के लिए प्रत्यारोपण योग्य प्रौद्योगिकियां व्यापक हो जाएंगी, जिससे एक स्वस्थ, तथा लंबे समय तक जीवित रहने वाली आबादी पैदा होगी। 3डी प्रिंटिंग अधिक से अधिक प्रचलित हो जाएगी। चैटबॉट ग्राहक, अनुभव का एक नियमित हिस्सा बन जाएगा।

4.2.2. पुराने का मोह और नए का उत्साह : प्रश्न जो उमड़ते हैं - जिन प्रश्नों का अभी भी पूरी तरह उत्तर दिया जाना बाकी है उनमें शामिल हैं: सफेदपोश नौकरियां कैसे बदलेगी? क्या वे पूरी तरह से गायब हो जाएंगे, नियमित काम स्वचालित हो जाने पर श्रमिकों को अपनी भूमिकाओं को फिर से कैसे कॉन्फ़िगर करना होगा? एक समाज के तौर पर हम इस पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे? जैसे मूल्य, संस्थान, पहचान की भावना इत्यादि । कौन से देश सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे? कम इंटरनेट अपनाने वाले देशों में क्या होगा? वस्तुओं और सेवाओं की लागत का क्या होगा? संगठन, नए विश्वास संबंध और मनोवैज्ञानिक कार्य अनुबंध कैसे बनाएंगे, हम सभी पुरानी आदतों को कैसे भूलेंगे और इस नए परिवेश के लिए कैसे तैयार होंगे? इसे देखने का एक नकारात्मक तरीका यह शिकायत करना है कि हम उन्हीं मशीनों से अप्रासंगिक हो जायेंगे जिसे हमने बनाया हैं। रोबोट अंततः इंसानों से ज्यादा स्मार्ट हो जाएंगे और फिर उन्हें कोई रोक नहीं सकता। वे दुनिया पर अधिकार कर लेंगे, और हम कुछ भी नहीं करने के लिए छोड़ दिए जाएंगे अर्थात हम बेमानी हो जाएंगे। परन्तु इसे देखने का सकारात्मक तरीका यह है कि ए.आई. और रोबोटिक्स का महत्वपूर्ण रूप इस बात पर निर्भर करता है कि हम कैसे काम करते हैं, उनसे कैसे खेलते हैं और उनके साथ कैसे रहते हैं, दरअसल  दोहराए जाने वाले और अत्यधिक जटिल कार्यों को बदलकर और निर्णय लेने में वे हमारी सहायता करते हैं। अब हमारे पास काम में कम मेहनत और महत्वपूर्ण चीजों पर खर्च करने के लिए अधिक समय होगा। यदि हम पिछली क्रांतियों को देखें, तो उनमें से प्रत्येक ने कुछ न कुछ अव्यवस्था लायी  है, लेकिन उन्होंने सभी के लिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार किया है। हमारे पास यह संदेह करने का कोई कारण नहीं है कि पांचवीं औद्योगिक क्रांति अलग होगी(18)।

4.2.3. शिक्षा : नींव  में पड़ी गहरी दरार- हालाँकि  यह प्रश्न एक बार घूम कर फिर धरातल पर आता है कि यह माना कि नई परिस्थितियों से जूझने के लिए तथा जनसांख्यकीय लाभांश तलाश रहे भारत जैसे देशों में शिक्षा जैसी व्यापक प्रभाव पैदा करने वाली शायद ही कोई और बात होगी परन्तु यहाँ के स्कूलों का पतन नींव में पड़ी एक गहरी दरार है (19) और उच्च शिक्षा का सारा क्षेत्र सत्ता की विषैली नीतियों के घातक प्रहार से मोटे वेतन के बदले आज्ञाकारी मौन और स्थिरता धारण किये हुए है। यह हमारी स्वास्थ्य उपलब्धियों और प्रजनन दर से लेकर आर्थिक गतिशीलता सामाजिक बदलाव व राजनीतिक विकल्प जैसे सभी प्रतिमानों पर प्रभाव डाल रहा है। भारत का हर चौथा अनपढ़ है जो प्रौद्योगिकीय क्रांति के संभावित लाभ में बाधा है। जबकि यदि हमें तेज़ी से व मापनीय परिवर्तन को प्रभावी बनाना है तो हमें उस तरह के प्रौद्योगिकीय उपकरणों का उपयोग करना होगा जो दुनिया भर के लोगों में ज्ञान को प्रसारित व एकत्रित करने के तरीकों में क्रांतिकारी बदलाव की शुरूआत कर रहे हैं।

4.2.4. शिक्षा नीति : समावेशन, सत्तावाद और हड़बड़ी- अभी शिक्षा को लेकर जो नीतिगत उद्देश्य सामने आ रहे हैं उनमें प्रमुख हैं एकरूपीकरण, केंद्रीयकरण और आधिकारिक नियंत्रण। ये सारे बदलाव ऊपर से लागू किए जा रहे हैं इनमें से एक भी ऐसा नहीं है जिसकी माँग छात्रों, शिक्षकों या अभिभावकों ने की हो। नई नीति को जिस शैली में लागू किया जा रहा है उसके तीन गुण हैं: समावेशन, सत्तावाद और हड़बड़ी। उच्चशिक्षा में सुधार के लिए प्रस्तावित नीतियां इस क्षेत्र के हर कोने को प्रभावित करेंगीं। कोई भी विषय, संस्थान या प्रान्त अछूता नहीं रहेगा सब में मूलभूत परिवर्तन अनिवार्य होगा इस प्रकार भारतीय उच्चशिक्षा का वर्तमान संकट उसकी आखिरी चुनौती है क्योंकि इसके बाद वह मर चुकी होगी और उसकी जगह एक विशाल व्यावसायिक प्रशिक्षण तंत्र स्थापित किया जाएगा जिसमें ‘उच्च’ कहलाने लायक शिक्षा का नामोनिशान न होगा

4.2.5. भूमण्डलीकरण और शिक्षा की चिंता : अदृश्य हाथों में कमजोर की गर्दन-  जहाँ तक भूमण्डलीकरण के आलोचकों का मानना है कि यह ‘सबके लिए शिक्षा’ के आदर्श के लिए स्वयं बाधा है क्योंकि यह यह उन्नत देशों और कम विकसित देशों के बीच तकनीकी अंतराल और डिजिटल विभाजन को बढ़ाता है तथा कुछ देशों के हित में  वैश्विक साझेदारी के समान अवसरों तथा ज्ञान, कौशल और बौद्धिक संपदा के साझाकरण में बाधा बनता है जो विकास के लिए आवश्यक हैं अलग-अलग स्तर पर इसका लक्ष्य कुछ उन्नत देशों के लिए आर्थिक और राजनीतिक रूप से उपनिवेश बनाने के लिए अधिक वैध अवसर पैदा करना है। इसके लिए वह कम उन्नत देशों की स्वदेशी संस्कृतियों को नष्ट करता है, स्थानीय संसाधनों, समुदायों और व्यक्तियों का शोषण करता है जिससे क्षेत्रों और संस्कृतियों के बीच असमानता बढ़ती है और संघर्ष छिड़ता है। जैसा कि यूनेस्को के महानिदेशक ऑड्रे अज़ोले का कहना है कि “कोई भी तकनीकी क्रांति नए असंतुलन की ओर ले जाती है जिसका हमें अनुमान लगाना चाहिए।“

4.2.6. लक्ष्य से भटकता शिक्षा का उद्देश्य : वास्तविक जीवन से दूर- शिक्षा सभी समाजों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। शिक्षा उस परिवर्तन के केंद्र में है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अर्थशास्त्र और संस्कृति के क्षेत्रों में हमारी दुनिया को नाटकीय रूप से प्रभावित कर रहा है। यह सामाजिक परिवर्तन और वैज्ञानिक प्रगति का कारण है, और बदले में, यह प्रगति के परिणामों के अधीन है। उपरोक्त तथ्यों के बावजूद, कुछ लोगों का तर्क है कि शिक्षा प्रणाली अब दुनिया में हर जगह लोगों के सामने आने वाली नई जरूरतों को ध्यान में नहीं रखती है। उदाहरण के लिए, रेने बेंडिट और वोल्फगैंग गेसर संयुक्त राज्य अमेरिका में शिक्षा प्रणाली पर निम्नलिखित अवलोकन करते हैं, जिसे दुनिया के कई देशों पर भी लागू किया जा सकता है : शिक्षा प्रणाली वर्तमान सामाजिक चुनौतियों का सामना करने में विफल रही है। कामकाजी दुनिया में समस्यात्मक संक्रमण, बढ़ती गरीबी, किशोर उम्र के गर्भधारण, नशीली दवाओं के दुरुपयोग, अल्पसंख्यकों के प्रति असहिष्णुता, किशोर अपराध और हिंसा जैसी युवा समस्याओं में वृद्धि को इस तथ्य के प्रतिबिंब के रूप में माना जाता है कि स्कूलों का वास्तविक जीवन की दुनिया के साथ अब कोई सम्बन्ध नहीं है। विश्व अर्थव्यवस्था को एकीकृत करने के लिए, लोगों को न केवल पारंपरिक ज्ञान और उसके उपकरणों को प्राप्त करना चाहिए, बल्कि सबसे बढ़कर, उन्हें एक ज्ञान समाज द्वारा मांगे गए नए कौशल को प्राप्त करने में सक्षम होना चाहिए। दरअसल, तकनीकी और वैज्ञानिक ज्ञान में तेजी से बदलाव ने सीखने को एक स्थायी प्रक्रिया बना दिया है(20)।

4.3. भूमण्डलीकृत दुनिया में शिक्षा के नए प्रतिमान

4.3.1. भूमण्डलीकरण : एक और दुनिया संभव है - एक चरम स्तर पर भूमण्डलीकरण को दुनिया भर के लोगों को आर्थिक समृद्धि प्रदान करने के लिए एक अप्रतिरोध्य और सौम्य शक्ति के रूप में देखा जाता है। यह दुनिया के विभिन्न देशों और समाजों में मूल्यों, ज्ञान, प्रौद्योगिकी और व्यवहार संबंधी मानदंडों के हस्तांतरण, सीखने के क्षेत्रों में अंतरप्रवाह तथा अनुकूलन और विकास को संदर्भित करता है। हालाँकि शिक्षा और आजीवन सीखने वाले लोग, भूमण्डलीकरण के सभी योगदान से तभी लाभ उठा सकते हैं जब वे ज्ञान, कौशल और अपनी बुनियादी आजीविका को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक क्षमताओं और अधिकारों के साथ संपन्न हों। उन्हें रोजगार और आय, और एक स्वस्थ वातावरण की आवश्यकता है। ये आवश्यक शर्तें हैं जो उन्हें अपने स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक समुदायों में नागरिकों के रूप में पूरी तरह से भाग लेने के लिए सशक्त बनाती हैं। इन लक्ष्यों को तभी हासिल किया जा सकता है जब राष्ट्रीय सरकारें शिक्षा, बुनियादी ढांचे और पर्यावरण के लिए पर्याप्त संसाधन आवंटित करें और संस्थागत ढांचा तैयार करें जो व्यापक पहुँच  और अवसर सुनिश्चित करे अर्थात भूमण्डलीकरण खेल के नियमों के अधीन है (21)।

4.3.2. 21वीं सदी की शिक्षा : परिभाषा नहीं प्रतिमान-  अब प्रश्न उठता है कि 21वीं सदी की शिक्षा क्या है, क्या हम इसे परिभाषित कर सकते हैं? 21वीं सदी की शिक्षा क्या नहीं है की व्याख्या करके इसे परिभाषित करना आसान हो सकता है। 21वीं सदी की शिक्षा छात्रों का एक समूह नहीं है जो शिक्षक द्वारा कहे या लिखे गए प्रत्येक शब्द को साफ-सुथरी पंक्तियों में नोट बुक में लिख लेते हैं और फिर उसे याद कर लेतें हैं ताकि उन्हें ए+ मिल जाए। प्रत्येक बच्चा स्कूल के मानक वाले एक ही रास्ते पर है, यह भी देखना यह नहीं है। और यह ऐसा भी कुछ नहीं है जो हर दिन 4:00 बजे, या हर हफ्ते के शनिवार को, या हर साल के अप्रैल मई में समाप्त हो जाता है। यह एक आजीवन यात्रा है। 21वीं सदी की शिक्षा को परिभाषित करने से वितरित करना कहीं अधिक कठिन, जटिल और बारीक है। इसे जब सही तरीके से किया जाता है तो यह ऐसे वातावरण का निर्माण करता है जिसमें लगे हुए छात्र सक्रिय रूप से अपने सीखने को आकार दे रहे होतें हैं। 21वीं सदी में शिक्षकों की भूमिका प्रत्येक छात्र को सीखने में मदद करने वाली होनी चाहिए। यह रचनात्मकता को प्रेरित करता है सहयोग को प्रोत्साहित करता है। यह बच्चों को न केवल संवाद करना सिखाता है, बल्कि प्रभावी संचार की शक्ति भी पैदा करता है। ये ऐसे कौशल हैं जिन्हें छात्रों को आज और कल के गतिशील कार्यस्थल में  विकसित करने की आवश्यकता पर बल देतें हैं। स्पष्ट कर दें, हम यह सुझाव नहीं दे रहे हैं कि बच्चों को अब व्यावसायिक पथ के लिए कक्षा, परीक्षा या तकनीकी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं है। हम केवल इतना कह रहे हैं कि केवल वे चीजें ही काफी नहीं हैं। 21वीं सदी की शिक्षा वह है जो आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक बदलावों का जवाब देती है जो लगातार बढ़ती गति से हो रहे हैं। यह एक ऐसी शिक्षा है जो बच्चों को एक ऐसी दुनिया में सफल होने के लिए तैयार करती है, जहाँ उनके करियर के आधे से अधिक काम अभी तक मौजूद नहीं हैं। संक्षेप में, यह एक ऐसी शिक्षा है जो छात्रों को 21वीं सदी में फलने-फूलने के लिए आवश्यक कौशल और दक्षताएं प्रदान करती है(22)

4.3.3. बेहतर जीवन के लिए सीखते जाना : दुनिया की किताब-  यदि हम प्रत्येक छात्र को 21वीं सदी की शिक्षा प्रदान करना चाहते हैं, तो हमें व्यवहारिक अनुभवों के साथ शैक्षणिक सामग्री के उद्देश्यपूर्ण एकीकरण के माध्यम से गहन शिक्षण को बढ़ावा देना चाहिए जो छात्रों के लिए आजीवन सीखने वाले और जीवन में योगदानकर्ता बनने के लिए आवश्यक कौशल और मानसिकता का निर्माण करे। और ऐसा करने के लिए, हमें अपने स्कूल सिस्टम में सब कुछ देखने की जरूरत है। आवश्यक क्या है और अनावश्यक क्या है? कौन से पहलू ऐसे कौशल विकसित कर रहे हैं जिन्हें छात्र अपने शेष जीवन के लिए अपने साथ ले जा सकते हैं, बनाम ऐसे तथ्य जो उन्हें परीक्षण के लिए जानने की आवश्यकता है? हमें जानना चाहिए कि वे उस योग्यता और कौशल को कैसे विकसित कर सकते हैं जिससे हमारे छात्र स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद निर्माण करने में सक्षम हों। 21वीं सदी के लिए यूनेस्को की अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा आयोग की रिपोर्ट के शब्दों में शिक्षा एक आजीवन प्रक्रिया है। आजीवन सीखना कुछ मूलभूत नियमों पर आधारित है (23):

4.3.3.1. जानने के लिए सीखना : हम कौन हैं ?- ताकि हम जान सकें की हम कौन हैं। मनुष्य जो भी रचता है या जो भी कल्पना करता है वह सुख और आनंद के उद्देश्य से उदासीन नहीं है। परन्तु सुख के इतिहास की हमारी पूरी समझ हमें अपनी रचनाओं की खास भावनात्मक अवस्थाओं से जोड़ती है पर ये हमारी नहीं होती इसकी कुंजी अपना यह सत्य है कि वास्तव में हम कौन हैं हालाँकि  अभी भी इसे जानने और समझने वाली हमारी शुरुआती परिकल्पनाएं और शोध की पद्धतियां कोई सख्त निष्कर्ष प्रदान नहीं करतीं(24)। इक्कीसवीं सदी की शिक्षा का प्रथम और सनातन लक्ष्य खुद को जानना है हमें अपनी देह और मन-मस्तिष्क की प्रकृति, रूचि, गुण तथा दोष इत्यादि को जानने का साहस करना होगा हम तभी बदलाव और सुधार के नियंत्रण वाले इस अकेले कोने को छू सकेंगे। हमें अपने देह और मन मस्तिष्क को स्वस्थ रखना सीखना होगा

4.3.3.2. होने के लिए सीखना : समाज में अपनी जगह बनाना  - ताकि वह अपने व्यक्तित्व का बेहतर विकास कर सके और खुद को एक अर्थ दे सकें। और वह अधिक से अधिक स्वायत्तता, निर्णय और व्यक्तिगत जिम्मेदारी के साथ कार्य करने में सक्षम हो सके। इसके लिए, शिक्षा के किसी भी पहलू की अवहेलना नहीं करनी चाहिए उसे व्यक्ति की क्षमता, स्मृति, तर्क, सौंदर्य बोध, शारीरिक क्षमता और संचार कौशल को सीखना होगा। हमारी दुनिया तेजी से बदल रही है जहाँ हम केवल लगातार खरीदते जाना और बिना सावधानी बरतें उत्पादन करते जाना जारी नहीं रख सकते हमारी दुनिया को इस तरह से विकास करना होगा जिसमें हर कोई भावी पीढ़ी का ख्याल रखें, इसका अर्थ है नया कौशल सीखना और पूरी जिंदगी सीखते जाना। उदाहरण के लिए किसान सीख सकते हैं कि और अधिक कैसे उगाया जाए और इस तरह से उगाया जाए कि धरती और उसके पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे। इसके लिए शिक्षा के स्वरुप पर ध्यान केंद्रित करने से लोगों को मदद मिलेगी और जैसा की आकड़े दिखाते हैं कि साक्षरता और कृषि विस्तार कार्यक्रम किसानों की उत्पादकता को 12% तक बढ़ाने में मदद कर सकते हैं। इससे अधिक पैसा मिलेगा और भी गरीबी से मुक्त हो जाएंगे इसके लिए अधिक कौशल की जरूरत है जो  बदलती दुनिया के कार्य के अनुरूप हो(25)।

4.3.3.3. रहने के लिए सीखना : हम सामाजिक प्राणी हैं - ताकि बहुलवाद और शांति के प्रजातान्त्रिक मूल्यों के सम्मान की भावना को आपसी समझ से विकसित कर सके तथा अन्य लोगों को समझ सके तथा अन्योन्याश्रितता की सराहना कर संयुक्त परियोजनाओं को पूरा कर सके और संघर्षों का प्रबंधन कर सके। हम पृथ्वी पर रहते हैं और जब पृथ्वी की बात आती है तो हमें बड़े परिप्रेक्ष्य में सोचना होगा शिक्षा द्वारा लोगों को व्यक्तिगत रुप से नहीं बल्कि सामूहिक रूप से सोचना सिखाना चाहिए हमें साथ मिलकर कार्य करना होगा इसलिए शिक्षा में सावधानी बरतनी होगी यदि हम केवल अपने निजी कैरियर और आय कमाने के लिए या प्रसिद्धि के किसी बिग सिंड्रोम से ग्रसित होकर शिक्षा हासिल कर रहे हैं या दे रहें हैं तो यह पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है। हमें नए हरित कौशल को सीखना होगा और जिम्मेदारी से पेश आना होगा ताकि हम जलवायु परिवर्तन को रोक सके। जैसा कि यूनेस्को की शिक्षा पर वैश्विक निगरानी रिपोर्ट 2016 चेतावनी देती है कि यदि शिक्षा का विकास रुक जाए तो आपदा से संबंधित भारी दुर्घटनाएं 20 प्रतिशत तक बढ़ जायेंगी। तो आइए इस तरह की शिक्षा के लिए हम अपने आसपास देखें, हम पहले लोग नहीं हैं जिन्होंने इन मुद्दों के बारे में सोचा है, हम आदिवासियों के ज्ञान और परंपरा के देशी स्वरुप को निहार सकते हैं जिनके धरती के साथ रहने के अपने निजी परन्तु वैश्विक प्रासंगिकता वाले तौर तरीके हैं। हमारे स्कूल पृथ्वी को बचाने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं और केवल हम ही नहीं हमारे शिक्षक को भी परिवर्तन के बारे में सीखना चाहिए लेकिन सीखने की प्रक्रिया केवल स्कूल तक ही नहीं रुकनी चाहिए समुदायों और कंपनियों को पृथ्वी को बचाने के लिए नए तरीके तलाशने होंगे और स्वयं को चुनौतियों से निपटने के लिए तैयार रखना होगा

4.3.3.4. करने के लिए सीखना : सामाजिक ऋणों से मुक्ति - ताकि वह न केवल एक व्यावसायिक कौशल प्राप्त करे, बल्कि अधिक व्यापक रूप से, बड़ी संख्या में नई स्थितियों से निपटने और टीमों में काम करने की क्षमता विकसित कर पाये। इसका अर्थ युवा लोगों के विभिन्न सामाजिक और कार्य अनुभवों के संदर्भ में करना सीखना भी है, जो स्थानीय या राष्ट्रीय संदर्भ के परिणामस्वरूप अनौपचारिक हो सकते हैं, या औपचारिक हो सकते हैं, जिसमें वैकल्पिक अध्ययन और कार्य शामिल हो सकते हैं। उदाहरण के लिये विशेषकर गरीब देश तेजी से अपनी जनसँख्या वृद्धि कर रहे हैं तथा लोग बेहतर अवसरों के लिए शहरों में बस रहे लेकिन अधिक लोगों के शहरों में जाने पर सेवाओं पर दबाव बढ़ रहा है, तथा गन्दगी में वृद्धि हो रही है शिक्षा उन लोगों को रोजगार दिलाने में न केवल में मदद करती है बल्कि शहरों को हरा-भरा और स्वच्छ भी बना सकते हैं जैसा की शोध बताते हैं कि स्वच्छता अपराध को कम करती है। शायद सही प्रकार की शिक्षा भेदभाव में कमी और समुदायों को सशक्त बनाने में मदद कर सकती है।

4.3.3.5. विज्ञान और प्रौद्योगिकी : के लिए तथा के द्वारा सीखना - इक्कीसवीं सदी के इन लक्ष्यों की प्राप्ति में प्रौद्योगिकी पांच अलग-अलग चैनलों के माध्यम से शिक्षा का साधन बन सकती है, जैसे इनपुट, वितरण के साधन, कौशल, योजना के लिए उपकरण, और उन्हें एक सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ प्रदान करना। हालाँकि यह महत्वपूर्ण है कि प्रौद्योगिकी की भूमिका को कैसे देखा जाता है, इसमें अकसर कड़वे विभाजन होते हैं। जैसे-जैसे प्रौद्योगिकी ख़तरनाक गति से विकसित हो रही है, ये प्रभाग व्यापक होते जा रहे हैं। प्रौद्योगिकी और शिक्षा पर 2023 वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट इन बहसो का पता लगाने वाली है, यह उन शिक्षा चुनौतियों की जांच करेगी, जिनके लिए प्रौद्योगिकी का उचित उपयोग समाधान प्रदान कर सकता है (पहुँच , इक्विटी और समावेश; गुणवत्ता; प्रौद्योगिकी उन्नति; सिस्टम प्रबंधन), यह स्वीकार करते हुए कि प्रस्तावित कई समाधान हानिकारक भी हो सकते हैं रिपोर्ट तीन प्रणाली-व्यापी स्थितियों (प्रौद्योगिकी तक पहुँच, शासन का विनियमन और शिक्षक तैयारी) का भी पता लगाएगी, जिन्हें शिक्षा में किसी भी तकनीक की पूरी क्षमता तक पहुँचने के लिए पूरा करने की आवश्यकता है। आभासी प्रशिक्षण वह जगह है जहां प्रशिक्षु आभासी या नकली वातावरण में एक विशिष्ट कार्य या कौशल सीखता है। यह निकट भविष्य में विस्फोट करेगा क्योंकि यह प्रशिक्षण ड्राइवरों, पायलटों, अग्निशामकों, चिकित्सा पेशेवरों, आदि के लिए एक सुरक्षित और सटीक (अभी तक) लागत प्रभावी वातावरण प्रदान करता है, उन्हें वास्तविक खतरों के बिना तथा उत्पादकता को जोखिम में डाले बिना या मानव कार्यकर्ता को खतरे में डाले बिना एक कुशल कार्यबल बनाता है।

4.3.3.6. शिक्षक : जो तीर्थ बन जाये - एक चीज जिसे एक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों को देने की ज़रूरत होगी वह अधिक सूचना नहीं है। वे पहले से ही बहुत अधिक है। इसके बजाए जरूरत है सूचनाओं के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण बनाने की क्षमता विकसित करने की जो अन्तर करना सिखाये और यह समझाए कि दुनिया के व्यापक फलक पर महत्वपूर्ण क्या है और महत्वहीन क्या है। अगर आपको तेज़ चलना है तो आपको हल्का होना होगा। ऐसे में अगले कुछ दशकों में हम जो निर्णय लेंगे वह जीवन के भविष्य को आकार देगा। यदि हम में बदलाव के प्रति व्यापक दृष्टिकोण की कमी रही तो हमारे जीवन का भविष्य जूए से तय किया जाएगा।

5. निष्कर्ष : उत्साह और चिंता में संतुलन

हालाँकि शिक्षा के स्वरूप को लेकर 21वीं सदी की तकनीकी चुनौतियां अभूतपूर्व हैं, और राजनीतिक असहमति तीव्र, फिर भी यह आगे बढ़ती रहेगी यदि हम अपने ‘डर’ को नियंत्रण में रखें और अपने विचारों के बारे में थोड़ा अधिक विनम्र रहें (26), तो जोखिम का खतरा पैदा करने वाली इक्कीसवीं सदी की प्रगति, शिक्षा का आश्रय पाकर मानव के लिए सुख और शांति के अलग आयाम खोलेगी और समस्याओं शमन का मार्ग निकालेगी। शिक्षा में यह नया सृजन खुलेपन की परिधियों से स्वतंत्रता तथा मस्तिष्क में विराट अवकाश की माँग करता है ताकि यह पांचवीं औद्योगिक क्रांति के उत्साह और चिंता में संतुलन बना सके। हम उन चीजों को अनुभव करने में सक्षम हों जो पिछली पीढ़ियां केवल सपना देख सकती थीं। लेकिन इसके लिए हमें अपने कुछ पोषित कौशल, प्रथाओं और मानसिकता को भी पीछे छोड़ना होगा। 

सन्दर्भ

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