मंगलवार, 19 मई 2015

संसार चलता रहे इसके लिए दैहिक प्रेम जरुरी है लेकिन यह शांति पूर्वक चलता रहे इसके लिये आध्यात्मिक प्रेम जरुरी है।
.............................रीडिंग ....प्रेम की समझ
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बर्बादी का ग्लैमराइज़ेशन तो फिल्मो और साहित्य में होता था। कमाल है राजनीती और मिडिया की युगलबंदी की जिसने इससे भी आगे बर्बादी से उपजे दर्द का भी बाज़ारीकरण कर दिया। दर्द भी अब बेइंतहां मुनाफे वाला उत्पाद है। हम सब लूटते हुए विवश खरीददार हैं। तय एजेंडे पर बाजार में मिलेजुले विक्रेताओं का एकाधिकारी वर्चश्व है।
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कुछ बातें..
1..सुत्तनिपात में कथा है की असित नामक ब्राह्मण ने बालक गौतम के उज्जवल भविष्य की भविष्यवाणी की और दुःख प्रकट किया की वह स्वयं उस दिन को देखने के लिए और नए सिद्धान्त को सुनने के लिए जीवित नहीं रहेगा। बुद्ध के उपदेशो को सबसे पहले पांच ब्राह्मणों ने ही सुना और स्वीकार किया...इससे पता चलता है की ज्ञान और विचार की नई आलोचनात्मक बयार के लिए उस समय का भारत कितना आग्रही था।
लेकिन जब बौद्धों में कमियां आईं और उनकी आलोचना शुरू हुए तो खुद वो इसे पचा नहीं पाये। मत्तविलास प्रहसन नाटक में ब्राह्मणों कापालिकों और बौद्धों की कमियों और बुराइयों पर उपहास किया गया था इस बात से किसी को बुरा नहीं लगा सिवा बौद्धों के जिन्होंने नाराज होकर नाटक लिखने वाले राजा का दरबार छोड़ दिया। यह एक महत्वपूर्ण कारक भी रहा बौद्धों के पतन में।
2...और हाँ बुद्ध का उपदेश था क्या ...उन्हें ज्ञान मिला कैसे...उसी सुजाता से...जो गा रही थी ...
"वीणा के तारो को इतना न कसो की वो टूट जाएँ
वीणा के तारों को इतना न ढीला करो की वो बजे ही नहीं"
यही है बुद्ध की मध्यम प्रतिपदा...मुख्य उपदेश..
लेकिन अब के बौद्धों में अतिवाद का जो बोलबाला है वह किसी से कम नहीं है।
3...बुद्ध ने एक दृष्टान्त देते हुए कहा है कि किसी व्यक्ति को विष से बुझा तीर लग जावे और उसके परिजन और वैद तीर निकालने की अपेक्षा तीर मारने वाले की जाति, वर्ण, गोत्र, स्थिति,अवस्था आदि से सम्बंधित प्रश्न पूछे इससे उस व्यक्ति का कष्ट दूर नहीं होगा। हमारी प्राथमिकता रोग के निदान पर होनी चाहिए।
वर्तमान में बुद्ध के प्रोफाइल पिक्चर लगाने वाले समस्या के निदान पर ध्यान न देकर जात और वर्ण पर ही सारा फोकस रखतें हैं। अब तो दर्द से कराहते व्यक्ति की भी पहले पृष्ठभूमि देखी जाती गई।
बुद्ध पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं..
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  • Anshu Ashutosh this is conflict study about buddha so dont confuse and follow say and do system of buddha ji.........................
  • Santosh Yadav मैं आप से सहमत नहीं हूँ rajiv sr
  • राजीव पाण्डेय Santosh Yadav भाई मैं इसी खूबसूरत अवस्था और जीवन की उम्मीद में रहता हूँ जहाँ असहमत व्यक्ति भी मित्र रहे ..मेरी इस पोस्ट का भी यही उद्देश्य है ...शायद इसे ही विवेक कहतें हैं जो भौतिक मन से श्रेष्ठ है ..जिसे प्राप्त करने की चेष्टा भी श्रेष्ठ कर्म है ....बुद्ध का अंतिम वाक्य ..परिश्रम के साथ चेष्टा करो ..शायद इसी के बारे में था .

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