मंगलवार, 17 नवंबर 2015

हँसता जीवन

कोमल तन-मन के भीतर
हँसता जीवन देखा मैंने।
नन्हे हाथो-पाँवो की लय गति में
अपना खोया बचपन देखा मैंने।
शैलों पर उगते सूरज की
प्रथम रश्मि को आगे बढ़ते देखा मैंने।
ममता में खोये बचपन को,
अहसासों में घुलते देखा मैंने।
स्वप्नदर्शिनी बचपन को कर्मज्योति के नयनो से,
स्नेह बरसते देखा मैंने।
खुशियों में खिलते नीलकमल को
प्रेम सिंधु में बहते देखा मैंने।
हृदय गह्वर के कोने में,
छिपी हुई लहरों को देखा मैंने।
मानवता को पालने में सोये,
उज्जवल दीप चमकते देखा मैंने।
श्रीप्रकाश पाण्डेय 17nov.2015

रविवार, 1 नवंबर 2015

नन्ही परी

रेशम पट से लिपट-लिपट कर,
उन बाहों में झूल-झूल कर,
तुम भी इसी मोड़ पर आ जाना।
उस आंगन में घूम-घूम कर,
दहलीज की मिट्टी चूम चूम कर,
तुम भी इसी मोड़ पर आ जाना।
मासूम सवालों को पूछ पूछ कर,
अक्षर शब्दों को सीख सीख कर,
तुम भी इसी मोड़ पर आ जाना।
लोरी गीत पर झूम झूम कर,
हर कथा-कहानी को टोक-टोक कर,
तुम भी इसी मोड़ पर आ जाना।
चाभी वाली गाड़ी ऐंठ-ऐंठ कर,
बरसात में भीग भीग कर,
तुम भी इसी मोड़ पर आ जाना।
हर गली मोहल्ले में खो खो कर,
पिछले दरवाजे धीरे से आ-आ कर,
तू भी इसी मोड़ पर आ जाना।
स्कूल से चौराहा तक जा जा कर,
सजी दुकाने देख-देख कर,
तू भी इसी मोड़ पर आ जाना।
हर दरवाजे पर दीप जला जला कर,
उजियारा राहो में फैला फैलाकर,
तुम भी इसी राह पर आ जाना।
सब के आंसु पोंछ-पोंछ कर,
हर खुशियों को बांट बांट कर,
तुम भी इसी राह पर आ जाना।
और हां सारा बचपन मत छोड़-छोड़कर आना।
छोटी-छोटी जेबो में कुछ चुरा चुरा कर लाना।
कुछ रातो में नींद छोड़ छोड़ कर जाना।
बड़ा जरुरी है उन जेबो का आ कर जाना।
तुम भी इसी मोड़ पर आ जाना।
--श्रीप्रकाश पान्डेय 30oct 2015

History of Urdu Literature

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