शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

पता होगा

वक्त भी उड़ता रहा है रेत ओ हवा की तरह,
साहिल पर बैठे तलबगारों को पता होगा।
जुर्रतें मेरी कम है मशविरा दे नहीं सकता
मगर अरसे के बाद यारों को पता होगा।
अय्याशियों से तज़रबा नही बढता,
जीने का कोई और तरीका दयारों को पता होगा।
खो जाती हैं दिमागी हलचलें,
लुफ्ते दिल का नशा पैमानों को पता होगा।
होश की ताकत कहाँ की खलल डाले,
इसकी फितरत शामे बाजारों को पता होगा।
यूँ तो शराबी से बेहतर कोई इसां नहीं,
मगर कितने लौटे होश में चौबदारों को पता होगा।।....
..............…........................श्रीप्रकाश पाण्डेय

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