शनिवार, 29 दिसंबर 2018

शिक्षा : परिवर्तन शाश्वत है..

मानव अभूतपूर्व क्रांति का सामना कर रहा है, हमारी सभी पुरानी रचनायें टूट रही हैं, और उन्हें बदलने के लिए अब तक कोई नई रचना उभरी नहीं है। सवाल है कि हम खुद को और हमारे बच्चों को ऐसे अभूतपूर्व परिवर्तनों और कट्टरपंथी अनिश्चितताओं की दुनिया के लिए कैसे तैयार कर सकते हैं ? उस बच्चे को क्या सिखाया जाना चाहिए जो अब के बाद की दुनिया में उसे जीवित रहने और विकसित करने में मदद करेगा ? कुछ पाने के लिए उसे किस तरह के कौशल की आवश्यकता होगी, वह दृष्टि उसे कैसे प्राप्त होगी जिससे वह यह देख सके कि उसके चारों ओर क्या हो रहा है, और जो जीवन की भूलभुलैया पर मार्गदर्शन करे ?

इक्कीसवीं शताब्दी में हमें बड़ी मात्रा में जानकारी मिली है, जो सेंसर तो नहीं है अलबत्ता गलत जानकारी फैलाने या अपरिवर्तनीयताओं के साथ हमें विचलित करने में व्यस्त है । स्मार्टफ़ोन है तो आप हर सूचना से बस एक क्लिक दूर हैं, जो इतने विरोधाभासी हैं कि यह जानना मुश्किल है कि किस पर विश्वास करना है। इसके अलावा, अनगिनत अन्य चीजें भी सिर्फ एक क्लिक दूर हैं, जिसे ध्यान में रखा जा सकता है, जब राजनीति या विज्ञान बहुत जटिल लगते हैं तो यह हमें कुछ मजेदार कुत्ते बिल्लियों की वीडियो, मनोरंजन, सेलिब्रिटी गपशप या पोर्न की तरफ मोह लेता हैं।

ऐसी दुनिया में, एक चीज जिसे एक शिक्षक को अपने विद्यार्थियों को देने की ज़रूरत होगी, वह अधिक सूचना नहीं है। वे पहले से ही बहुत अधिक है। इसके बजाए जरूरत है सूचनाओं के प्रति एक समग्र दृष्टिकोण बनाने की क्षमता विकसित करने की जो अन्तर करना सिखाये और यह समझाए कि दुनिया के व्यापक फलक पर महत्वपूर्ण क्या है और महत्वहीन क्या है। अगर आपको तेज़ चलना है तो आपको हल्का होना होगा।

अगले कुछ दशकों में हम जो निर्णय लेंगे वह जीवन के भविष्य को आकार देगा। यदि हम में बदलाव के प्रति व्यापक दृष्टिकोण की कमी रही तो जीवन का भविष्य जूए से तय किया जाएगा।

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