राजीव कुमार पाण्डेय
गांधी को न यकीन करने वाली आइंस्टीन की आने वाली पीढ़ी अब आ चुकी है। नई छवियों के निर्माण करने वाले अपवादों के विस्तारण तथा उद्देश्यपरक झूठ के संक्रामक बुखार को धारण करने वाली सोशल मीडिया के दौर में महात्मा गांधी चरखासुर के नए नाम से प्रचारित हो रहे हैं। हालांकि यह नई बात नहीं है, गांधी जी को अंग्रेजों ने अपना शत्रु माना, अंबेडकर ने विषैले दांतो वाला, वामपंथियों ने क्रांति की पनौती, जिन्ना ने एक चालाक हिंदू तो हिंदू गोडसे ने गांधी का वध ही कर दिया। लेकिन गांधी सबसे अलग हैं। गांधीजी की परवरिश, उनका अनुभव तथा उनका अर्जित बौद्धिक विकास इस बात की इजाजत नहीं देता था कि वह बिना जाने समझे किसी को अपना शत्रु समझते दरअसल उन्होंने कभी भी किसी को अपना स्थायी शत्रु नहीं समझा। उन्हें मनुष्य जाति की भलमनसाहत तथा सरकारों की उदारता तथा उनके अपने नागरिकों के प्रति दायित्वबोध में हमेशा यकीन रहा। गांधी का कहना था कि अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दूसरों को समझा बूझाकर सही काम करने के लिए राजी कर लेना मैने हमेशा आसान पाया। गांधी का कार्यकारी अहिंसक जीवन दो हिंसक विश्व युद्धों के बीच का है जहां दुष्ट सत्ता की उपस्थिति से मानवता पीड़ित थी। गांधी ने दुष्ट सत्ता से निपटने के लिए कुछ शाश्वत उपायों को प्रचलित किया, जो आज भी प्रासंगिक हैं।
सत्याग्रह और अहिंसा
दुष्ट
सत्ता के अन्याय और अत्याचार के समक्ष दो स्थितियां बनती हैं। पहला कि हम विरोध न
करें और उसकी अंधभक्ति का रास्ता अख्तियार कर लें,
लेकिन यह कायरता है। दूसरा, कि हम निडरता दिखाएं
तथा उसका विरोध करें, जो युद्ध या विप्लव के रूप में प्रकट होगा।
ज़ाहिर है कि इसमें हिंसा का समावेश होगा। गांधीजी ने एक तीसरा विकल्प प्रस्तुत
किया, वह था सत्याग्रह अर्थात सत्य के प्रति आग्रह और अहिंसा । गांधी के अनुसार
सत्य एक सार्वभौम मूल्य है। गांधी का यह एक अनोखा हथियार था जिसका जवाब किसी भी
दुष्ट सत्ता के पास नहीं है। उन्होंने असत्य को सत्य से जीतने की बात की। वह इस
बात पर अडिग थे कि भारत में अंग्रेजों के शासन को कभी भी सत्य नहीं ठहराया जा सकता
था। गांधी के अनुसार स्वराज और न्याय सत्य है और इसलिए ही इस पर उनका आग्रह है। यह
एक नैतिक शस्त्र है । गांधीजी के अनुसार अहिंसा,
पशुता से मनुष्यता की तरफ
प्रयाण का मानक है। उनके अनुसार अहिंसा सांस्कृतिक मनुष्य की एक चरम उपलब्धि है।
यह सुषुप्तावस्था में रहती है, लेकिन जब यह जागती हैं तो प्रेम बन जाती है, जो संसार की गतिशीलता
का साधन है।
एकता
गांधी
का मानना था कि किसी भी शक्तिशाली और संगठित दुष्ट सत्ता से व्यक्तिगत तौर पर
निपटना संभव नहीं है। यही नहीं हम सामाजिक फूट के साथ भी इससे नहीं निपट सकते।
अपनी सत्ता को मजबूती देने के लिए अंग्रेजों ने फूट डालो और राज करो की नीति पर
काम किया। उन्होंने न सिर्फ धार्मिक विभाजनों को बड़ा किया बल्कि हिन्दू धर्म की
आंतरिक कमियों का लाभ उठाकर दलितों को भी आजादी के लिए चल रहे संघर्ष से दूर रखने
की कोशिश की। गांधी ने एक शक्तिशाली सत्ता से निपटने के लिए खिलाफत आंदोलन के
माध्यम से न सिर्फ हिंदू मुस्लिम एकता पर जोर दिया बल्कि दलितों को मुख्य धारा में
बनाए रखने के लिए आमरण अनशन करके पूना पैक्ट करवाया। गाँधी के भारत में क्रियाशील
होने के पूर्व की राजनीति वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाली थी लेकिन गांधी ने
वर्ग समन्वय की एक अनोखी राजनीतिक शैली को विकसित किया।
अपनी मांग की वैधता निर्मित करना
अंग्रेजों
ने भारतीयों के स्वशासन की मांग को यह कह कर ख़ारिज किया की भारतीय समाज की कमियां
जैसे स्त्रियों की दशा, धार्मिक कलह, तथा अस्पृश्यता जैसी बुराइयां इस बात की इजाजत
नहीं देती, तथा भारतीयों को स्वशासन के लिए अयोग्य बनाती हैं। अंग्रेजों
ने भारत में अपने शासन को एक सांस्कृतिक परियोजना बताया तथा इसे श्वेत व्यक्ति का
बोझ सिद्ध किया। गाँधीजी ने न सिर्फ उनके दावों को खोखला सिद्ध किया बल्कि पश्चिमी
सभ्यता को अनैतिकता का प्रचार करने वाली बताया । साथ ही गांधीजी ने अपनी मांग को नैतिक रूप से मजबूत करने के लिए
भारतीय समाज की अपनी बुराइयों को भी दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम
सौहार्द, अस्पृश्यता उन्मूलन तथा महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए
लगातार संगठित प्रयास किया।
असहयोग
गांधीजी
ने प्रथम विश्व युद्ध में अंग्रेजों की अच्छाई में विश्वास करके उनकी मदद की। वे
भारत में घूम-घूम कर युवकों से सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते रहे। इसके
लिए उन्हें भर्ती करने वाला सार्जेंट भी कहा गया। गांधी जी का मानना था कि अंग्रेज
इस सहयोग के बदले में भारतीयों को स्व शासन देने की दिशा में आगे बढ़ेंगे। लेकिन
इसका उल्टा हुआ अंग्रेजों ने एक दमनात्मक कानून रॉलेट एक्ट पारित कर दिया जिसे न
अपील न वकील न दलील के रूप में जाना जाता था। इसी बीच 1919
में जलियांवाला बाग काण्ड भी हो गया। गांधी ने अंग्रेजी सत्ता को शैतानी कहा तथा
अब असहयोग की नीति अपनायी। गांधीजी जो एक समय अंग्रेजों को अच्छा समझ कर सहयोग किए
थे उनके शैतानी होने पर अब उनके साथ असहयोग की बात करने लगे। गांधी जी ने कहा कि
सरकार को बता दो कि चाहें फांसी पर लटका दे, चाहें जेल में बंद कर दे, उसे हमारा सहयोग किसी
भी हालत में नहीं प्राप्त होगा। अब हम किसी दुष्ट सत्ता का सहयोग नहीं कर सकते ।
सविनय अवज्ञा
अंग्रेजों
ने भारतीय शासन पर बात करने के लिए 1927 में साइमन कमीशन भेजा परंतु इसमें किसी भी
भारतीय को नहीं रखा गया। भारत में अंग्रेजी कानून भारतीय मानस, भारतीय समाज तथा भारतीय
अर्थव्यवस्था के विरुद्ध था। गांधी जी का कहना था कि ऐसा कोई भी कानून जिसके निर्माण
में भारतीय आकांक्षा शामिल नहीं है और उसे किसी दुष्ट सत्ता ने जबरदस्ती भारतीयों
पर थोप रखा है तो उसे भारतीयों को मानने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। उदाहरण के
लिए गांधी जी ने नमन कानून को लिया। गांधी जी का कहना था कि नमक कानून, जो कानून
की पुस्तक में कलंक जैसा है, उसे वो तोड़ेंगे और इसके लिए उन्हें जो भी सजा दी
जाएगी उसे भुगतने के लिए वो तैयार रहेंगे। उन्होंने सिर्फ अब एक ही शर्त रखी कि
स्वराज पाने के लिए सत्य और अहिंसा की प्रतिज्ञा का ईमानदारी से पालन हो।
करो या मरो
एक
समय ऐसा भी आता है जब दुष्ट सत्ता के पाप का घड़ा भर जाता है तथा पीड़ितों के सब्र
का बांध टूट जाता है। गाँधी जी के अनुसार अंग्रेजों की एक व्यवस्थित अनुशासित
अराजकता का अब अंत अब होना ही चाहिए भले ही इसका परिणाम अब कुछ भी हो । उन्होंने
कहा कि एक मंत्र है, छोटा सा मंत्र, जो मैं आपको देता हूँ । उसे आप अपने ह्रदय में
अंकित कर सकते हैं। वह मंत्र है करो या मरो, या तो हम भारत को आजाद कराएँगे या इस
कोशिश में अपनी जान दे देंगें। अपनी गुलामी का स्थायित्व देखने के लिए हम जिन्दा
नहीं रहेंगें।
इस
प्रकार गाँधीजी ने अंग्रेजी दुष्ट सत्ता से निपटने के लिए इन हथियारों का प्रयोग
किया । लेकिन अब के अय्यार दुष्ट सत्ता ने जनता पर नियंत्रण के अपने हथियार को
जादुई बना लिया है। फिर भी गाँधी नाम से वह डरी रहती है क्योंकि सत्ता के विरुद्ध
गाँधी की "संज्ञानात्मक दासता की दुश्चिन्तायें" एक नागरिक के समक्ष
चेतावनी के तौर पर अभी भी जिंदा है। आप गांधी के ख़िलाफ़ गोडसे बन सकतें हैं परन्तु
किसी अत्याचारी दुष्ट सत्ता के ख़िलाफ़ आपका गाँधी बनना ही बेहत्तर विकल्प है। हाँ
कोई भी दुष्ट सत्ता कभी नहीं चाहेगी की आप गाँधी बने क्योंकि दमन के लिए सहूलियत
भरी हिंसा उसे बहुत भाती है। इसके लिये वह हमेशा अपना सक्षम प्रयास करती रही है।
2 टिप्पणियां:
लेखक श्री राजीव कुमार पांडेय जी को साधुवाद! बेहतरीन लेख।
लेखक श्री राजीव कुमार पांडेय को साधुवाद! बेहतरीन लेख।
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