बुधवार, 29 नवंबर 2023

कैथोलिक धर्म सुधार : कारण


लूथर के विरोध आंदोलन के कारण रोमन कैथोलिक धर्म और उसके सर्वोच्च अधिकारी पोप के सम्मान को ठेस पहुंची और उसका महत्व दिन-ब-दिन कम होने लगा। अतः परिस्थितियों को देखकर और समझकर विरोध को समाप्त करने के लिए उन्होंने रोमन कैथोलिक धर्म में कुछ सुधार करने का निर्णय लिया। रोमन कैथोलिक सुधारकों द्वारा बनाई गई सुधार योजनाओं को रोमन कैथोलिक सुधार आंदोलन या प्रति-धर्म सुधार कहा जाता है। प्रति- धर्म सुधार  के लिए निम्नलिखित कारण और परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं:

1. प्रोटेस्टेंट अनुयायियों के बीच पारस्परिक मतभेद का लाभ उठाना

प्रोटेस्टेंट धर्म के प्रवर्तक मार्टिन लूथर थे, लेकिन अन्य देशों के धार्मिक सुधारकों से उनके मतभेद के कारण प्रोटेस्टेंट संप्रदाय की एकता टूट गई और यह तीन भागों में विभाजित हो गया। कैथोलिक सुधारकों के लिए यह अवसर उपयुक्त था। प्रोटेस्टेंट धर्म के बीच आपसी कलह का लाभ उठाते हुए उन्होंने कैथोलिक धर्म में सुधार के प्रयास शुरू किये, जिसमें उन्हें काफी सफलता मिली, क्योंकि प्रोटेस्टेंट धर्म की तीन शाखाओं लूथरनिज़्म, ज़्विगिज़्म और कैल्विनिज़्म के बीच मतभेद बढ़ते जा रहे थे।

2. ट्रेंट की परिषद: कैथोलिक धर्म में आंतरिक सुधार

कैथोलिक धर्म के पुनरुद्धार के लिए 1562 ई. में ट्रेंट नामक स्थान पर एक सभा का आयोजन किया गया, जिसमें कैथोलिक धर्म के नये नियम प्रतिपादित किये गये। ट्रेंट की परिषद में निम्नलिखित मुख्य सिद्धांतों की पुष्टि की गई:

(ⅰ) कैथोलिक चर्च का मुखिया पोप ही रहेगा ।

(ii) धार्मिक ग्रंथों की व्याख्या पर चर्च का एकाधिकार रहेगा।

(iii) कैथोलिकों के लिए लैटिन भाषा में एक नई बाइबिल तैयार की जानी चाहिए।

इसके अलावा इस बैठक में कुछ सुधारों की भी घोषणा की गई, जिनमें प्रमुख निम्नलिखित थे:

(i) चर्च के द्वारा धार्मिक संस्थाओं के पदों को बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

(ii) सभी बिशपों को अपने-अपने कर्तव्य निभाने चाहिए।

(iii) पुजारियों के लिए उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाए।

(iv) आवश्यकतानुसार आम लोगों की भाषा में उपदेशों का प्रचार-प्रसार करना।

3. महान धार्मिक सुधारक : समर्थन एवं सहयोग

सौभाग्य से कैथोलिकों को कुछ महान धार्मिक सुधारकों का समर्थन एवं सहयोग प्राप्त हुआ जो कैथोलिक धर्म में व्याप्त दोषों को दूर करना चाहते थे। इनमें इग्नासीयस लोयोला का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, जिन्होंने अपने आदर्श जीवन और अच्छे व्यवहार के माध्यम से धार्मिक सुधर की  प्रतिक्रिया को महत्व दिया। इसमें स्पेन के राजा फिलिप ने भी सहयोग किया।

4. जेसुइट सोसायटी: संगठन

प्रोटेस्टेंटवाद का विरोध करने के लिए एक जेसुइट समाज की स्थापना की गई थी। इस संगठन की स्थापना एक स्पेनिश सैनिक इग्निसियस लोयोला ने की थी। लोयोला को सर्वसम्मति से इस समाज का जनरल चुना गया। चूँकि इस समाज का संगठन सैन्य व्यवस्था पर आधारित था, इसलिए अनुशासन बहुत कठोर था। जेसुइट्स को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे जिसके कारण वे कैथोलिक धर्म के अग्रणी रक्षक बन गये। प्रत्येक सदस्य को चार वचन लेने होते थे, पहला सादगी में रहना, दूसरा ब्रह्मचर्य की तीसरी जेसुईट संस्था के आदेशों का पालन करना और चौथा पोप के प्रति समर्पण रखना। इस समाज या संघ के प्रयासों का परिणाम यह हुआ कि फ्रांस, जर्मनी, पोलैंड आदि देशों में प्रोटेस्टेंटवाद के बढ़ते प्रभाव को रोका जा सका।

5.कैथोलिक विरोधी  किताबों पर प्रतिबन्ध 

ट्रेंट की परिषद के अनुसार पोप द्वारा उन पुस्तकों की एक सूची तैयार करने का अनुरोध किया गया था जो कैथोलिक विरोधी थीं। अत: पोप ने निषिद्ध पुस्तकों की एक सूची तैयार की और उसमें वर्णित पुस्तकों को कैथोलिकों के लिए पढ़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया। इसके अलावा धार्मिक शिक्षा के लिए उपदेश पुस्तकों में संशोधन किया गया और नई पुस्तकें तैयार की गईं।

6. धार्मिक न्यायालय (न्यायालय) की स्थापना 

कैथोलिकों के नैतिक और धार्मिक आचरण को ऊपर उठाने का प्रयास किया गया। निर्धारित मानकों से नीचे आचरण करने वालों के लिए धार्मिक अदालतें (इन्क्विज़िशन) स्थापित की गईं। इसकी स्थापना पहले इटली में और फिर अन्य देशों में हुई। इसकी स्थापना के लिए उस राज्य से मंजूरी लेनी पड़ती थी. कैथोलिक चर्च की आलोचना करने वालों को इन अदालतों में पेश किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया। इस अदालत को किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने, उसकी संपत्ति ज़ब्त करने और यहाँ तक कि उसे मृत्युदंड देने की भी शक्ति थी। इन अदालतों के निर्णयों के संबंध में अंतिम अपील सुनने का अधिकार केवल पोप को था।

इस प्रकार, इन उपरोक्त संस्थाओं या साधनों के माध्यम से कैथोलिक चर्च को अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने और प्रोटेस्टेंटवाद के बढ़ते प्रभाव को रोकने में काफी सफलता मिली। इनके अलावा, अन्य कारक भी प्रति-सुधार आंदोलन की सफलता के लिए सहायक साबित हुए। सबसे पहले, सोलहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों के पोप अच्छे चरित्र वाले और धर्मनिष्ठ थे। दूसरे, प्रोटेस्टेंटों के पास लूथर जैसे नेतृत्व का अभाव था। इसके अलावा, राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव ने भी प्रति-सुधार आंदोलन की सफलता में योगदान दिया। अपने राजनीतिक हितों के कारण फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, ऑस्ट्रिया, पोलैंड आदि देशों ने पोप से समझौता कर उन्हें समर्थन प्रदान किया, जिससे इस आंदोलन को बल मिला।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

History of Urdu Literature

  ·        Controversy regarding origin Scholars have opposing views regarding the origin of Urdu language. Dr. Mahmood Sherani does not a...