इस क्रान्ति के मूल में
शासकों की रूढ़िवादी नीति के विरोध में जनता का विरोध था। 1815 ई. से 1830 ई. के
दौर में यूरोप में उन सरकारों का राज था जो किसी भी प्रकार के परिवर्तनों के
विरुद्ध थीं। ये सरकारें समाज में एकमात्र अपना साम्राज्य स्थापित करना चाहती थीं
तथा अपने रूढ़िवादी सिद्धान्त को उस युग में स्थापित करना चाहती थीं जबकि आर्थिक
एवं बौद्धिक क्रान्ति के कारण समाज उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं था।
1. चार्ल्स X की
प्रतिक्रियावादी नीति-
चार्ल्स X
घोर
प्रतिक्रियावादी थ। इतिहासकार लिप्सन के अनुसार,
"आर्टोइस का चार्ल्स दसवें के नाम पर शासक बनना
प्रतिक्रियावाद को प्रेरणा मिलना था। यह नया राजा बहुत आरम्भ से ही स्वयं को
राजतन्त्रवादियों का नेता मानता था।" सिंहासन पर बैठते समय उसने लुई XVIII
द्वारा
घोषित चार्टर पर चलने की बात कही थी, लेकिन
सिंहासन हाथ में आते ही उसकी प्रतिक्रियावादी नीति यथाशीघ्र सामने आने लगी। वह
राजा के दैवी अधिकार के सिद्धान्त का समर्थक था। उसका कहना था कि इंग्लैण्ड के
राजा की भांति वैध शासक के रूप में रहने की अपेक्षा मैं जंगल में लकड़ी काटना अधिक
पसन्द करूंगा।
2. चार्ल्स द्वारा चर्च की प्रधानता –
चार्ल्स X
चर्च
की सत्ता का समर्थक था। वह चर्च के लिए अपना सिंहासन भी छोड़ने के लिए तैयार था।
वह चाहता था कि चर्च और राज्य एक हो जाएं। वह चर्च की शक्ति को पुनः सुदृढ़ करना
चाहता था। 1789 ई. की क्रान्ति के
दौरान चर्च से शिक्षा देने का जो अधिकार छीन लिया गया था वह अधिकार उसे पुनः दे
दिया गया। फ्रांस के विश्वविद्यालय का सर्वाध्यक्ष एक पादरी को बनाया गया तथा
कैथोलिक धर्म विरोधी अध्यापकों का बहिष्कार किया जाने लगा। चर्च की आलोचना करने
वाले व्यक्ति को सात वर्ष के कठोर कारावास के दण्ड देने की व्यवस्था की गयी। वह जो
राज्य स्थापित करने जा रहा है था पादरियों द्वारा, पादरियों
का और पादरियों के लिए था ।
3. क्रान्ति के सिद्धान्तों तथा मान्यताओं की
अवहेलना –
चार्ल्स X
क्रान्ति
के सिद्धान्तों तथा जनता के अधिकारों का घोर विरोधी था। प्रारम्भ में उसने मेरी
अन्तवानेत के साथ मिलकर क्रान्ति को दबाने का असफल प्रयास किया था,
असफल
होने के बाद वह विदेश भाग गया। वहां भी वह निरन्तर क्रान्ति के विरोध का प्रचार
करता रहा, कालान्तर में फ्रांस के
सिंहासन पर बैठने के पश्चात् उसने फ्रांसीसी क्रान्ति के सिद्धान्तों तथा
मान्यताओं का खुलकर विरोध किया। उसने प्रेस की स्वतन्त्रता समाप्त कर दी।
पत्रिकाओं पर भी कड़ा प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
4. राष्ट्रीय धन का अपव्यय-
सिंहासन पर बैठते ही
सर्वप्रथम चार्ल्स X ने उन कुलीन एवं
पादरियों की दयनीय अवस्था पर विशेष ध्यान दिया जिनकी सम्पत्ति फ्रांसीसी क्रान्ति
के दौरान छीन ली गयी थी। इस जब्त की हुई सम्पत्ति को लुई XVIII
के
आज्ञा-पत्र द्वारा वैधानिक रूप से स्वीकार कर लिया गया था, इसलिए
कुलीन या पादरी इसे पुनः प्राप्त नहीं कर सकते थे। अतः चार्ल्स ने ऐसे कुलीनों एवं
पादरियों को मुआवजा देने का निश्चय किया। उसके इस कार्य में राजकीय कोष से दो करोड़
अस्सी लाख फ्रांक खर्च हो गए। इससे राष्ट्र को बहुत हानि हुई,
लेकिन
इस क्षतिपूर्ति का एक नया तरीका निकाला गया जो चार्ल्स के लिए घातक सिद्ध हुआ।
उसने जनसाधारण से लिए गए ऋण के सूद की दर पांच प्रतिशत से घटाकर तीन प्रतिशत कर
दी। सूद की दर घटाने से सरकारी बॉण्ड खरीदने वाले मध्यवर्ग को काफी क्षति उठानी
पंड़ी। अतः मध्यवर्ग की आय काफी कम होने से वह सरकार से काफी रुष्ट हो गया।
5. उदारवादियों का प्रभाव-
चार्ल्स X
की
अत्यधिक प्रतिक्रियावादी नीति का परिणाम यह हुआ कि उदारवादियों का प्रभाव
उत्तरोत्तर बढ़ता चला गया। इसका स्पष्ट उदाहरण'
1827 ई. के आम चुनावों में देखने को मिलता है। इस चुनाव में
प्रतिक्रियावादियों ने मतदाताओं पर अनेक प्रकार से दबाव डाला,
लेकिन
फिर भी राजसत्तावादियों के 125 के
जवाब में उदारवादियों को 428
स्थान प्राप्त हुए। इस परिणाम से चार्ल्स X काफी
चिन्तित हुआ, अतः उसने चैम्बर को भंग कर
दिया। इसके बाद चुनाव पुनः हुआ, लेकिन
इस बार भी उदारवादियों को ही बहुमत प्राप्त हुआ।
6. तात्कालिक
कारण:
चार्ल्स दशम् का सेण्ट
क्लाउड का अध्यादेश - 1830 की
फ्रांसीसी क्रान्ति का तात्कालिक कारण चार्ल्स के सेण्ट क्लाउड के अध्यादेश (Ordinance
of St. Cloud) थे। चार्ल्स दशम् ने अपने विरोधियों के प्रभाव
को नष्ट करने के उद्देश्य से अध्यादेश जारी किया जिसके द्वारा चार दमनकारी कानून
लागू किए गए। ये कानून थे-
(अ)
प्रेस की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
(ब)
नव निर्वाचित प्रतिनिधि-सभा को उसकी अवधि से पूर्व ही भंग कर दिया गया।
(स) सम्पत्ति-योग्यता
को ऊंचा करके मताधिकार को अत्यन्त सीमित कर दिया गया। इस कानून द्वारा 75
प्रतिशत नागरिक मताधिकार से वंचित हो गए।
(द)
सभा की कार्यावधि 7 से 5
वर्ष कर दी गयी।
चार्ल्स X
का
यह अध्यादेश वास्तव में प्रतिक्रिया की अन्तिम सीमा थी। जनता और पत्रकारों ने इस
अध्यादेश का प्रबल विरोध किया। उदारवादी, गणतन्त्रीय
विचार वाले, मजदूर तथा बोनापार्ट पक्ष वाले
सब चार्ल्स X के विरोधी हो गए। अतः इन चार
अध्यादेशों ने फ्रांस की 1830 ई. की
क्रान्ति का विस्फोट कर दिया गया। चारों और क्रान्ति के नारे लगाए जाने लगे। अन्त
में 27 जुलाई को क्रान्ति प्रारम्भ हो
गयी।
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