शनिवार, 13 दिसंबर 2014

इतिहास क्या है..इ एच कार

                 इतिहासकार और उसके तथ्य
1896 ऐक्टन -''सभी सूचनाएं हमारी मुठ्ठी में हैं और हर समस्या समाधान के लिए पक चुकी है ''
60 साल बाद प्रो सर जार्ज क्लार्क -''वस्तुगत  ऐतिहासिक सत्य जैसी कोई चीज नहीं होती ''

ऐक्टन के विचारों में उत्तर विक्टोरियाई काल का निश्चयात्मक विश्वास तथा परिष्कृत आत्म विश्वास  बोल रहा है जबकि सर जार्ज क्लार्क 'बीट' पीढ़ी के संशयवाद और  उद्विग्नता को व्यक्त कर रहें हैं।

इतिहास क्या है ? जब हम इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश करतें हैं तब जाने अनजाने में 'समय 'में अपनी अवस्थिति को प्रतिध्वनित करतें हैं और हमारा उत्तर उस वृहत्तर प्रश्न का एक भाग होता है कि जिस समाज में हम रहतें हैं उसके बारे में हम क्या सोचतें हैं।

उन्नीसवीं सदी तथ्यों की दृष्टि से महान थी।
ग्राडग्रिन्ड-''मुझे तथ्य चाहिए जीवन में सिर्फ तथ्यों की आवश्यकता है।''
रैंक -''इतिहासकार का दायित्व इतिहास को सिर्फ उस रूप में दिखाना है जैसा की वह सचमुच था।''

तथ्य मछुआरे की पटिया पर पड़ी मछलियों की तरह होतें हैं। इतिहासकार उन्हें इकट्ठा करता है , घर ले जाता है , पकाता है और अपनी पसंद की शैली में परोस देता है।

अतीत के सभी तथ्य ऐतिहासिक तथ्य नहीं होते और न ही इतिहास कार उसे तथ्य के रूप में स्वीकार करतें हैं। रुबिकान नदी को हजारो लोगों ने पार किया मगर सीज़र द्वारा पार करना ही ऐतिहासिक तथ्य है।
हाउसमान -''यथा तथ्य होना एक दायित्व है कोई गुण नहीं।''
मुलभुत तथ्य हर इतिहासकार के लिए समान  होतें हैं।

कहा जाता है कि तथ्य खुद बोलतें हैं , मगर यह सही नहीं है। तथ्य तभी बोलतें हैं जब इतिहास कार उन्हें बुलाता है। तथ्य बोरे  की तरह होतें हैं , जब तक उनमें कुछ भरा न जाए वे खड़े नहीं होते।

बरी -''प्राचीन तथा मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अंतरालों से भरी पड़ी हैं। '' इतिहास को एक बड़ी आरी कहा गया है जिसके कई दांत  गायब हैं।

पांचवीं सदी ईसा पूर्व यूनान की हमारी तस्वीर अपूर्ण है। इसलिए नहीं की दुर्घटनावश इसके तमाम छोटे टुकड़े गायब हो गए हैं बल्कि इसलिए की यह तस्वीर कमोवेश एथेंस नगर में रहने वाले एक छोटे से दल ने प्रस्तुत किया। फारसी गुलाम या प्रवासियों के विचार नहीं पता।

मध्यकालीन इतिहास के तथ्य के रूप में हमें जो कुछ भी मिलता है उसका चुनाव ऐसे इतिहासकारों की पीढ़ियों द्वारा किया गया था जिनके लिए धर्म का सिद्धांत और व्यवहार एक पेशा था। इसलिए उन्होंने इसे अत्यंत महत्वपूर्ण चीज माना इससे सम्बंधित हर चीज लिख गए। दूसरी चीजों को बहुत कम छुआ।

आधुनिक इतिहास की दुर्गति भी सामान रूप से गंभीर है। उन्नीसवीं सदी में तथ्यों के प्रति अंधश्रद्धा , दस्तावेजों के प्रति पूजा भाव के रूप में प्रतिफलित हुई। कोई दस्तावेज हमें केवल ये बताता है की उस दस्तावेज का लेखक कितना और कैसा सोचता था , घटनाओं के बारे में उसके क्या विचार थे।

१- इतिहास के तथ्य हमें कभी शुद्ध रूप में नहीं मिलते क्यूंकि शुद्ध रूप में वे न तो होतें हैं न रह सकतें हैं , वे हमेशा लेखक के  मष्तिष्क में रंग कर आतें हैं। जब हम इतिहास पर कोई काम कर रहें हैं तो हमारा ध्यान सिर्फ तथ्यों पर नहीं होना चाहिए बल्कि उस इतिहासकार  पर भी होना चाहिए जिसने उसे लिखा है। जब आप इतिहास की कोई पुस्तक पढतें हैं तो कान लगाकर उसके पीछे की आवाज को सुनें।

२ - हमें उन व्यक्तियों के मानसिक स्वरुप और उनके कार्यों के पीछे काम करनें वाले विचारों की कल्पनात्मक समझ होनी चाहिए जिनको लेकर वह इतिहास लिख रहा है।

३ - हम केवल वर्तमान की आँखों से ही अतीत को देख और समझ सकतें हैं।  इतिहासकार अपने युग के साथ अपने मानवीय अस्तित्व की शर्तों पर जुड़ा होता है।

व्याख्याएं वस्तुतः इतिहास को जीवन देने वाले रक्त के सामान होतीं हैं।

इतिहास क्या है , इस प्रश्न का मेरा पहला उत्तर यह होगा की इतिहास , इतिहासकार और उसके तथ्यों की क्रिया - प्रतिक्रिया की एक अनवरत प्रक्रिया है , अतीत और वर्त्तमान के बीच एक अंतहीन संवाद है।




गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014



                                     आतंकवाद 



डेनियल बेल की बहस को आगे बढ़ाते हुए १९९२ में फ्रांसिस फुकुयामा ने द एंड ऑफ़ हिस्ट्री एंड द लास्ट मैन में कहा कि ''साम्यवाद के पराजय के साथ ही द्व्न्द के अभाव में समग्र मानवता के लिए इतिहास अब एकसार हो गया है और उदारवादी लोकतंत्र के साथ ही सामाजिक विकासक्रम अपने चरम पर पहुँच गया है , अतः इतिहास का अंत हो गया है। ''



गुरुवार, 18 सितंबर 2014

संभावनाएं

संभावनाएं 
जो पनप  रहीं  हैं 
दिल की गहराइयों में 
खूबसूरत तथा मासूम हैं
पुलकित  करती  हैं
यह जान कर की 
तनहा हूँ 
छेड़तीं हैं 
ला  देती हैं 
आँखों में नीर 
होठों पे मुस्कान 
पर डर  जातीं हैं 
देख कर दुनियावी चाह 
रंगीनियत, बवंडर और बेवफाई 
मूल्यांकन 
आतुर हो जाता है 
मिटाने को इसका अस्तित्व 
अन्तर्द्वन्द 
उदासीनता को घोषित करता है 
कायरता 
पुनः
आवश्यकता और विकल्प 
जो खोज रहीं हैं 
रास्ता 
मंजिल का 
जो स्वप्निल है 
मगर वास्तविक भी 
जगा  देतीं हैं 
गतिशील बना देती है 
उस पथ पर 
जो कठोर तथा उबड़ खाबड़ है 
परे  है 
आसमानी उड़ान से 
जहाँ पंख भावनाओं के लगा 
हम उड़ा करतें हैं 
सहजता से 

Popular and Aristocratic Culture in India

Introduction The cultural history of the Indian subcontinent reveals complex layers of social life, consumption, aesthetics, and power. In ...