मंगलवार, 17 नवंबर 2015

हँसता जीवन

कोमल तन-मन के भीतर
हँसता जीवन देखा मैंने।
नन्हे हाथो-पाँवो की लय गति में
अपना खोया बचपन देखा मैंने।
शैलों पर उगते सूरज की
प्रथम रश्मि को आगे बढ़ते देखा मैंने।
ममता में खोये बचपन को,
अहसासों में घुलते देखा मैंने।
स्वप्नदर्शिनी बचपन को कर्मज्योति के नयनो से,
स्नेह बरसते देखा मैंने।
खुशियों में खिलते नीलकमल को
प्रेम सिंधु में बहते देखा मैंने।
हृदय गह्वर के कोने में,
छिपी हुई लहरों को देखा मैंने।
मानवता को पालने में सोये,
उज्जवल दीप चमकते देखा मैंने।
श्रीप्रकाश पाण्डेय 17nov.2015

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