मंगलवार, 16 मई 2023

पाकिस्तान की मांग

इकबाल

कवि तथा राजनीति चिंतक मुहम्मद इकबाल को मुसलमानों के लिए पृथक राज्य, पाकिस्तान, के विचार का प्रवर्तक माना जाता है और कहा जाता है कि उन्होंने "इस आन्दोलन को आवश्यक भावात्मक आधार दिया।" सर्व-इस्लाम (Pan-Islamism) की भावना से प्रेरित होकर इकबाल ने 1930 के अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के इलाहाबाद अधिवेशन में कहा था, "यदि यह सिद्धान्त स्वीकार कर लिया जाता है कि भारत के साम्प्रदायिक प्रश्न का स्थाई हल भारतीय मुसलमानों को अपने भारत देश में, अपनी संस्कृति तथा परम्पराओं के पूर्ण और स्वतन्त्र विकास का अधिकार है तो मेरी इच्छा यह होगी कि पंजाब, उत्तरपश्चिमी सीमा प्रान्त, सिन्ध तथा बलोचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बना दिया जाय, ब्रिटिश साम्राज्य के अन्दर अथवा बाहर, एक उत्तरपश्चिमी भारतीय मुस्लिम राज्य का गठन मुझे कम से कम, उत्तरपश्चिमी भारत में तो मुसलमानों का अन्तिम लक्ष्य प्रतीत होता है।"

रहमत अली

मुसलमानों के लिए पृथक स्वदेश (homeland) जिसे पाकिस्तान कहा जाए, इस प्रकार का निश्चित विचार  कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक विद्यार्थी रहमत अली के मन में उत्पन्न हुआ था। उसने सोचा कि पंजाब, उत्तरपश्चिमी सीमा प्राप्त (जिसको अफगान प्रांत भी कहा जा सकता है), कश्मीर, सिन्ध तथा बलोचिस्तान को भारतीय मुसलमानों का राष्ट्रीय देश होना चाहिए और उसे उसने पाकिस्तान की संज्ञा दी। पाकिस्तान शब्द इनमें से प्रथम चार प्रान्तों के प्रथम तथा पांचवें प्रान्त के अन्तिम अक्षर को लेकर बनाया गया। रहमत अली का यह विचार था कि हिन्दू तथा मुसलमान मूल रूप से पृथक राष्ट्र अथवा जातियां हैं। उसका कहना था, "हमारा धर्म, संस्कृति, इतिहास, परम्पराएं, साहित्य, आर्थिक प्रणाली, कायदे-कानून, उत्तराधिकार तथा विवाह हिन्दुओं से पूर्णतः भिन्न हैं।"

जिन्नाह, मार्च 1940, लीग का लाहौर अधिवेशन   

हिन्दू तथा मुसलमान पृथक-पृथक जातियां (nationalities) हैं, इसकी घोषणा असंदिग्ध शब्दों में मुहम्मद अली जिन्नाह ने लीग के मार्च 1940 के लाहौर अधिवेशन में की। “ये (हिन्दू तथा मुसलमान) शब्द के रूढ अर्थ में, धर्म नहीं हैं अपितु वास्तव में भिन्न तथा स्पष्ट सामाजिक अवस्थाएं हैं और यह एक स्वप्न है कि हिन्दू तथा मुसलमान मिलकर कभी भी एक राष्ट्र बना सकते हैं—इन दोनों के धार्मिक दर्शन, सामाजिक रीति-रिवाज तथा साहित्य भिन्न हैं। ऐसी दोनों जातियों को एक राज्य में इकट्ठे बांधने से, जिसमें एक अल्पसंख्यक हो और दूसरी बहुसंख्यक, असन्तोष बढ़ेगा और ऐसे राज्य की सरकार के लिये जो तन्त्र बनेगा वह अन्ततः नष्ट हो जायेगा।" भारत के बंटवारे की माँग करते हुए मुस्लिम लीग ने  प्रस्ताव पारित किया। इस प्रकार मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन ने लीग को एक आकांक्षा और एक कार्यक्रम दिया। इसके उपरान्त मुसलमानों के लिए पाकिस्तान एक धर्मनिष्ठा का उतना ही महत्वपूर्ण भाग बन गया जितना कि कुरान।

क्रिप्स शिष्टमण्डल (1942)

क्रिप्स योजना (मार्च-अप्रैल 1942) ने मुस्लिम लीग की भारत के बंटवारे की मांग को और भी प्रोत्साहन दिया। सरकार के घोषित प्रस्तावो में यह स्पष्ट था कि युद्ध के उपरान्त बनाये गए संविधान को केवल इस शर्त पर स्वीकार किया जायेगा कि-

(अ) यदि ब्रिटिश भारत का कोई प्रान्त इस नये संविधान को स्वीकार न करे और अपनी तात्कालिक संवैधानिक स्थिति बनाये रखना चाहे तो वह ऐसा कर सकेगा। और यदि बाद में वह भारतीय संघ में विलय होना चाहे तो भी ऐसा हो सकेगा ।

(आ) इस प्रकार विलय न होने वाले प्रान्तों के लिए यदि वे चाहें तो अंग्रेजी सरकार उनके लिए एक अलग संविधान को मान्यता देगी और उसे भी भारतीय संघ के बराबर पदवी प्राप्त होगी ।

लीग ने भी क्रिप्स योजना को अस्वीकार कर दिया तथा पाकिस्तान की मांग की पुनरावृत्ति की।

वेवल योजना (1945)

लार्ड वेवल ने शिमला में जून-जुलाई 1945 में एक सम्मेलन बुलाया ताकि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के मतभेद दूर हो सकें । काँग्रेस ने अपने सदस्यों में से दो काँग्रेसी मुसलमान नियुक्त करने का प्रस्ताव किया । जिन्नाह ने इस बात पर बल दिया कि सभी मुस्लिम सदस्य लीग द्वारा ही मनोनीत किये जाएं। लार्ड वेवल ने सम्मेलन में गतिरोध होने के कारण उसको समाप्त कर दिया, अर्थात् एक प्रकार से यह स्वीकार कर लिया गया कि श्री जिन्नाह को भारत की संवैधानिक प्रगति में रोड़ा अटकाने का पूरा अधिकार है।

मंत्रिमण्डलीय शिष्ट मण्डल (1946)

1945-46 के आम चुनावों में मुस्लिम लीग ने उत्तरपश्चिमी सीमा प्रान्त को छोड़कर शेष सभी मुस्लिम बहुसंख्यक प्रांतों में अत्यधिक स्थान जीत लिए । उसे मुसलमानों के लगभग 75% मत प्राप्त हुए। मंत्रिमण्डलीय शिष्टमण्डल की योजना 16 मई, 1946 को प्रकाशित की गई। उसमें पाकिस्तान की मांग अस्वीकार कर दी गई थी और उसके स्थान पर एक ऐसी केन्द्रीय सरकार का सुझाव दिया गया था जिसके अधीन विदेशी मामले, रक्षा तथा संचार साधन हों। परन्तु इसने लीग की मांग आंशिक रूप में स्वीकार कर ली तथा सभी प्रान्तों को तीन भागों में बांटने का सुझाव दिया,। इन समूहों को पूर्ण स्वशासन मिलना था और इससे लगभग पाकिस्तान का सार मिल जाता था।

नेहरू की समाचार पत्र घोषणा 10 जुलाई, 1946

नेहरूजी ने जुलाई, 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष का भार संभाला और उसके उपरान्त समाचार-पत्रों के लिए एक वक्तव्य जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा कि वे लोग संविधान सभा में, “हम मंन्त्रिमण्डलीय शिष्टमण्डल योजना में अपनी इच्छानुसार फेर-बदल कर सकेंगे।" नेहरू का यह वक्तव्य जिन्नाह के लिए एक बम के समान था। वह पहले ही इस योजना से बहुत प्रसन्न नहीं था। अब उसने इसका अर्थ यह लिया कि कांग्रेस इस योजना को अस्वीकार कर रही है। मौलाना आजाद ने नेहरू के इस वक्तव्य को "उन दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं में से एक कहा है जिन्होंने इतिहास की दिशा बदल दी ।" जिन्नाह इस दृढ़ निश्चय पर पहुंच गये कि लीग के लिए पाकिस्तान के अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है ।

सीधी कार्यवाही और साम्प्रदायिक दंगे (1946-47)

मुस्लिम लीग ने मंत्रिमण्डलीय शिष्टमण्डल की योजना से स्वीकृति वापस ले ली और 16 अगस्त, 1946 को 'सीधी कार्यवाही दिवस' (Direct Action Day) मनाया। यह सीधी कार्यवाही अंग्रेजों के विरुद्ध पाकिस्तान लेने के लिए नहीं अपितु हिन्दुओं के विरुद्ध इसी उद्देश्य से की गई। लीग ने बंगाल, यू०पी०, बम्बई, पंजाब, सिन्ध तथा उत्तरपश्चिमी सीमा प्रान्त में साम्प्रदायिक दंगे भड़काये।

20 फरवरी, 1947 का एटली का बक्तव्य :

एटली ने कामंज सभा में 20 फरवरी, 1947 को घोषणा कर दी कि उसकी सरकार का यह दृढ़ निश्चय है कि वह जून, 1948 के पूर्व प्रभुसत्ता का हस्तान्तरण निश्चित रूप से भारतीयों को कर देगी । यदि मुस्लिम लीग सहयोग नहीं देती तो, “ब्रिटिश सरकार को सोचना होगा कि अंग्रेजी प्रदेशों की केन्द्रीय प्रभुसत्ता निश्चित तिथि तक किसको सौंपी जाय । क्या समस्त शक्ति किसी प्रकार की केन्द्रीय सरकार को, अथवा अन्य प्रान्तों में जो प्रान्तीय सरकारें हैं उनको, अथवा किसी अन्य मार्ग से जो कि उचित तथा भारतीयों के हित में हो।" इस प्रकार अंग्रेजों का वह विचार कि, भारत की एकता को किसी न किसी रूप से बनाया रखा जायेगा, बदल गया था, अर्थात पाकिस्तान बनने की सम्भावना हो गयी थी।

माउन्टबेटन योजना में भारत का बंटवारा स्वीकृत :

लार्ड माउन्टबैटन ने 3 जून, 1947 की घोषणा में भारत के बंटवारे की घोषणा की। भारतीय स्वतन्त्रता अधिनियम, अंग्रेजी संसद ने, जुलाई 1947 में पारित कर दिया तथा उसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 से भारत को दो स्वतन्त्र राष्ट्रों भारत तथा पाकिस्तान में बांट दिया गया।

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