रविवार, 13 सितंबर 2020

पुनर्जागरण

सीमित अर्थ में पुनर्जागरण यूनान और रोम की प्राचीन सभ्यता के ज्ञान विज्ञान के प्रति फिर से पैदा हुई रूचि थी। चौदहवीं से सोलहवीं सदी के कालखण्ड में दिखने वाली जैकब बर्कहार्ड की इस 'इटालियन सच्चाई' ने उस व्यापक अर्थ वाली मनोवृत्ति का प्रसार पूरे विश्व में किया जिसे जूल्स मिशलेट 'विश्व एवं मानव की खोज' के रूप में पहचानते हैं, जो मध्ययुग में धर्म के वर्चश्व में कहीं दब सी गई थी।

यह मनोवृति जिस सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की उत्पाद थी, वह दावतों के बाद अकालों को धारण कर रही थी। लगातार युद्धों तथा कृषि पर मौसम की मार को अभी जनसंख्या झेल ही रही थी कि ब्लैक डेथ जैसी महामारी ने दस्तक दी तथा यूरोपीय समाज और अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से बाधित कर दिया। परिणामों ने जिस संतुलन का निर्माण किया वह सिर्फ अर्थव्यवस्था के नए रूप और उसकी तकनीकी पर ही नहीं बल्कि समाज और उसकी मनोवृति के विस्थापन पर भी निर्भर था। इसने उन साहसिकों को भौगोलिक खोजों और यात्राओं के लिये उत्साहित किया जिन्हें राजसत्ता सहयोग कर रही थी और 'गॉड गोल्ड और ग्लोरी' प्रेरित कर रहे थे।

इस पूर्वी संपर्क ने यूरोप में न केवल व्यापार, उद्योग, बैंकिंग तथा शहरों के  विकास को प्रेरित किया बल्कि अरबों के माध्यम से यूरोप को कागज, कुतुबनुमा, पुस्तकालय तथा बारूद से परिचय कराया। लेकिन पोप का निवास स्थान इटली इन सबसे अलग था। भूमध्यसागरीय देशों में इटली की अनुकूल व्यापारिक स्थिति ने वहां मिलान, नेपल्स, फ्लोरेंस तथा वेनिस जैसे शहरों का निर्माण किया। जिसका प्रभाव सिर्फ नवोदित व्यापारिक वर्ग के उदय के रूप में ही नहीं हुआ बल्कि इसने इटली में एक ऐसे मध्यवर्ग का निर्माण किया जिसे न तो सामंतो की परवाह थी न पोप की,जो मध्यकालीन मान्यताओं को ताख पर रखता था तथा उसकी व्यावसायिक जरूरते शिक्षा में लौकिकता पर बल देती थीं । फ्लोरेंस का यही समाज दांते, पेट्रार्क, बुकासियो, एंजेलो तथा मैकियावेली जैसों का प्रश्रयदाता बना ।

1453 ईसवी में तुर्कों द्वारा कुस्तुन्तुनिया के पतन से नए व्यापारिक मार्गों की खोज एक जरूरत बन गई वहीं कुस्तुन्तुनिया से विद्वानों का पलायन इटली की तरफ होने लगा। अकेले कार्डिनल बेसारियोन 800 पांडुलिपियों के साथ इटली पहुंचा। परिणाम यह हुआ कि यूनानी तर्क और विद्या ने अपने पतन को दरकिनार कर इटली में प्रव्रजन कर लिया। कागज़ पर छपाई की शुरुआत ने ज्ञान पर विशेषाधिकार को खत्म कर दिया तथा अब यह कहने का घमण्ड टूटने लगा कि किताबों में यह लिखा है। छापेखाने ने बौद्धिक अपवादों को विस्तार दे कर अब उसे जनसामान्य का व्यवहार बना दिया।

पुनर्जागरण की आरंभिक अभिव्यक्ति इटली के जीनियस लियोनार्डो द विंची की 'द लास्ट सपर' तथा 'मोनालिसा', माइकल एंजेलो की 'द लास्ट जजमेंट' तथा 'फाल ऑफ मैन', और राफेल की सर्वश्रेष्ठ कृति 'मां मेडोना' के चित्रों में दिखती है। स्थापत्य में मध्यकालीन गोथिक शैली का अवसान हो गया तथा उसकी जगह विशुद्ध गैर धार्मिक भावों की प्रधानता वाला सेंट पीटर का गिरजाघर नई शैली का सर्वोत्तम नमूना बन गया। जिसके वास्तुकारों में ब्रुनलेस्की, एंजेलो तथा राफेल का नाम आता है। हालांकि रैनेसाँ मूर्तिकला का पथप्रदर्शक दोनातेला था किंतु सर्वश्रेष्ठ कृति एंजेलो की 'पेता', जिसका निर्माण रोम में सेंट पीटर गिरजाघर के मुख्य द्वार पर हुआ है तथा 'डेविड' की मूर्ति है जिसे फ्लोरेंस के नागरिकों ने बनवाया था।

इस काल में जनता की देसी भाषा में साहित्य लेखन होने लगा था। यूरोप की आधुनिक भाषा में लिखी गई पहली महत्वपूर्ण कृति इतावली कविता के पिता दांते की 'डिवाइन कॉमेडी' है जो स्वर्ग नरक की कल्पना है जबकि उसका 'वितानोआ' प्रेम गीत है तथा 'मोनार्कीया' पोप विरोधी रचना जिसे जलाया गया। दांते के बाद पुनर्जागरण की भावना को प्रश्रय देने वाला दूसरा व्यक्ति पेट्रार्क था जिसे मानवता वाद का संस्थापक तथा पुनर्जागरण साहित्य का पिता कहा जाता है यह अपने 'सॉनेट' के कारण प्रसिद्ध है। हॉलैंड के इरास्मस को मानवतावादीयों का राजकुमार कहा जाता है जिसने 'मूर्खता की प्रशंसा में' लिखी है, यह 2500 प्रतियों के साथ अपने समय की बेस्ट सेलर बनी। स्पेन के सर्वांतेस ने 'डॉन क्विजोट' में नाइटों का माखौल उड़ाते हुए कहा कि हर कुत्ते का एक दिन होता है। फ्लोरेन्स के मैकियावेली ने आधुनिक राजनीति पर अपनी 'द प्रिंस' लिखी।

आधुनिक विज्ञान के पिता बेकन ने अपनी पुस्तक 'द एडवांसमेन्ट ऑफ लर्निंग' में बताया कि ज्ञान सिर्फ चिंतन से नहीं बल्कि प्रकृति के अन्वेषण से प्राप्त किया जा सकता है। पोलैंड निवासी कॉपरनिकस ने टॉलमी के जियो सेंट्रिक धारणा का खंडन किया जिसके लिए एक समय ब्रूनो को जिंदा जला दिया गया था। जान कैप्लर ने अपने गणितीय प्रमाणों से कोपरनिकस के विचारों का समर्थन किया। जिसका प्रत्यक्ष अनुभव गैलीलियो की दूरबीन ने किया। इसी दौर में न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण तथा हार्वे ने रक्तपरिसंचरण तंत्र की खोज की। इन वैज्ञानिक उपलब्धियों ने ज्ञान के प्रत्यक्षवादी अभिगम को सराहा।

वैज्ञानिकता का व्यावहारिक पक्ष दैवी मामलों से मानव के मामलों में स्पष्ट झुकाव के रूप में दिखा। यह झुकाव पुनर्जागरण की सबसे महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति मानवतावाद है। तकनीकी अर्थ में मानववाद अध्ययन का कार्यक्रम है जिसके द्वारा मध्ययुग की रूढ़िवादी तर्क शास्त्र और अध्यात्म के अध्ययन के स्थान पर भाषा, साहित्य और नीति शास्त्र के अध्ययन पर जोर दिया गया। साहित्य और इतिहास को अब मानविकी कहा जाने लगा। साधारण अर्थ में यह एक ऐसी विचारधारा है जिसके द्वारा मानव का गुणगान, उसके सारभूत मान मर्यादा पर बल, उसकी अपार सृजनशक्ति में अटूट आस्था और व्यक्ति के अहरणीय अधिकारों की घोषणा ही मानववाद का सार है। 'इस बेमतलब दुनिया का कोई अर्थ नहीं है अगर मनुष्य इसे अर्थ न दे' यह विचार रखने वाले ग्रीक दार्शनिक प्रोटागोरस की अनुगूँज हमें इतावली मानवतावादी पिकाडेल्ला की कृति 'ऑन द डिग्निटी ऑफ मैन' में दिखती है जब वह कहता है कि 'आदमी से अद्भुत कोई नहीं है, मानव एक चमत्कार है।' इसके विचारों को 'मैनिफेस्टो ऑफ रिनेसाँ' कहा जाता है। शेक्सपियर इसे दुहराता है, 'कितनी अनुपम कृति है मानव,....ईश्वर के समतुल्य है मानव।'

इस प्रकार पुनर्जागरण, काण्ट की उस प्रबोधन की पृष्ठभूमि का निर्माण करता है जो जानने का साहस करती है, स्वआरोपित अपरिपक्वता से मुक्ति का आवाह्न करती है तथा आधुनिक राजनीति का उद्गम बनती है। दीर्घकाल में यह जो असर छोड़ती है उसे हम भौतिक और बुद्धिवादी दृष्टिकोण के विकास, अभिव्यक्ति की प्रतिष्ठा, राज्य का धर्म से पृथक्करण, राष्ट्रीयता की भावना का विकास में देख सकते हैं। हालांकि साथ ही पी स्मिथ जिस पुनर्जागरण के रूप को प्रतिगामी कहतें है वह आगे चल कर अपने परिपक्व रूप में रूसो के पुरातन के प्रति मोह में दिखता है ।

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