सोमवार, 4 मार्च 2024

बहलोल लोदी (1451-1489 ई०)

                                

सामान्य परिचय –

बहलोल लोदी, दिल्ली सल्तनत के अंतिम राजवंश, लोदी वंश का संस्थापक था। वह अफगानिस्तान के गिलजाई कबीले के लोदी शाखा के शाहूखेल वर्ग से सम्बन्धित था। उसके पिता मलिक काला खिज खाँ के समय के दौराला के राज्यपाल थे। बहलोल लोदी का जन्म दौराला में ही हुआ था। उसके जन्म से पूर्व ही उसकी माँ का देहान्त हो गया। कुछ समय पश्चात् नियाजी अफगानों से संघर्ष में उसके पिता भी मारे गए। बहलोल लोदी का पालन पोषण उसके चाचा इस्लाम खाँ ने किया तथा बाद में अपनी पुत्री का विवाह बहलोल लोदी से कर दिया। 

बहलोल लोदी के समक्ष चुनौतियाँ

1.       विखंडित साम्राज्य

2.       सुलतान पद की प्रतिष्ठा और शक्ति क्षीण

3.       पूर्व राजवंशों की चुनौती

4.       कमजोर प्रशासन

5.       दरबार में उमरा वर्ग की गुटबंदी

6.       पश्चिमोत्तर प्रान्त में अशांति

7.       दोआब में विद्रोह

8.       जौनपुर के शर्की राज्य की दिल्ली पर नजर

                           बहलोल लोदी की उपलब्धियां

1.       आरंभिक उपलब्धियां : राज्यारोहण

इस्लाम खाँ के मृत्यु के पश्चात् सुल्तान मोहम्मद शाह ने बहलोल लोदी को सरहिन्द का सुबेदार नियुक्त किया। बाद में लाहौर भी उसके अधीन कर दिया गया। बहलोल लोदी ने आस-पास के क्षेत्रों को जीतकर अपनी शक्ति में वृद्धि कर ली। दिल्ली पर महमूद खिलजी के आक्रमण को विफल कर सुल्तान मुहम्मदशाह की विशेष कृपा प्राप्त कर ली। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर मुहम्मद शाह ने उसे पुत्र कहकर संबोधित किया तथा खान-ए-जहाँ की उपाधि दी। सुल्तान अलाउद्दीन आलम शाह के समय में उसके वजीर हमीद से झगड़ा होने के कारण जब अलाउद्दीन दिल्ली की सत्ता छोड़ कर बदायूँ चला गया तब दिल्ली की जनता ने बहलोल की आमंत्रित कर 19 अप्रैल, 1451 ई० को बहलोल लोदी दिल्ली की गद्दी पर बैठाया ।

गद्दी पर बैठने के बाद उसने वजीर हमीद खाँ की हत्या कर दी। किन्तु सुल्तान अलाउद्दीन आलम शाह अभी भी दिल्ली का वैधानिक शासक था। बहलोल लोदी ने अलाउद्दीन आलम शाह को पत्र लिखा, "आपके महान पिता ने मेरा पालन पोषण किया। मैं खुत्बा से आपका नाम हटाए बिना आपके प्रतिनिधि के रूप में कार्य कर रहा हूँ।" सुल्तान ने उत्तर दिया- चूँकि मेरे पिता तुम्हें अपना पुत्र कहकर सम्बोधित करते थे।, मैं तुम्हें बड़े भाई के रूप में देखता हूँ और राजपद का तुम्हारे लिए परित्याग करता हूँ।"

2.       आरंभिक अफ़गान राजत्व का निर्माण

अपनी जनजातीय अथवा कबीलाई परम्पराओं के चलते अफगान लोग राजतंत्रीय परम्पराओं से अनभिज्ञ थे। यह वस्तुतः बहलोल की एक महान उपलब्धि थी, कि वह अफ़गानों के स्वतन्त्र, निर्भीक जनतान्त्रिक विचारों और आस्थाओं को राजतन्त्रीय आवश्यकताओं के अनुरूप दिशा प्रदान करने में सफल रहा था।

·      राजत्व को 'बन्धुत्व' का आवरण

·      सिंहासन के स्थान पर कालीन

·      सुल्तान सम्बोधन का प्रयोग नहीं - 'मसनद-ए-आला' की पदवी से ही सन्तुष्ट

·      कोई व्यक्तिगत अंगरक्षक नहीं

·      भोजन : विश्वास बहाली का उपाय

·       नाराज़ अमीरों को मनाने उसके घर जाना

उसके ऐसे आचरण के पीछे उसकी दो स्थितियां काम करतीं थीं। एक तो वह यह प्रदर्शित करने में सफल रहा कि अफ़गान सत्ता के दायित्वों के निर्वहन के माध्यम से राज्य कार्य कम कर रहे हैं, अपितु अफ़गान बिरादरी के सदस्य होने के नाते अपने ही शासन में बिरादरी का हक़ या 'हक़्क़-ए-बिरादरी' अदा कर रहे हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि बहलोल लोदी एक ऐसा राजत्व परिभाषित करने में सफल रहा जिसका आदर्श था, 'राजत्व ही बन्धुत्व है और बन्धुत्व ही राजत्व है'

3.       सैन्य उपलब्धियां

·      जौनपुर के शर्की शासकों के विरुद्ध अभियान

जौनपुर का शर्की शासक महमूद शाह सैय्यद वंश के शासक अलाउद्दीन का दामाद था। वह दिल्ली की गद्दी पर अपना वैध अधिकार मानता था। जौनपुर दिल्ली के पूरब की ओर विस्तृत था। इसलिए जौनपुर को पराजित किए बिना दिल्ली का विस्तार सम्भव नहीं था। जौनपुर के शर्की शासक हुसैनशाह को पराजित कर जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिलाना बहलोल लोदी की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। बहलोल लोदी के समय में जौनपुर का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया।

·      उदण्ड सरदारों के विरुद्ध अभियान

लोदी और शर्की राजाओं के बीच संघर्ष में दोआब, मेवात तथा दिल्ली के आस-पास के सामंतों ने शर्की शासकों के प्रति अपनी स्वामिभक्ति प्रदर्शित की थी इसलिए बहलोल लोदी ने इन्हें दण्डित करने का निश्चय किया। इस उद्देश्य से उसने मेवात, सम्भल, कोल (अलीगढ़), साकित (एटा), इटावा, रापरी, भोगोव तथा ग्वालियर के विरुद्ध अभियान किया। सर्वप्रथम बहलोल लोदी ने अहमद खाँ मेवाती पर आक्रमण किया। अहमद खाँ ने आत्मसमर्पण कर दिया। तत्पश्चात् सम्भल के दरिया खाँ के विरुद्ध कूच किया। दरिया खाँ ने भी आत्मसमर्पण कर दिया। उसके सात परगने दिल्ली सल्तनत में मिला लिये गये। इसी प्रकार कोईल के ईसा खाँ, साकित के मुबारक खाँ, मैनपुरी तथा भोगागांव के राजा प्रतापसिंह ने बहलोल लोदी की अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य हुए।

·      मुल्तान अभियान

1468-69 में बहलोल लोदी ने मुल्तान में लंगाओं के विरुद्ध अभियान किया। लंगाओं ने शेख युसुफ को जो सुफी संत शेख बहाउद्दीन जकारिया के वंशज थे, को मुल्तान से निकाल दिया था। शेख युसुफ बहलोल लोदी के यहाँ शरण ली। अतः शेख युसुफ की प्रतिष्ठा को मुल्तान में पुनः स्थापित करने के लिए बहलोल लोदी ने मुल्तान पर आक्रमण किया। किन्तु हुसैन शाह शर्की के दिल्ली पर आक्रमण की सुचना सुनकर वापस लौट आया। इस प्रकार यह अभियान निरर्थक रहा। मुल्तान अभियान के दौरान ही बहलोल लोदी ने रोह के अफगानों को सल्तनत की सेना में भर्ती करने की नीति अपनाई। फलस्वरूप बड़ी संख्या में अफगान भारत आकर बसे।

·      मालवा अभियान

अपने साम्राज्य विस्तार के उद्देश्य से बहलोल ने मालवा के विरुद्ध अभियान किया। उस समय वहाँ का शासक गयासुद्दीन खिलजी (1469-1501 ई०) था। वह एक भोग विलासी शासक था। बहलोल ने मालवा राज्य का परगना अल्हनपुर को उजाड़ डाला। किन्तु मालवा को विजित नहीं कर सका और दिल्ली लौट आया। चन्देरी के राज्यपाल शेख खाँ ने अल्हनपुर नगर का पुननिर्माण किया।

·      ग्वालियर अभियान

1486-87 ई० में बहलोल लोदी ने ग्वालियर के विरुद्ध अभियान किया। यह उसका अन्तिम अभियान था। यहाँ का शासक राजः कीर्तिसिंह (रामकरण) था। 1479 ई० में शर्की शासक हुसैन शाह, बहलोल लोदी के हाथों पराजित होने के बाद ग्वालियर के राजा के पास शरण लिया था। राजा कीर्ति सिंह ने बहलोल लोदी की अधीनता स्वीकार कर ली तथा उसे 80 लाख टंका नजराना के रूप में दिया। लोदी साम्राज्य की सीमाओं के सबसे निकट धौलपुर की रियासत थी जो ग्वालियर के अधीन थी। बहलोल लोदी इसके विरुद्ध भी अगे बढ़ा। यहाँ से लगभग 100 मन सोना प्राप्त किया। इसी अभियान के दौरान दिल्ली लौटते समय मार्ग में लू लगने से बहलोल लोदी बीमार पड़ा और 12 जून, 1489 ई० को उसकी मृत्यु हो गयी।

4.       राज्य का विभाजन

1485 ई० में बहलोल लोदी ने अपने अंतिम समय में साम्राज्य अपने पुत्रों और अफगान जातिवर्गों में विभाजित किया। इस विभाजन के अन्तर्गत जौनपुर का राज्य अपने पुत्र बारबाक खाँ को, कड़ा मानिकपुर मुबारक खाँ नूहानी को, बहराइच शेख मुहम्मद कुर्का फरमुली को, अपने पौत्र आजम हुमायूँ को लखनऊ तथा कालपी, तथा खान-ए-जहाँ लोदी को बदायूँ का क्षेत्र दिया। अपने दूसरे पुत्र निजाम खाँ (सिकन्दर लोदी) को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया तथा उसे पंजाब, दिल्ली और दोआब का क्षेत्र दिया।

5.       अन्य उपलब्धियाँ 

वह दिल्ली सल्तनत के सभी शासकों में सर्वाधिक समय तक (38 वर्ष) शासन किया। अपने लम्बे शासनकाल में उसने दिल्ली सल्तनत की खोई हुयी प्रतिष्ठा को पुर्नस्थापित किया। मुद्रा व्यवस्था में भी बहलोल का महत्वपूर्ण योगदान है। उसने 1/4 टंके के मूल्य के बराबर बहलोली नामक चाँदी का सिक्का प्रचलित किया जो मुगल शासक अकबर के समय तक विनिमय का माध्यम रहा।

कोई टिप्पणी नहीं:

व्यावसायिक क्रांति का महत्त्व

व्यावसायिक क्रांति, जो 11वीं से 18वीं शताब्दी तक फैली थी, यूरोप और पूरी दुनिया के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को बदलने में अत्यंत म...