सोमवार, 10 मार्च 2025

पीटर महान की विदेश नीति

17वीं और 18वीं सदी का यूरोप निरंतर युद्ध, क्षेत्रीय संघर्ष और शक्ति संतुलन की राजनीति से भरा हुआ था। इसी संदर्भ में रूस के महान सुधारक और सम्राट पीटर महान (Peter the Great, 1672-1725) ने रूस की विदेश नीति को निर्णायक रूप से प्रभावित किया। उनकी विदेश नीति के प्रमुख उद्देश्य थे:

·     रूस को एक शक्तिशाली समुद्री शक्ति बनाना।

·     सैन्य और नौसैनिक शक्ति के माध्यम से रूस का क्षेत्रीय विस्तार।

रूस की प्रमुख समस्या यह थी कि वह एक विशाल भूभाग वाला साम्राज्य था, लेकिन उसके पास कोई प्रमुख समुद्री मार्ग नहीं था जिससे वह व्यापार और सैन्य उद्देश्यों के लिए स्वतंत्र रूप से काम कर सके। इस चुनौती को देखते हुए, पीटर की नीति दो प्रमुख दिशाओं में केंद्रित रही—दक्षिण में काला सागर और पश्चिम में बाल्टिक सागर।

                            दक्षिण में काला सागर और अज़ोव बंदरगाह पर कब्ज़ा

रूस की समुद्री शक्ति के लिए काला सागर तक पहुँचना अनिवार्य था। इस क्षेत्र में उस समय ओटोमन तुर्क साम्राज्य का प्रभुत्व था। तुर्कों ने काला सागर को पूरी तरह नियंत्रित कर रखा था, जिससे रूस के लिए बाहरी दुनिया से संपर्क करना कठिन था। पीटर ने इस चुनौती को एक अवसर के रूप में देखा और 1695-96 में अज़ोव अभियान (Azov Campaigns) चलाया। पीटर के सौभाग्य से इस समय आटोमन साम्राज्य पतन की तरफ बढ़ रहा था।

अज़ोव पर विजय (1696)

पहले अभियान में रूसी सेना को असफलता मिली, लेकिन 1696 में पीटर ने अज़ोव पर निर्णायक विजय प्राप्त की और काले सागर की दिशा में रूस का पहला समुद्री मार्ग खोला। हालाँकि, यह आंशिक सफलता थी, क्योंकि काला सागर से भूमध्य सागर जाने वाले जलमार्ग अभी भी तुर्कों के नियंत्रण में थे। इस कारण रूस को एक पूर्ण नौसैनिक शक्ति बनने में कठिनाई हुई।

इसके बाद, पीटर ने तुर्कों से और अधिक क्षेत्रों को जीतने की योजना बनाई, लेकिन यह प्रयास सफल नहीं हो सका। 1711 में पृथ नदी अभियान (Pruth River Campaign) में रूसी सेना तुर्कों से बुरी तरह हार गई, जिससे रूस को पीछे हटना पड़ा और उसे अज़ोव खाली करना पड़ा।

 हालाँकि, इस संघर्ष से पीटर को यह अनुभव मिला कि उसे अपनी नौसैनिक और सैन्य शक्ति को और मजबूत करना होगा। इसके बाद, उसका ध्यान पूरी तरह पश्चिम में बाल्टिक सागर पर केंद्रित हो गया, जिससे रूस को यूरोप में प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित होने का अवसर मिला।

                         पश्चिम में बाल्टिक सागर और महान उत्तरी युद्ध  (1700-1721)

बाल्टिक सागर पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ग्रेट नॉर्दर्न युद्ध (Great Northern War, 1700-1721) हुआ। इस युद्ध में रूस ने स्वीडन के विरुद्ध डेनमार्क, पोलैंड और सक्सोनी के साथ गठबंधन किया। स्वीडन, जो उस समय एक बड़ी सैन्य शक्ति थी, बाल्टिक क्षेत्र पर प्रभुत्व बनाए रखना चाहती थी। स्वीडन बाल्टिक सागर को स्वीडिश झील समझता था ।

स्वीडन की शक्ति और प्रारंभिक पराजय

चार्ल्स XII (Charles XII) स्वीडन का युवा और साहसी शासक था, जिसने युद्ध की शुरुआत में रूस और उसके सहयोगियों को कई पराजय दीं।

नार्वा का युद्ध (1700)

पीटर की सेना इस युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी और स्वीडिश सेना ने नार्वा (Narva) के युद्ध में रूस को करारी शिकस्त दी। लेकिन चार्ल्स XII ने इस जीत को निर्णायक बनाने के बजाय पोलैंड और अन्य युद्ध अभियानों में अपनी ऊर्जा व्यर्थ कर दी, जिससे पीटर को अपनी सेना को पुनर्गठित करने का अवसर मिला।

रूसी सेना का पुनर्गठन और बाल्टिक क्षेत्र में विजय

पीटर ने रूसी सेना और नौसेना को आधुनिक बनाया, यूरोपीय शैली के सैन्य संगठन लागू किए, और सेंट पीटर्सबर्ग (1703) की स्थापना की, जो बाद में रूस की नई राजधानी बनी। 1704 में, रूस ने नार्वा पर दोबारा कब्ज़ा कर लिया और अपनी शक्ति को धीरे-धीरे बढ़ाया।

पोल्टावा का युद्ध (8 जुलाई 1709): रूस की निर्णायक जीत

चार्ल्स XII ने रूस पर पुनः हमला किया और 1708 में मास्को की ओर बढ़ने की योजना बनाई। लेकिन रूस की सर्दी, भोजन की कमी और रूस की 'स्कॉर्च्ड अर्थ' नीति (Scorched Earth Policy) के कारण स्वीडिश सेना कमजोर हो गई। 8 जुलाई 1709 को पोल्टावा (Poltava) के युद्ध में रूस ने स्वीडन को निर्णायक रूप से पराजित किया। चार्ल्स XII को युद्ध क्षेत्र से भागना पड़ा और उसने तुर्की में शरण ली। यह युद्ध रूस के लिए एक यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरने का महत्वपूर्ण मोड़ बना।

न्यास्ताड संधि (10 सितंबर 1721) और रूस की नई शक्ति

ग्रेट नॉर्दर्न युद्ध का अंत न्यास्ताड संधि (Nystad Treaty, 1721) से हुआ, जिससे रूस को बाल्टिक क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण क्षेत्र प्राप्त हुए। रूस ने एस्टोनिया, लातविया और फिनलैंड के कुछ भागों पर अधिकार कर लिया। स्वीडन की शक्ति समाप्त हो गई और रूस यूरोप की 'महाशक्ति' बन गया। सेंट पीटर्सबर्ग को रूस की नई राजधानी घोषित किया गया।

                      पीटर महान का मूल्यांकन: सुधारक या निरंकुश शासक?

सुधार और आधुनिकीकरण

सेना का आधुनिकीकरण – यूरोपीय सैन्य रणनीतियों को अपनाया।

नौसेना का निर्माण – रूस की पहली मजबूत नौसेना का गठन किया।

नई राजधानी की स्थापना – सेंट पीटर्सबर्ग को पश्चिमी शैली की राजधानी के रूप में बनाया।

प्रशासनिक सुधार – रूस में केन्द्रियकृत नौकरशाही विकसित की।

धार्मिक सुधार – चर्च की शक्ति को सीमित कर रूसी साम्राज्य को अधिक संगठित किया।

निरंकुशता और क्रूरता

अपने पुत्र एलेक्सिस को देशद्रोही मानकर गिरफ्तार किया और अत्यधिक यातना दी, जिससे उसकी मृत्यु हो गई।

विरोधियों को कुचलने के लिए अत्यधिक हिंसा और बल प्रयोग किया।

कुछ इतिहासकारों ने उन्हें "बर्बर प्रतिभा" (Barbaric Genius) कहा।

निष्कर्ष

पीटर महान का युग रूस के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। उन्होंने रूस को एक आधुनिक यूरोपीय शक्ति बनाया, जो सैन्य और नौसेना के क्षेत्र में प्रभावशाली हो गई। हालाँकि, उनकी शासन शैली अत्यंत कठोर और निरंकुश थी, लेकिन उनके सुधारों ने रूस को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया।

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पीटर महान की विदेश नीति

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