गुरुवार, 7 मार्च 2024

मेइजी काल के अंतर्गत जापान की आन्तरिक नीति : कायाकल्प

 मेईजी पुनःस्थापना ने जापान को एक नया जीवन प्रदान किया जिससे वह कुछ ही वर्षों में प्रथम श्रेणी की शक्ति तथा एक आधुनिक राज्य बन गया। जापान में देश के आधुनिकीकरण के लिए एक प्रबल आन्दोलन चल पड़ा जिससे देश के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आमूल परिवर्तन हुआ और जापान का कायाकल्प हो गया।

1.       सामन्ती प्रथा का अन्त

5 मार्च, 1869 को सातसूमा, चोशू, तोसा और हीजन के डैम्यो ने एक आवेदनपत्र द्वारा अपनी रियासतें सम्राट को अर्पित कर केन्द्रीय शासन की अधीनता कबूल कर ली और उनकी सारी सामन्ती सुविधाएँ समाप्त कर दी गईं। अन्य डैम्यो ने भी ऐसा ही किया। जो कुछ बच रहे थे उन्हें 25 जुलाई को सम्राट् ने ऐसा करने का आदेश दिया। सब रियासतें सम्राट के अधीन हो गईं। लेकिन, जागीरों पर से सामन्तों के शासन का अन्त नहीं हुआ। रियासतों को जिले का रूप दे दिया गया और उनमें उनके डैम्यो की ही प्रशासक नियुक्त किया गया और साथ-साथ केन्द्रीय सरकार का उन पर नियंत्रण बहुत कड़ा कर दिया गया।

2.       सैनिक सुधार

जापानी सेना का निर्माण सामूराई लोगों द्वारा होता आया था। सामूराई लोग सामन्तों की सेवा में रहकर सैनिक सेवा प्रदान करते थे। सेना में प्रवेश इसी वर्ग तक सीमित था और जनसाधारण को सैनिक सेवा का अवसर नहीं दिया जाता था, पर जब सामन्ती प्रथा का अन्त हो गया तो सामुराई लोगों के इस एकाधिकार का भी अन्त हो गया और जापान के सभी वर्गों के लिए सेना में भर्ती के लिए दरवाजा खोल दिया गया। दूसरे शब्दों में, जापान की सेना का स्वरूप अब राष्ट्रीय हो गया।1872 ई० में राजाज्ञा प्रकाशित कर जापान में सैनिक सेवा को अनिवार्य घोषित कर दिया गया।

3.       कानूनी समानता की स्थापना

1869 ई० में सरकारी और व्यावसायिक नौकरियों पर से वर्ग-विषयक पाबन्दियाँ हटा ली गई। 1880 ई० में सामान्य जनता को पारिवारिक नाम धारण करने का अधिकार मिल गया जो सामन्तों तक ही सीमित था। 1871 ई० में समाज के सबसे निम्न वर्ग- जो अछूत था-को पूरी समानता दे दी गई। सामन्त वर्ग विशेष चिह्न के रूप में दो तलवारें रख सकता था। सामान्य व्यक्ति इन्हें नहीं रख सकता था। किन्तु, 1871 ई० में सरकार ने इजाजत दे दी कि जो सामन्त या सामूराई इन तलवारों को छोड़ना चाहें, वे ऐसा कर सकते हैं। 1876 ई० में कानून द्वारा तलवार रखना बन्द कर दिया गया। इससे सामन्ती प्रतिष्ठा और पार्थक्य का दिखावटी चिह्न खत्म हो गया।

4.       औद्योगिक विकास

जापान में शीघ्र ही नए-नए कारखाने स्थापित किए गए और यूरोप तथा अमेरिका से मशीनें मंगवाई गईं। वहाँ के विशालकाय कारखानों में कपड़ा, रेशम, लोहे के सामान आदि प्रचुर मात्रा में तैयार होने लगे। जापानी सरकार की एक यह भी नीति थी कि ऐसे व्यवसायों के विकास पर विशेष रूप से ध्यान दिया जाए जो सैनिक दृष्टिकोण से महत्त्वपूर्ण हों। इसलिए, जापान में खानें खोदी गईं, लोहा-इस्पात के व्यवसाय को उन्नत किया गया तथा युद्धोपयोगी सामग्री के उत्पादन के लिए कारखाने खोले गए। वाष्प शक्ति के विकास पर विशेष बल दिया गया। 1890 ई० तक जापान के अधिकांश कल-कारखाने भाप की शक्ति से ही काम करने लगे।  1872 ई० में जापान में सर्वप्रथम रेल लाइनों का निर्माण शुरू हुआ और 1894 ई० तक सारे देश में रेल की लाइनें फैल गईं। 1868 ई० में टेलीग्राफ का जापान में पहले-पहल प्रवेश हुआ। कुछ ही दिनों में जापान में डाकघरों की स्थापना हो गई। 1883 ई० तक नागासाकी के कारखाने में दस और हयोगी के कारखाने में तेईस भाप से चलनेवाले जहाज तैयार हुए। वह संसार की एक प्रमुख नाविक शक्ति बन गया।

5.       कृषि में सुधार 

1872 ई में किसानों का अपने खेतों पर स्वत्व स्थापित हो गया और सामन्ती असुविधाओं से उन्हें छुटकारा मिल गया। पहले सामन्त लोग अपनी जागीरों की भूमि जोतने वाले किसानों से उपज का एक निश्चित भाग लगान के रूप में लिया करते थे। पर, अब सरकार ने उपज का भाग लेने के स्थान पर सिक के रूप में मालगुजारी लेनी प्रारम्भ की। इससे किसानों को बहुत लाभ पहुँचा। कृषि के क्षेत्र में उन्नति कर पैदावार बढ़ाने के लिए विशेष यत्न किए गए। किसानों को हर तरह की राजकीय सहायता दी गई, ताकि वे पैदावार बढ़ा सकें। उन्हें नए वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने की विधि बताई गई। लेकिन, इससे भी किसान संतुष्ट नहीं हुए, क्योंकि उनसे बड़ा कड़ा लगान वसूल किया जाता था। 1883 ई० से 1890 ई० तक कर वसूलने के लिए किसानों पर घोर अत्याचार किए गए।

6.        शिक्षा में सुधार

1868 ई० के शाही शपथ के निर्देश 'हर स्थान से ज्ञान प्राप्त किया जाए' के अनुसार 1871 ई० में शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। इसके लिए एक कानून बनाकर व्यवस्था कर दी गई कि "हर व्यक्ति ऊँचा और नीचा, स्त्री और पुरुष, शिक्षा प्राप्त करे जिससे सारे समाज में कोई भी परिवार और परिवार का कोई भी व्यक्ति अशिक्षित और अज्ञानी न रह जाए।" अमेरिका की प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में संशोधन कर जापान ने उसे अपनी पद्धति का आधार बना लिया। सारे देश को आठ विश्वविद्यालय क्षेत्रों में बाँटा गया। इन क्षेत्रों के बत्तीस माध्यमिक विद्यालय प्रदेश बनाए गए। हर प्रदेश को दो सौ दस प्राथमिक पाठशाला हलकों में विभक्त किया गया। इस प्रकार हर छह सौ आदमियों के लिए एक प्राथमिक पाठशाला उपलब्ध हो गई। छह वर्ष के बालक-बालिकाओं के लिए चार वर्ष का और बाद में छह वर्ष का शिक्षणकाल पूरा करना अनिवार्य कर दिया गया। उन्हें सामान्य आवश्यक विषयों के अतिरिक्त सम्राट् के प्रति आदर और निष्ठा से सम्बद्ध चारित्रिक शिक्षा भी दी जाने लगी।

7.       नई जीवन-शैली का विकास

1872 ई० में सभी राजकीय पदाधिकारियों का पाश्चात्य वेश भूषा धारण करना अनिवार्य कर दिया गया। सूट पहनने का प्रचार इतना बढ़ा कि लन्दन की बढ़िया दर्जियों की गली 'साबिल रो' की नकल पर जापान में भी दर्जियों का 'सेबीरो' मुहल्ला बस गया। हाथ मिलाकर अभिवादन करने के रिवाज का भी प्रचलन हुआ। औरतें विक्टोरियन ढंग के कपड़े पहनने लगीं। 1873 ई० में सम्राज्ञी ने दाँतों को काला करना और भौहें मुड़वाना बन्द कर दिया। यह जापान में विवाहित स्त्रियों का पुराना रिवाज था। तब से यह बिलकुल बन्द हो गया। दाँतों पर ब्रश से मंजन करने का रिवाज इतना बढ़ा कि जापान में टूथपेस्टों की सबसे ज्यादा खपत होने लगी।

8.       धार्मिक तथा राजनीतिक जीवन में परिवर्तन 

बौद्धधर्म के बदले अब शन्तो धर्म को लोकप्रिय बनाया जाने लगा। यह जापान का राजधर्म बन गया। इस धर्म के द्वारा राष्ट्रीयता के विकास में सहायता मिली। लोग सम्राट् के प्रति पहले से अधिक राजभक्ति और सम्मान प्रदर्शित करने लगे। राष्ट्र में देशभक्ति की भावना लाने में धर्म का उपयोग किया गया। इसके फलस्वरूप, जापानी लोगों में राष्ट्रीय चेतना और एकता की भावना का प्रादुर्भाव हुआ। जापान पर पश्चिम के राजनीतिक दर्शन, विशेष रूप से उन्नीसवीं शताब्दी के व्यापक उदारवाद का प्रभाव पड़ा।  इसी समय जापान में कुछ प्रगतिशील विचारक पैदा हुए, जिन्होंने शासन में सुधार के लिए आन्दोलन चलाया। इस आन्दोलन का एक नेता था ईतागाकी ताईसूके। 1874 ई० में उसने सम्राट् से अनुरोध किया कि 1868 ई० की घोषणा के अनुसार जापान में संसद की स्थापना की जाए जो जापान के लोकमत का वास्तविक प्रतिनिधित्व करे। इस माँग को राष्ट्रीय रूप देने के लिए 1875 ई० में 'आईकोकुशा' (देशभक्तों का समाज) नामक एक संगठन बनाया गया। । 1878 ई० में जापान में स्थानीय स्वशासन का सूत्रपात किया गया । 11 फरवरी, 1889 को नए संविधान की घोषणा की गई। इसे 'मेईजी संविधान' कहते हैं।

9.       न्याय और कानूनी व्यवस्था

1873 ई० में एक दण्ड संहिता तथा फौजदारी कानून की रचना आरम्भ की गई। यह कार्य 1880 ई० में समाप्त हुआ और 1882 ई० में उसे स्वीकार कर लिया गया। इन कानूनों पर फ्रांसीसी कानूनों का गहरा प्रभाव था। एक दीवानी संहिता बनाने का काम 1870 ई० में आरम्भ हुआ और 1890 ई० में पूरा होने पर उसे स्वीकार कर लिया गया। इसी वर्ष राज्यक्षेत्रातीत अधिकार भी समाप्त कर दिए गए। दीवानी संहिता का आधार भी फ्रांसीसी कानून ही था, यद्यपि इसमें जर्मनी और कुछ अन्य देशों के कानूनों की भी कुछ बातें ली गई थीं। दीवानी मामलों के लिए कानून 1891 ई० से लागू था। जर्मन मूल से तैयार व्यापार संहिता भी दीवानी संहिता के समान ही लागू की गई। जापान के न्याय विभाग का संगठन भी नए सिरे से किया गया। छोटे और बड़े न्यायालयों का निर्माण करते हुए फ्रांस की न्याय पद्धति को आदर्श माना गया। 1889 ई० तक न्यायालय से सम्बद्ध नई व्यवस्था की रूपरेखा तैयार हो गई और 1894 ई० में सम्पूर्ण देश में इस पद्धति के अनुसार न्याय का प्रशासन चलने लगा।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि पुनःस्थापना के बाद जापान के जीवन के प्रत्येक पक्ष का कायापलट हुआ। खाने-पीने, रहने-सहने, ओढ़ने-पहनने, सोचने-विचारने तथा राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक जीवन की सारी क्रियाएँ आश्चर्यजनक तेजी के साथ बदलती गईं। जापान एक उन्नत, आधुनिक देश के रूप में संसार के रंगमंच पर आया।

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