बुधवार, 24 अप्रैल 2024

हिन्दी साहित्य का इतिहास

 

भारत में मुस्लिम शासन की स्थापना से पूर्व ही हिन्दी भाषा एवं साहित्य का विकास आरम्भ हो चुका था।

A.  आदि काल

इस काल के कवि आश्रयदाता राजाओं और उनके पूर्वजों के पराक्रम, रूप एवं दान की प्रशंसा करते थे। साथ ही इन पर धार्मिक मतों का भी प्रभाव था

1.      सिद्ध साहित्य

बौद्ध धर्म कालांतर में तंत्र-मंत्र की साधना में बदल गया था। वज्र यान इसी प्रकार की साधना थी। सिद्धों का संबंध इसी वज्र यान से था। इनकी संख्या 84 बताई जाती है। प्रथम सिद्ध सरहपा 8वीं शताब्दी के थे। इन्होंने वैदिक वर्णाश्रम धर्म पर तीव्र प्रहार किया था।

2.      नाथ साहित्य

नाथ शब्द का अर्थ है जो मुक्ति प्रदान करें । इसमें बौद्ध और शैव संप्रदायों के विचारों का मेल था। इस संप्रदाय में नौ नाथों का जिक्र है। इन्होंने सिद्धों के प्रवृति मार्ग के विरुद्ध निवृति मार्ग की स्थापना की। गोरखनाथ कहते थे

"नौ लख पातर आगे नाचें, पीछे सहज अखाड़ा।

ऐसे मन ले जोगी खेलें, तब अंतरि बसे भंडारा।।"

3.      जैन कवि

जैन शब्द जिन से बना है, जिसका अर्थ है विजय पाने वाला, और यह विजय सांसारिक आकर्षणों पर हैं। जैनों को राजाओं और धनी व्यापारियों का संरक्षण प्राप्त था। प्रमुख जैन कवियों में प्रमुख नाम हेमचंद्र का है जो 11 वीं शताब्दी के थे तथा इनके दोहे प्राकृत व्याकरण में संकलित हैं। स्वयंभू की प्रमुख रचना पऊम चरियम है। इसमें राम के चरित्र का वर्णन है। पुष्पदंत जो पहले शैव थे अब जैन हो गए लेकिन इनके वर्ण्य विषय राम ही थे।

4.      रासो या वीरगाथा साहित्य

 रासो काव्य धारा में तीन तरह के ग्रंथ लिखे गए - वीरता प्रधान, शृंगार प्रधान और उपदेश प्रधान।

वीरता प्रधान रचना का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण चंद बरदाई का पृथ्वी राज रासो है। इसमें नायिका का नख सिख वर्णन, सेना का प्रयाण, युद्ध, षडऋतुओं आदि का सुंदर वर्णन है। जगनिक का आल्ह खंड भी महत्वपूर्ण रचना है

जबकि शृंगार प्रधान रचनाओं में नरपति नाल्ह का बिसलदेव रासो है। इसमें बारहमासा का सबसे पहले वर्णन मिलता है। मुल्ला दाउद की चंदायन भी प्रसिद्ध रचना है।

5.      अन्य कवि

अमीर खुसरो

खुसरो खड़ी बोली हिंदी तथा उर्दू के पहले कवि माने जाते हैं। इनका व्यक्तित्व बहु आयामी था। इनके प्रमुख ग्रंथों में पहेलियां, मुकरियां, दो सुखने, ग़ज़ल, खालिक बारी तथा ढकोसला प्रसिद्ध है खुसरो की रचनाओं का भाव और कला पक्ष दोनों ही अद्भुत है।

भाव पक्ष

काहे को बियाहे परदेस, सुन बाबुल मोर,

भैया को दिहे बाबुल, महला दो महला

हमको दीहे परदेश, सुन बाबुल मोर

मैं तो हूं बाबुल तोरे खूंटे की गैया,

हांकी हुंकी जाऊं परदेश

https://www.youtube.com/watch?v=YxOwoO40xJw

कला पक्ष

फारसी और ब्रजभाषा का प्रयोग

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल दुराय नैनाँ बनाए बतियाँ

कि ताब-ए-हिज्राँ नदारम ऐ जाँ न लेहू काहे लगाए छतियाँ

https://www.youtube.com/watch?v=X0bCsxJk3P8

विद्यापति

विद्यापति आदि काल के मैथिल कवि हैं। इनमे भक्ति और शृंगार दोनों की प्रधानता है। पदावली इनकी प्रमुख रचना है। इसने राधा कृष्ण के प्रेम का वर्णन है।

सखि हे, कि पुछसि अनुभव मोए।

सेह पिरिति अनुराग बखानिअ तिल-तिल नूतन होए॥

जनम अबधि हम रूप निहारल नयन न तिरपित भेल॥                                                

B.     भक्ति काल

भारत में दिल्ली सल्तनत की स्थापना के पश्चात् इस्लाम धर्म का प्रभाव बढ़ने लगा। इसके अनेक कारणों में एक प्रमुख कारण हिन्दू समाज में प्रचलित कुरीतियाँ थीं। अतः हिन्दू धर्म सुधारकों ने इस्लाम धर्म के प्रभाव को रोकने तथा हिन्दू धर्म में व्याप्त कर्मकाण्डों एवं वाह्य आडम्बरों को समाप्त करने के लिए भक्ति मार्ग का प्रचार आरम्भ किया जिससे भक्ति आन्दोलन का उदय हुआ।

इस काल के संतों ने भक्ति के निर्गुण तथा सगुण दो रूपों को अपनाया।

1.      निर्गुण शाखा

इस शाखा के संतों ने ज्ञान एवं प्रेम का आश्रय लिया जिससे निर्गुण शाखा के अन्तर्गत ज्ञानाश्रयी एवं प्रेमाश्रयी उपाशाखाओं की उत्पत्ति हुई।

(क)           ज्ञानाश्रयी

निर्गुण शाखा के अन्तर्गत ज्ञानाश्रयी संतों में कबीर, नानक, रैदास, दादू दयाल, मलूकदास आदि के नाम प्रमुख है। कबीर का जन्म 1398 ई० में काशी में हुआ था। इनका पालन-पोषण अली अथवा नीरू नाम के जुलाहे ने किया था। कबीर पढ़े लिखे नहीं थे फिर भी उन्होंने हिन्दुओं एवं मुसलमानों को बहुमूल्य शिक्षा प्रदान की है। कबीर ने स्वामी रामानन्द का शिष्य होना स्वीकार किया है परन्तु एक स्थान पर वह सुफी संत शेख तकी से भी दीक्षा लेने का उल्लेख करते हैं। उनकी वाणी का संग्रह बीजक के नाम से प्रसिद्ध है जिसमें रमैनी, सबद एवं साखी तीन भाग किए गये हैं।

रैदास कबीर के समकालीन थे। यह जाति के चर्मकार थे। इनका कोई ग्रंथ उपलब्ध नहीं है। केवल कुछ पद ही 'बानी' के नाम से 'संतबानी सीरीज' में मिलते हैं। 'गुरु ग्रंथ साहब' में इनके चालीस पद संग्रहीत हैं। इनके पदों की भाषा सहज एवं सरल है।

दादू दयाल का जन्म 1544 ई० में अहमदाबाद में हुआ था। यह कबीरपंथी थे जिसके कारण इनकी 'बानी' में कई स्थानों पर कबीर का नाम आया है। इनकी 'बानी' अधिकतर कबीर की साखी से मिलते जुलते दोहों में है। इन्होंने पंजाबी एवं गुजराती में पद लिखे हैं। इनकी भाषा मिली जुली पश्चिमी हिन्दी है जिसमें कहीं-कहीं अरबी, फारसी के शब्दों का प्रयोग मिलता है।

मलूकदास का जन्म 1574 ई० में इलाहाबाद के कड़ा नामक स्थान में हुआ था। इनकी भाषा में अरबी एवं फारसी के शब्दों का प्रयोग मिलता है। इनके कुछ पद खड़ी बोली में भी हैं। इनकी 'रत्लखान' एवं 'ज्ञान बोध' दो प्रसिद्ध रचनायें हैं।

(ख)          प्रेमाश्रयी

निर्गुण शाखा के प्रेमाश्रयी कवियों में मुख्यतः सूफी थे।

कुतुबन चिश्तिया सम्प्रदाय के सूफी शेख बुरहान के शिष्य थे। इन्होंनें 'मृगावती' नामक एक प्रसिद्ध प्रेम-काव्य की रचना की। इसमें चन्द्रनगर के राजा गणपति देव के राजकुमार तथा कंचनपुर के राजा रूपमुरारी की सुपुत्री मृगावती और प्रेमकथा का सुन्दर वर्णन है। इसकी भाषा अवधी है।

मंझन की रचना का शीर्षक 'मधुमालती' है जो अवधी भाषा में है। इसमें कनेसर के राजकुमार मनोहर तथा महारस की राजकुमारी मधुमालती के प्रेम द्वारा ईश्वरीय प्रेम को दिखाया गया है। इसमें प्रति पाँच चौपाई के पश्चात् एक दोहा लिखा गया है।

जायसी का पूरा नाम मलिक मोहम्मद जायसी था जो उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले में स्थित जायस के रहने वाले थे। इन्होंने तीन ग्रंथों की रचनायें कीं- 'प‌द्मावत', 'अखरावट' एवं 'आखिरी कन्गम'। इनके इन तीन ग्रन्थों में 'प‌द्मावत्' सुप्रसिद्ध है। जायसी ने प्रेमकाव्य के द्वारा सम्पूर्ण सूफीवादी दर्शन को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। इनकी भाषा अवधी है। हिन्दी साहित्य में 'प‌द्मावत्' की गणना उच्च कोटि की रचनाओं में की जाती है।

2.      सगुण शाखा-

इस शाखा के कवियों ने अपने-अपने इष्टदेवों की भाँति में रचनायें कीं। इनमें कुछ ने राम तथा कुछ ने कृष्ण को अपना इष्टदेव स्वीकार किया जिससे राम-भक्ति उपशाखा एवं कृष्ण-भक्ति उपशाखा का उदय हुआ।

(क)           राम-भक्ति

राम भक्ति का प्रचार स्वामी रामानन्द ने किया परन्तु रामभक्त कवियों में गोस्वामी तुलसीदास एवं आचार्य केशवदास के नाम सर्वप्रमुख हैं। तुलसीदास का जन्म 1532 ई० में 'बाँदा के राजापुर गाँव में हुआ था। इनके सगुण राम राजा दशरथ के पुत्र थे। इन्होंने राम की भक्ति पर विशेष बल दिया तथा संसार को 'सियाराममय' कहा है। इन्होंने राम को ब्रह्म तथा सीता को प्रकृति स्वरूप स्वीकार किया। इनकी रचनाओं में 'रामलला नहछू', 'जानकी मंगल', 'वैराग्य संदीपनी', 'रामचरित मानस', 'सतसई', 'बरवै रामायण', 'विनय पत्रिका', 'गीतावली', बहुत प्रसिद्ध हैं। इनकी भाषा मुख्यतः अवधी है ।

आचार्य केशवदास गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन थे। इनका जन्म 1555 ई० में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनकी सुप्रसिद्ध रचना 'रामचन्द्रिका' है जो कि ब्रजभाषा में है।

(ख)          कृष्ण-भक्ति

सगुण शाखा के कृष्ण भक्तों में वल्लभाचार्य का स्थान सर्वप्रमुख है जिनकी शिष्य परम्परा में सूरदास का नाम सर्वोपरि है। सूरदास के अतिरिक्त कृष्ण भक्ति उपशाखा के कवियों में मीराबाई, रसखान, नन्ददास, कृष्णदास, परमानन्द दास, के नाम उल्लेखनीय है।

सूरदास का जन्म 1483 ई० में रुक्नता नामक ग्राम में हुआ था। इन्होंने 'सूरसारावली', 'साहित्य लाहरी' और 'सूरसागर' आदि ग्रन्थोंकी रचनायें की। इनकी काव्य-भाषा ब्रज है। कृष्ण चरित का गान करने वाले कवियों में सूरदास का स्थान सर्वश्रेष्ठ है।

मीरा का जन्म 1499 ई० में मेड़ता के कुदकी नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता रत्न सिंह राठौर थे। इनका विवाह उदयपुर के युवराज भोजराज के साथ हुआ था परन्तु विवाह के कुछ समय पश्चात् यह विधवा हो गयीं। मीरा के अधिकतर पदों की भाषा राजस्थानी है परन्तु कुछ पद साहित्यिक ब्रज भाषा में है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार मीरा द्वारा रचित चार ग्रंथ कहे जाते हैं- 'नरसी का मायरा', 'गीत गोविन्द टीका', 'राग गोविन्द' एवं 'सोरठ के पद'

रसखान का सम्बन्ध दिल्ली के अफगान राजवंश से था। ऐसा कहा जाता है कि यह कृष्ण के चित्र को देखकर उनके भक्त हो गये इनकी 'प्रेम वाटिका' और 'सुजान रसखान' प्रसिद्ध रचनायें हैं। इनकी भाषा विशुद्ध ब्रज है जिसमें अरबी एवं फारसी के शब्दों का प्रयोग भी मिलता है।

                                  रीतिकालीन साहित्य

रीति काल का उदय हिन्दी साहित्य में 1643 ई० से माना जाता है जिसे कुछ विद्वानों ने 'शृंगार काल' की संज्ञा दी है ।

शाहजहाँ के दरबार में सुन्दर दास, चिन्तामणि और कवीन्द्र आचार्य प्रमुख कवि थे ।

सुन्दर दास जाति के ब्राह्मण थे और ग्वालियर के रहने वाले थे। इन्हें शाहजहाँ ने 'महा कविराय' की उपाधि से विभूषित किया था । इन्होंने सुन्दर  शृंगार', 'सिंहासन बत्तीसी' और 'बारहमासा' नामक ग्रन्थ लिखे ।

चिंतामणि कानपुर के रहने वाले थे । वे अपने समय के उच्चकोटि के कवि थे । शाहजहाँ ने इन्हें प्रश्रय दिया। इन्होंने 'छन्द विचार', 'काव्य विवेक', 'कविकुल  कल्पतरु' और 'काव्य प्रकाश' नामक ग्रन्थ लिखे ।

कवीन्द्र आचार्य बनारस के रहने वाले थे । उन्होंने 'कवीन्द्र कल्पलता' शाहजहाँ और उसके पुत्रों की प्रशस्ति में लिखा ।

जोधपुर के राजा जसवन्त सिंह की रुचि हिन्दी भाषा में थी । उन्होंने ब्रज- भाषा में 'भाषा भूषण' नामक ग्रन्थ लिखा ।'

बिहारी लाल का जन्म ग्वालियर के समीप गोविन्दपुर में हुआ था । इन्हें मिर्जा राजा जयसिंह का संरक्षण प्राप्त था, जिन्होंने इनको राजकवि की उपाधि से विभूषित किया था । अपने संरक्षक को विलास में डूबा हुआ देख कर निम्नलिखित दोहा लिख कर उनके पास भेजा :-

नहि पराग नहि मधुर मधु नहि विकास यहिकाल ।

अली कली ही सो बँध्यो, आगे कौन हवाल ।।

बिहारी ने 'सतसई' की रचना की है, जिसमें दोहे और छन्दों का प्रयोग किया गया है। बिहारी ने शृंगार का सुन्दर वर्णन किया है और संयोग तथा वियोग की सभी अवस्थाओं को कुशलता से दर्शाने का प्रयास किया है।

भूषण (1613-1715) को चित्रकूट के सोलंकी राजा रुद्र ने 'कवि भूषण' की उपाधि से विभूषित किया। तभी से ये भूषण के नाम से प्रसिद्ध हैं। इनके तीन प्रख्यात ग्रन्थ हैं- 'शिवराज भूषण', 'शिवा बावनी' और 'छत्रसाल दशक' । इन पुस्तकों पर रीतिकाल का प्रभाव है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

History of Urdu Literature

  ·        Controversy regarding origin Scholars have opposing views regarding the origin of Urdu language. Dr. Mahmood Sherani does not a...