सुल्तान
फिरोज के समक्ष मुख्य कार्य जनता तथा कर्मचारियों तथा विशेषकर उमरा वर्ग को
सन्तुष्ट करना था जो मुहम्मद तुगलक़ के शासन में हुए परिवर्तन से भयभीत तथा
असन्तुष्ट थे। उसने इस बात का भी प्रयास किया कि उन लोगों को सन्तुष्ट किया जाए
जिन पर सुल्तान मुहम्मद के काल में अत्याचार हुआ था ।
संतुष्टि दायक उपाय
1.
ऋण
पंजीकाओं को नष्ट करना
फिरोज
तुगलक के शासक बनने पर उसके समक्ष वह पंजिका प्रस्तुत की गई जिसमें उन लोगों के
नाम थे जिनको मृतक सुल्तान ने कृषि के विकास हेतु दो करोड़ टंके सरकारी ऋण (सोनधर)
में दिये गये थे। यह देख फिरोज उलझन में पड़ गया तथा कवामुलमुल्क से परामर्श लिया
इसके पश्चात उसने दरबार में इन पंजीकाओं को नष्ट कर दिया। इससे इस धन के दुरुपयोग
करने वाले अफसर बड़े प्रसन्न हुये।
2.
खाने
जहाँ मकबूल की नियुक्ति
उसी
दिन मलिक मकबूल वजीर नियुक्ति हुआ तथा उसको उपाधि खाने जहां मकबूल रखी गई । यह
मुहम्मद तुगलक के समय से ही विभिन्न पदो पर कार्य करता आया था तथा अपने काम से
प्रभावित किया था। यह अपनी ईमानदारी तथा कर्तव्य निष्ठा के कारण प्रसिद्ध था।
फिरोज कहा करता थाः दिल्ली का वास्तविक शासक खाने जहां है परन्तु खाने जहां कभी
अपनी हद नहीं भूला ।
3.
कठोर
सजा पर रोक
फिरोज
तुगलक ने रक्तपात तथा यातनाओं पर निषेध लगा दिया। बरनी कहता है कि सबसे बड़ा कारण
जिसने फिरोज शाह के शासन को स्थिरता में योगदान दिया । वह कहता है कि 'सियासत' मृत्युदण्ड का निषेध था
। भूतकाल में जो विभत्स यातनाएं दी जाती थी फिरोज ने उनको बन्द करवा दिया। शरीयत
के अनुसार राजतन्त्र को मान्यता नहीं है अतः राजदोहों के लिये कोई दंड निर्धारित
नहीं किया । फिरोज के ही अनुसार "कष्ट दिए बिना ही जनता के मन में सरकार के
प्रति भय तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई।"
4.
मुहम्मद
तुगलक के कार्यों के लिए जनता से माफीपत्र
फिरोज तुगलक ने मुहम्मद तुगलक के कार्यों के लिये पश्चाताप किया। उसने उन लोगों से जिनके परिजनों की हत्या मुहम्मद तुगलक के काल में हुई या नुकसान हुआ उनको क्षतिपूर्ति देकर एक माफीनामा ले लिया। जिससे की मृत्तक सुल्तान की आत्मा को शान्ति मिले तथा जनता को अपने नुकसान की क्षतिपूर्ति मिले तथा वह मुहम्मद तुगलक को माफ कर सके।
5.
खुत्बे
में पूर्व शासकों का नाम
फिरोज
ने आदेश दिया कि शुक्रवारीय धार्मिक प्रवचनों में उसके नाम के पहले दिल्ली के
पूर्व के सुल्तानों के नामों का भी उल्लेख किया जाना चाहिये । परन्तु कुतुबुद्दीन
का नाम न होना आश्चर्यजनक है। प्रत्येक शुक्रवार को नमाज के पश्चात फिरोजशाह की यह
नियम था कि वह मुहम्मद बिन तुगलक की बहन खुदावन्द जादा को देखने जाता था जिसने
उसकी हत्या का प्रयास किया था ।
6.
अमीरों
को पद को वंशानुगत करके उन्हें उच्च वेतन
फिरोज
ने अपने अमीरों के पदों को वंशानुगत कर दिया तथा उनको अत्यन्त उच्च वेतन देना शुरू
किया। वह अपने खानों और मलिको की नीजी आप के रूप में 4 लाख टंका, 8 लाख टंका वेतन देता
था। उसके वजीर खाने जहां को 13 लाख टंका का वेतन मिलता था।
राजस्व
व्यवस्था सुधार प्रयास
1.
जमा
का निर्धारण
अनुभवी
अधिकारी ख्वाजा हुसामुद्दीन ने विभिन्न प्रान्तों का दौरा करके राजस्व सम्बन्धी
सभी रिकॉर्डों की जाँच की और छः वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद राज्य का महसूल छः
करोड़ और पिचहत्तर लाख टंका निश्चित किया। सुल्तान फिरोज के शासनकाल के अन्त तक
महसूल की यह रकम अपरिवर्तित रही और जमा में कोई परिवर्तन नहीं किया गया।
2.
अबवाबों
का हटाना
पूर्व
मुसलमानों के शासन कालों में अनेक अबवाब लगा दिए थे। सुल्तान ने कर व्यवस्था को इस्लामी विधि के
अनुसार लागू किया। इस्लाम में विधि-सम्मत करों के अन्तर्गत चार करों को रखा गया
है—खिराज, खम्स, जजिया और जकात। फिरोज ने पहली बार ब्राह्मणों पर
कठोरता से जजिया कर लगाया। फ़िरोज ने सिचाई की सुविधा प्रदान करने के बदले में हक़ ए
शर्ब नाम का कर 10% लिया।
3.
कर
वसूली का आधार उत्पादन
बरनी
के अनुसार फिरोज शाह तुगलक के शासन को स्थायी बनाने वाला एक कारण यह था कि उसने यह
आदेश दिया कि खराज (भूमिकर) हुक्म- ए- हासिल के अनुसार लगाये जायेगें। इससे यह
फायदा हुआ कि उत्पादन घटने या बढ़ने पर इसकी लाभ तथा हानी किसान तथा शासक दोनों को
उठाना पड़ता था। इससे किसानों को कुछ राहत मिला होगा।
4.
राजस्व
वृद्धि के कार्य
सुल्तान
फिरोज ने कृषि के विस्तार तथा राजस्व वृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण कार्य किए थे। सिंचाई
की सुविधा के लिए फीरोज ने पाँच बड़ी नहरों का निर्माण कराया। इनमें से एक 150 मील
लम्बी नहर यमुना नदी से हिसार तक बनायी गयी थीं। दूसरी 96 मील लम्बी नहर सतलज से
घग्घर तक जाती थी। तीसरी नहर सिरमौर की पहाड़ियों के निकट से आरम्भ होकर हाँसी तक
जाती थी। चौथी नहर घग्घर से फीरोजाबाद शहर तक और पाँचवीं यमुना नदी से फीरोजाबाद
तक जाती थी। इन नहरों के कारण कृषि योग्य भूमि में वृद्धि हुई, व्यापारिक सुविधाएँ
बढ़ीं और सिंचाई कर के रूप में राज्य की आय में वृद्धि हुई। फीरोज ने सिंचाई और
यात्रियों की सुविधा के लिए 150 कुएँ खुदवाये। फरिश्ता के अनुसार फीरोज ने सिंचाई
की सुविधा के लिए विभिन्न नदियों पर 50 बाँध और 30 झीलों अथवा जल को संग्रह करने
के लिए तालाबों का निर्माण कराया था।
सैन्य व्यवस्था में
सुधार प्रयास
1.
वेतन
के रूप में भूमि अधिन्यास की शुरुआत तथा इजारेदारी
फिरोज
शाह ने सम्पूर्ण सेना को वेतन के बदले भूमिकर अधिन्यास देने लगा । यह विलक्षण
प्रणाली थी तथा दिल्ली के पूर्व के सुल्तानों ने इसकी अनुमति नहीं दो थी। इसका असर
काफी दूरगामी तथा नुकसानदायक परिणाम हुआ। कार्यस्थल पर नियुक्त सैनिक अपनी वेतन
नहीं वसूल सकते थे अतः उसने इसे ठेके पर दिया इससे ठेकेदार काफी समृद्ध हो गये तथा
सैनिक परेशान हो गये।
2.
सैनिकों
के पदों को वंशानुगत करना
अफिक
के अनुसार यदि कोई सैनिक मर जाता था या बुढ़ा हो जाता था तो उसका पद उसके पुत्र को
स्थायी रूप से दे दिया जाता था। वह भी न हो सके तो स्थायी रूप से उसके दास को और
यदि उसके कोई दास भी न हो तो उसकी महिलाओं को मिलता था। यह नियम फिरोज के के चालीस
वर्ष के शासन काल में बना रहा।
3.
सेना
में भ्रष्टाचार को प्रश्रय
फ़िरोज
ने घोड़ों को दागने की प्रथा में ढील दी।
उदारता और दया के प्रति सर्वथा गलत दृष्टिकोण अपनाने हुये फिरोज ने तो एक बार एक
व्यथित सैनिक को एक स्वर्ण टंका भी दिया ताकि वह अपने अधिकारी लो अपने निम्न
स्तरीय घोड़े को मंजूर कराने के लिये रिश्वत दे सके ।
इन्हें
नरम उपायों के कारण, बरनी की अति रजिंत भाषा में प्रशासन में स्थापित्व आया, शासन के सारे कार्य
व्यवस्थित हो तथा एवं सभी वर्गो के लोग संतुष्ट हो गये, हिन्दू अथवा मुस्लिम
प्रजा प्रसन्न हो गई और हर कोई अपने-अपने पेशे से जुट गया।" पर इस नरमी के
परिणाम वास्तव में सत्ता को कमजोर करने वाले हुये जिसका परिणाम आने
उत्तराधिकारियों को भुगतना पड़ा।
कल्याणकारी राज्य की स्थापना
का प्रयास
सुल्तान
फिरोज अपने जनकल्याणकारी कार्यों के लिए प्रसिद्ध है। उसने राज्य के कुछ वर्गों के
प्रति शासन के उत्तरदायित्व को स्वीकार किया जिसे राज्य को कल्याणकारी स्वरूप देने
का प्रयास माना जा सकता है। लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक है कि उसकी कल्याणकारी
अवधारणा केवल मुस्लिम समाज तक ही सीमित थी।
1.
रोजगार
दफ्तर
उसका
एक महत्वपूर्ण कार्य रोजगार दफ्तर खोलना था। दिल्ली के कोतवाल को सुल्तान ने आदेश
दिया कि वह उन लोगों की खोज करे जो बेकार हैं और उन्हें दरबार में पेश करे।
सुल्तान स्वयं उनकी योग्यता की जाँच करता था और उसके अनुसार उन्हें नौकरी दी जाती
थी। बेकार लोग स्वयं भी रोजगार दफ्तर में नाम लिखा सकते थे।
2.
विवाह
कार्यालय
जनकल्याण
की दिशा में सुल्तान का दूसरा कार्य गरीब मुस्लिम परिवारों की कन्याओं के विवाह के
लिए राज्य की आर्थिक सहायता देना था। इसके लिए दीवाने-खैरात नाम का एक पृथक् विभाग
स्थापित किया। निर्धन मुसलमान और विधवाएँ कन्या के वयस्क होने पर इस सहायता के लिए
प्रार्थना-पत्र दे सकते थे। उन्हें 50 या 25 टंके स्थिति के अनुसार सहायता दी जाती थी। यह
विभाग विधवाओं तथा अनाथ बच्चों की भी सहायता करता था।
3.
शिफाखाना
सुल्तान
ने औषधालयों की भी स्थापना की थी जहाँ रोगियों को दवा और भोजन मुफ्त प्रदान किया
जाता था। सुलतान ने इसके खर्च के लिए कुछ गाँव निश्चित कर रखे थे।
4.
शिक्षा
को प्रोत्साहन
फिरोज
तुगलक को शिक्षा में विशेष अभिरुचि थी। उसने तीस मदरसों की स्थापना की थी जिनमें
दिल्ली का मदरसा इस्लामी ज्ञान तथा अध्ययन का महत्वपूर्ण केन्द्र था। इस केन्द्र
में सुल्तान ने पश्चिम एशिया के प्रसिद्ध विद्वानों को बुलाकर नियुक्त किया था।
राज्य की ओर से शिक्षकों को उदारपूर्वक धर्मस्व प्रदान किया गया तथा विद्यार्थियों
के लिए भी वजीफों की व्यवस्था की गयी थी। इन मदरसों में राज्य ने शिक्षा की पूरी
सुविधाओं का इन्तजाम किया था। सुल्तान को स्वयं इतिहास तथा इस्लामिक ज्ञान में
रुचि थी।
5.
पेंशन
कार्यालय
फ़िरोज ने अपने नागरिक एवं सैन्य सेवा में लगे लोगों
के लिए आजीवन पेंशन देने का प्रबंध करने का प्रयास किया ।
6.
दीवाने
बन्द गान
फीरोज
को दासों का बहुत शौक था और उसके दासों की संख्या प्राय: 1,80,000 तक पहुँच गयी थी।
प्रत्येक दास को 10 से 100 टांके के बीच तक वेतन मिलता था तथा कभी-कभी जागीरें भी
मिलती थीं। उनकी देखभाल के लिए एक पृथक विभाग और एक पृथक अधिकारी की नियुक्ति की
गयी थी। उन दासों की शिक्षा का पूर्ण ध्यान रखा जाता था। सभी सरदारों और सूबेदारों
को यह आदेश दिये गये थे कि वे अपने दासों से पुत्रवत्व्यवहार करें। फीरोज का यह
शौक राज्य के लिए हानिकारक सिद्ध हुआ।
7.
सार्वजनिक
निर्माण के कार्य—
फिरोज
ने अनेक निर्माण कार्य कराए। फिरोज को निर्माण कार्यों में इतनी रुचि थी कि
वूल्जले हेग ने उसकी तुलना रोमन सम्राट् आगस्टस से की है। फरिश्ता निर्माण कार्य
को सुल्तान का ‘मुख्य व्यसन’ बताता है। उसके अनुसार सुल्तान ने 40 मस्जिदें, 20
महल, 100 सराय, 5 जलाशय,
100 अस्पताल, 5
मकबरे, 100 स्नानागार, 10 स्मारक स्तम्भ और 150
पुल बनवाए थे। सम्भव है कि इनमें से उसने कुछ की मरम्मत करायी हो। वह यह भी कहता
है कि सुल्तान ने 300 नगरों की स्थापना की थी। बिजली गिरने से कुतुबमीनार की ऊपरी
मंजिल गिर गई थी, उसका निर्माण सुल्तान ने कराया था। सुल्तान की जिज्ञासा और
रुचि का प्रमाण यह है कि वह अशोक के दो स्तम्भों,
एक टोपरा से तथा दूसरा मेरठ से
दिल्ली लाया था।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें