अलाउद्दीन के साम्राज्य का आधार सैनिक शक्ति थी। सैनिक शक्ति के द्वारा ही उसने राज्य सिंहासन प्राप्त किया था और सैनिक शक्ति के द्वारा ही वह राजपद को सुरक्षित रख सका था। अतः उसने सेना को सुसंगठित और शक्तिशाली बनाने के लिए कई सुधार किए।
कारण
1. मंगोलों के लगातार आक्रमण हो रहे थे जिनसे
दिल्ली की सुरक्षा संकट में पड़ गई थी। अतः सीमा सुरक्षा के लिए सेना की आवश्यकता
थी।
2. सुल्तान साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था, विशेष रूप से वह दक्षिण
को विजित करना चाहता था।
3. साम्राज्य की आन्तरिक सुरक्षा के लिए भी
शक्तिशाली सेना आवश्यक थी।
4. सुल्तान की अनियन्त्रित शक्ति का आधार सैनिक
शक्ति थी जिसके कारण वह विभिन्न वर्गों को नियन्त्रण में रख सका था।
बरनी
ने भी शक्तिशाली सेना के महत्व को स्वीकार करते हुए फतवा-ए-जहाँदारी में लिखा है
कि, “राजत्व
दो स्तम्भों पर आधारित रहता है—पहला स्तम्भ है प्रशासन और दूसरा स्तम्भ है विजय।
दोनों स्तम्भों का आधार सेना है—यदि शासक सेना के प्रति उदासीन है तो वह अपने ही
हाथों से राज्य का विनाश करता है।”
1. स्थायी सेना
अलाउद्दीन
ने स्थायी सेना का निर्माण किया जो सुल्तान के प्रत्यक्ष नियन्त्रण में थी। उसके
पूर्ववर्ती सुल्तान प्रान्तों के अमीरों की सेनाओं पर निर्भर रहते थे। वे अधीनस्थ
सामन्तों से भी सेनाएँ प्राप्त करते थे। अलाउद्दीन ने इस प्रकार की निर्भरता को
समाप्त कर दिया। वह एक योग्य सेनापति था और सेना को सीधे अपने नियन्त्रण में रखना
चाहता था। इसके लिए सैनिकों की भर्ती सेना मन्त्री (आरिज-ए-मुमालिक) करता था और
उन्हें नकद वेतन दिया जाता था।
2. हुलिया
प्रत्येक
सैनिक को उसकी योग्यता के अनुसार भर्ती किया जाता था और उसे पद दिया जाता था।
सुल्तान भी सैनिकों की भर्ती का निरीक्षण करता था। भर्ती का आधार वंश या प्रजाति
नहीं थी बल्कि सैनिक की अपनी योग्यता थी। भर्ती किए गए सैनिकों के हुलिया का
रिकॉर्ड रखा जाता था। यह रिकॉर्ड आरिज के दफ्तर में रखा जाता था। इस सुधार से
प्रत्येक सैनिक को स्वयं उपस्थित होना अनिवार्य हो गया और वह अपने स्थान पर किसी
दूसरे को नहीं भेज सकता था।
3. दाग प्रणाली
सेना
में घुड़सवार सेना का विशेष महत्व था और सेना की कुशलता उसी पर निर्भर रहती थी।
सुल्तान ने घुड़सवार सेना को कुशल बनाने के लिए उत्तम घोड़े मँगवाए, साथ ही राज्य में घोड़ों
की नस्ल सुधारने का प्रयास भी किया गया। सैनिक अच्छे घोड़े रखें, इसके लिए घोड़ों को
दागने की प्रथा प्रचलित की गई।
4. नकद वेतन
अलाउद्दीन
ने प्रत्येक घुड़सवार सैनिक का वेतन 234 टंका प्रतिवर्ष निश्चित कर दिया। अगर वह एक
अतिरिक्त घोड़ा रखता था तो उसे 78 टंका प्रतिवर्ष अतिरिक्त मिलते थे। सैनिकों को
वेतन कोषालय से दिया जाता था। अलाउद्दीन ने वेतन के बदले भू-राजस्व या भूमि देने
की प्रणाली को समाप्त कर दिया। सम्भवतः पैदल सैनिकों को 156
टंका प्रतिवर्ष दिया जाता था। उन्हें भी नकद वेतन दिया जाता था।
5. बाजार नियन्त्रण
बाजार
में मुद्रा-स्फीति हो जाने के कारण वस्तुओं के दाम बढ़ रहे थे। लेकिन अलाउद्दीन
सैनिकों का वेतन बढ़ाने के लिए तैयार नहीं था। वह इसी वेतन पर सैनिकों को रखने के
लिए कृतसंकल्प था। अतः मूल्यों में वृद्धि रोकने के लिए उसने बाजार नियन्त्रण लागू
किया।
6. दुर्गों का निर्माण व मरम्मत
मंगोलों
का आक्रमण रोकने के लिए अलाउद्दीन ने सीमा पर नए दुर्गों का निर्माण कराया तथा
पुराने दुर्गों की मरम्मत कराई। इनमें योग्य सैनिकों को नियुक्त किया गया। उनके
लिए पर्याप्त शस्त्र, खाद्यान्न आदि भी रखा जाता था।
7. सेना का संगठन
सेना
का संगठन दशमलव प्रणाली पर था। सबसे छोटी इकाई दस सैनिकों की थी। इसके बाद सौ, हजार की इकाइयाँ थीं।
दस हजार सैनिकों की इकाई को ‘तुमन’ कहते थे। अमीर खुसरो ने ‘तुमन’ का उल्लेख किया
है।
8. योग्य सैन्य अधिकारियों की भर्ती
नसरत
खां. अलप खां, उलुग खां, मलिक काफूर
फरिश्ता
के अनुसार अलाउद्दीन की सेना में 4,75,000 सुसज्जित घुड़सवार थे। इनके अतिरिक्त, पैदल सेना और हाथी सेना
थी। अलाउद्दीन के सुधारों से सेना की शक्ति तथा कुशलता में वृद्धि हुई और न केवल
उत्तर-पश्चिम सीमा की रक्षा हो सकी बल्कि साम्राज्य का विस्तार हो सका।
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