मुहम्मद तुगलक का सम्पूर्ण शासनकाल असफलताओं की दुःखद गाथा है। उसकी सद्भावनाएँ जनकल्याण के आदर्श तथा प्रशासनिक सुधारों की योजनाओं का दुःखद अन्त हुआ। यह भी संयोग की बात है कि उसे अकाल तथा महामारी का सामना करना पड़ा जिसने उसकी असफलता में योगदान दिया। लेकिन सम्पूर्ण घटना-क्रम का अध्ययन करने के पश्चात् यह स्पष्ट हो जाता है कि उसकी असफलताओं के लिए विपरीत परिस्थितियों के साथ-साथ वह स्वयं भी उत्तरदायी था।
1.
अव्यावहारिकता
सुल्तान
कल्पनाशील व्यक्ति था और उसकी योजनाएँ मौलिक थीं। राजधानी का परिवर्तन, सांकेतिक मुद्रा आदि उसकी योजनाओं में कोई अन्तर्निहित दोष नहीं था लेकिन
इन योजनाओं का क्रियान्वयन दोषपूर्ण था। उसने प्रजा को, अपने
अधिकारियों को समझाने तथा अपने साथ लेकर चलने का प्रयास नहीं किया। इससे योजनाएँ
असफल हुईं, राजकोष रिक्त हो गया और प्रजा को असहनीय कष्ट
उठाने पड़े।
2.
योग्य परामर्शदाताओं का
अभाव
सुल्तान
को प्रशासन कार्य के संचालन के लिए कोई योग्य परामर्शदाता प्राप्त नहीं हुआ।
अलाउद्दीन खिलजी को योग्य और निष्ठावान अधिकारियों, जैसे—उलूग
खाँ, जफर खाँ, नुसरत खाँ, अल्प खाँ, मलिक काफूर और कोतवाल अलाउलमुल्क का
परामर्श तथा सेवाएँ प्राप्त थीं और उसकी सफलताओं में उनका योगदान था। मुहम्मद
तुगलक को इस प्रकार के निष्ठावान योग्य परामर्शदाता प्राप्त नहीं हुए जो उसे निर्भयतापूर्वक
समयानुकूल परामर्श देते और हानिकारक कार्यों से उसे बचाते।
3.
कठोर दण्ड
मुहम्मद
की असफलता का एक प्रमुख कारण उसकी कठोर दण्ड नीति थी। वह साधारण अपराधों के लिए भी
मृत्यु दण्ड देता था जिसके कारण जनता में उसके प्रति भय और घृणा की भावनाएँ
उत्पन्न हो गईं थीं। प्रशासन की सफलता के लिए क्षमा और दण्ड में सन्तुलन आवश्यक था
और साथ ही जनता का सुल्तान की न्यायप्रियता में विश्वास होना भी आवश्यक था।
दुर्भाग्य से सुल्तान की कठोर दण्ड प्रणाली के कारण स्थिति बिगड़ी।
4.
धार्मिक नीति
सुल्तान
की धार्मिक नीति से उलेमा वर्ग रुष्ट था। सुल्तान दण्ड देने के मामले में साधारण
व्यक्तियों और उलेमाओं में कोई अन्तर नहीं करता था। सुल्तान का विचार था कि यह
वर्ग स्वार्थी तथा चापलूस हो गया है और समाज तथा राज्य के प्रति अपने कर्त्तव्यों
का पालन नहीं करता है। सुल्तान ने इस वर्ग के लोगों को सेना तथा प्रशासन में कार्य
करने के लिए विवश किया। सुल्तान की विशिष्ट इस्लामी विचारधारा और प्रगतिशील
विचारों के कारण यह वर्ग उसे काफिर समझने लगा। इस वर्ग का जनता पर प्रभाव था जिससे
जनता भी सुल्तान की विरोधी हो गयी।
5.
अमीरों का विरोध
सुल्तान
ने अमीरों की नियुक्तियों में दो परिवर्तन किए थे। प्रथम, उसने साधारण व्यक्तियों को जो योग्यता रखते थे, अमीर
पदों पर नियुक्त किया। इससे अमीरों का वंशानुगत वर्ग उससे रुष्ट हो गया। द्वितीय,
सुल्तान ने विदेशियों को उच्च पदों पर नियुक्त किया। ये विदेशी
धन-लोलुप और स्वार्थी थे और वे केवल धन बटोरने के लिए ही भारत आए थे। इस वर्ग की
कृतघ्नता के कारण सुल्तान की कठिनाइयाँ बढ़ीं और उसका शासनकाल असफल हो गया।
6.
प्रजा की रूढ़िवादिता और
पिछड़ापन
सुल्तान
मुहम्मद का दुर्भाग्य था कि उसे प्रजा का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। जनता उसकी
प्रगतिशील योजनाओं को समझने में असमर्थ रही। सुल्तान की कार्य-शैली भी सफलता के
लिए अनुपयुक्त थी। उसके उतावलेपन तथा जल्दबाजी के कारण जनता को उसके प्रति सन्देह
हो गया जिससे सुल्तान को जनता का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ। इस स्थिति में सुल्तान
का असफल होना अवश्यम्भावी हो गया।
7.
प्राकृतिक आपदाएँ
मुहम्मद
तुगलक की असफलता का कारण प्राकृतिक आपदाएँ भी थीं। दोआब के व्यापक और भीषण अकाल के
कारण राज्य को अपरिमित राजस्व की हानि उठानी पड़ी जिससे आर्थिक संकट उत्पन्न हो
गया। दक्षिण में महामारी फैलने से मुल्तान माबर का विद्रोह नहीं दबा सका जिससे
अन्य विद्रोहियों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ। कराचल में वर्षा और बर्फ के कारण
उसकी सेना नष्ट हो गई।
8.
सुल्तान का चरित्र
उसकी
असफलता का मूल कारण उसका चरित्र था। उसमें ऐसे दोषों का आधिक्य था जिनके कारण किसी
भी शासक को सफलता मिलना सम्भव हो जाता। पहली बात यह थी कि वह स्वभाव से हठी और
उतावला था। वह शीघ्र ही क्रोधित हो जाता था। अतः किसी को साहस नहीं होता था कि वह
सुल्तान को परामर्श दे सके। दूसरे, उसमें धैर्य
और संयम की कमी थी। किसी भी नीति को क्रियान्वित करने के लिए धैर्य और विचार की
आवश्यकता होती है। तीसरी बात यह थी कि वह अव्यावहारिक सिद्धान्तवादी था और उसमें
सामान्य बुद्धि का अभाव था। चतुर्थ, उसमें मानवीय चरित्र को
परखने का गुण नहीं था जो प्रशासन की सफलता के लिए बहुत ही आवश्यक है।
इसमें
सन्देह नहीं कि सुल्तान जनता का कल्याण करना चाहता था और उसके कार्य सद्भावना से
प्रेरित थे लेकिन जब प्रत्येक कदम पर उसे असफलता मिलने लगी तो वह समझने लगा कि
उसकी उदारता के बदले में उसे जनता तथा अधिकारियों से कृतघ्नता तथा विरोध प्राप्त
हो रहा था। इससे उसका क्रोध बढ़ता गया और इसके फलस्वरूप उसमें दण्डों की कठोरता भी
बढ़ती गयी। इस प्रकार एक शुभकामनाओं वाला सुल्तान अपनी प्रजा से दूर होता गया और
उसका 26 साल का शासन काल एक दीर्घ दुःख-गाथा बन गया।
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