स्पेन की उन्नति का कारण
तुलनात्मक
रूप से आज स्पेन यूरोप के राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए देशों में एक
गिना जाता है, लेकिन आधुनिक काल के प्रारंभ में यूरोप के सबसे शक्तिशाली
और उन्नत देशों में से समझा जाता था। स्पेन का अतीत प्रेरणादायक रहा है, लेकिन
बहुत थोड़े समय तक क्योंकि स्पेन की महानता के भौतिक स्रोत उस देश में नहीं थे।
स्पेन की उन्नति के कारण इस प्रकार रहे –
1.
स्पेन
के समुद्र-तट के इलाके को छोड़कर वहाँ कुछ खास नहीं उपजता था। अब तक किसी
महत्वपूर्ण खनिज का भी पता नहीं चला है। लेकिन यह गरीबी इनके काम आ गई। स्पेनियों
के नाविक-सैलानी बनने के पीछे एक यह भी कारण था।
2.
अरबों
की शक्ति जब बढ़ी तो उत्तरी अफ्रीका विजय करते-करते वे स्पेन आए वे स्पेन में वे
सदियों तक बने रहे। उन्होंने खूबसूरत नगर बसाए,
मस्जिदें बनवाईं, विश्वविद्यालय
खोले, पराजय के बाद जब वे हटे तब भी 'मूरों' के
रूप में एक मेहनतकश उत्तराधिकारी छोड़ गए।
3.
पंद्रहवीं
शताब्दी में स्पेन में दो प्रमुख राज्य थे कास्तील और अरागान। वहाँ क्रमशः इसाबेला
और फर्डिनेंड राज्य करते थे। जब इसाबेला और फर्डिनेंड का विवाह हो गया तो
पति-पत्नी के राज्यों का एकीकरण स्वाभाविक था।
4.
चौदहवीं-पंद्रहवीं
शताब्दी में ईसाई जगत तुर्कों के बढ़ते प्रभाव से आक्रांत था। पश्चिम में स्पेन के
सैनिकों ने मुसलमानों के सदियों पुराने प्रभाव का अंत कर दिया और ईसाई प्रभाव की
पुनःस्थापना कर दी। इस संघर्ष में तप कर स्पेनी समाज विशेषकर सैनिक निखर चुके थे।
5.
कट्टर
ईसाई नीतियों के कारण स्पेनी समाज के दो सबसे बड़े उत्पादक तत्व मूर (मुसलमान) और
यहूदी लोग आतंकित होकर भाग रहे थे लेकिन तभी नई दुनिया (अमरीका महाद्वीप) का पता
चला। यूरोप के अन्य देश पूरी तरह संगठित नहीं थे या आपसी संघर्षों में व्यस्त थे।
ऐसे में स्पेन को पहल करने का मौका मिल गया और अमरीका के अधिकांश पर स्पेन का
प्रभुत्व स्थापित हो गया। इन प्रदेशों में सोने और चांदी की बहुलता थी। इस प्रकार
स्पेन को एक कल्पवृक्ष मिल गया।
6.
राष्ट्रीयता
के बढ़ते दौर में हर राज्य अपना प्रभाव बढ़ा रहा था। इस समय विवाह का जितना
राजनीतिक इस्तेमाल हुआ शायद कभी न हुआ हो। सारे यूरोप के राजघराने एक दूसरे से
जुड़ने को तत्पर थे। वैवाहिक जाल में फंसे यूरोप के राजघरानों में ऐसा संयोग हुआ
कि शासक मरते गए और निकटतम उत्तराधिकारी चार्ल्स घोषित होता गया। वयस्क होने के
पहले ही वह स्पेन, नीदरलैंड्स,
हैप्सवर्ग परिवार द्वारा
शासित सारे क्षेत्र और अमरीका स्थित सारे उपनिवेशों का स्वामी हो गया। उत्तराधिकार
में इतना बड़ा राज्य शायद ही किसी को मिला हो। इसी कारण इतिहासकार हेज ने तो यहां
तक कहा है कि 'उस पर राज्यों एवं साम्राज्यों की ऐसा होने लगी वर्षा होने
लगी।' इस विशाल साम्राज्य के शासक के रूप में उसने 1556 ईसवी तक
शासन किया।
चार्ल्स पंचम के समक्ष समस्याएं
1.
विस्तृत
साम्राज्य
चार्ल्स
अपने पूरे राज्य की भाषाएं तक तो जानता नहीं था। उसके राज्य में स्पेनी, डच, जर्मन, इटालियन
जैसी चार प्रमुख भाषाएं और अनेक बोलियाँ थीं। अलग-अलग क्षेत्रों की अपनी परंपराएं
थीं। अपनी शासन-प्रणाली थी। सबकी आर्थिक स्थिति एक जैसी नहीं थी। सभी चार्ल्स के
शासक होने से एक जैसे खुश नहीं थे। ऐसे में वह अपने उत्तराधिकार के बोझ से ही दबा
हुआ था।
2.
उत्तराधिकार
के अन्य प्रतिद्वंद्वी
रोमन
साम्राज्य के सम्राट के चुनाव में वह अपने प्रतिद्वंद्वियों से जीता पर उनमें
फ्रांसिस चुनाव हार कर युद्धों से निबटारा करना चाहता था और वह था इतना बड़ा बेहया
और लड़ाका कि हार स्वीकार करने को तैयार ही नहीं था।
3.
तुर्कों
की समस्या
तुर्कों
का प्रभाव क्षेत्र बढ़ता ही जा रहा था। कुस्तुनतुनिया का बांध टूट जाने से अब
तुर्कों की ताकत निर्बाध गति से बढ़ती जा रही थी। सुलेमान महान जैसे योग्य शासक के
नेतृत्व में तुर्क मध्य यूरोप तक पहुंचने लगे थे। उनको हरा पाने को कौन कहे, रोक
पाना मुश्किल हो रहा था।
4.
मार्टिन
लूथर
संयोग
से चार्ल्स के ही साम्राज्य में मार्टिन लूथर ने भी विद्रोह की आवाज बुलंद की
जिससे केवल चर्च ही नहीं, साम्राज्य का तख्ता भी हिलने लगा।
5.
साम्राज्य
की राष्ट्रीय इकाइयों का विद्रोह
साम्राज्य
में स्थित राष्ट्रीय इकाइयां इतनी विकसित हो गई थी कि चार्ल्स के साम्राज्य का
विरोध करे। विशेष रूप से जर्मनी में विभिन्न राज्य सिर उठाने लगे। कभी सामंत सिर
उठाते तो कभी राजा।
6.
नई
आर्थिक व्यवस्था
इसी
में आर्थिक एकता स्थापित करने के प्रयत्न भी असफल हो जाते थे। उभरती हुई पूंजीवादी
व्यवस्था कोई भी व्यवधान स्वीकार करने को तैयार नहीं थी। धनिक लोग इतने शक्तिशाली
हो चले थे कि पूरा अर्थतन्त्र उन्हीं के हाथ में था जिससे उनका दमन भी नहीं किया
जा सकता था।
7.
प्रशासनिक
कमजोरी
राज्य
की प्रशासकीय समस्याएं अलग से सिर उठा रही थीं। जर्मनी के विभिन्न राज्यों की शासन
परंपरा अलग थी तथा कास्तील और अरागान की अलग। नीदरलैंड्स तक में स्थानीय परंपराएं
थीं। उनका उल्लंघन करना विद्रोह को न्योता देना था और उनका पालन करने का अर्थ था
केन्द्रीय शासन को कमजोर बनान्स। इसी उधेड़बुन में वह कभी किसी क्षेत्र को
पुचकारता, किसी को दबाता,
किसी को कुछ छूट देता, किसी
के अधिकार छीनता रह गया और समस्याएं बढ़ती जा रही थीं।
8.
आर्थिक
कमजोरी
आर्थिक
पक्ष कई कारणों से कमजोर था। एक तो उसे शासन संभालते ही युद्ध शुरू कर देना पड़ा
जिसका सिलसिला अंत तक नहीं टूटा। युद्धक्षेत्र भी सीमित नहीं था, कभी
फ्रांस की सीमाओं पर, कभी इटली में,
कभी साम्राज्य की पूर्वी
सीमाओं पर सेना या यातायात कठिन तो था ही,
बेहद खर्चीला भी था। इतने
सारे खर्चे राजस्व से पूरे नहीं हो सकते थे क्योंकि कर व्यवस्था न केवल लचर थी, जैसी
भी थी पूरी तरह लागू नहीं हो पाती थी। ऐसी स्थिति में सोना, चांदी
उगलते उपनिवेश वरदान थे। बिना अर्जित किया,
लूटा हुआ धन थोड़े दिन राहत
देता रहा लेकिन इससे पूरी अर्थव्यवस्था कमजोर होती गई।
9.
उपनिवेशों
की सुरक्षा
स्पेन
के उपनिवेशों पर ब्रिटेन की नज़र थी जिससे निपटने के लिए संसाधन और नौसेना की कमी
थी।
चार्ल्स
पंचम, अपनी इन समस्याओं के निराकरण में कहां तक सफल हुआ यह उसके किए
गए कार्यों से स्पष्ट होता है। उसके प्रयासों को हम दो भागों में बाट सकते
हैं –
चार्ल्स पंचम की
गृह नीति
चार्ल्स
पंचम की गृह नीति का विवरण निम्नलिखित है-
1.
स्पेन
का शासन
विद्रोह :
1516
ई. में फर्डीनेण्ड की मृत्यु के पश्चात् स्पेनिश साम्राज्य के सम्राट के रूप
चार्ल्स पंचम सिंहासनारूढ़ हुआ था। यहां पर उसने पूर्ण निरंकुशतापूर्वक शासन किया।
चार्ल्स की निरंकुशता स्पेन के सामन्तों एवं नगर प्रतिनिधियों को भी असह्य थी। अतः
1520 ई. से 1522 तक स्पेन में भयंकर विद्रोह हुए।
दमन तथा तरीका :
1.
चार्ल्स
पंचम ने सामन्तों एवं नगर प्रतिनिधियों के पारस्परिक संघर्ष का लाभ उठाकर इन
विद्रोहों को कुचलने में सफलता प्राप्त कर ली। सामन्त वर्ग ने नगर प्रतिनिधियों के
विरुद्ध अब निरंकुश प्रशासन का समर्थन आरम्भ कर दिया।
मौके का लाभ उठाकर चार्ल्स पंचम ने नगर-प्रतिनिधियों के अधिकारों को छीन लिया, उनके
नगर-प्रशासन सम्बन्धी स्थानीय अधिकार भी सीमित कर दिए गए। अब नगर के प्रशासन के
संचालन के लिए एक राजकीय पदाधिकारी की नियुक्ति की गयी।
2.
अरागन
व कैस्टाईल की सांसदों ने जिस प्रकार प्रारम्भ में चार्ल्स के निरंकुश शासन का
विरोध किया था उससे प्रभावित होकर चार्ल्स ने संसद की वास्तविक शक्ति को छीन लिया, किन्तु
उसके कर्तव्य यथावत् बने रहे। अब संसद राज्याश्रित संस्था थी।
सुधारात्मक पहल :
1.
1523
ई. तक अपने निरंकुश प्रशासन को स्थापित कर उसने स्पेन निवासियों की सन्तुष्टि के
लिए अधिकांश सरकारी पदों पर स्पेनवासियों को ही नियुक्त किया।
2.
चार्ल्स
पंचम ने स्पेन के एकीकरण एवं राष्ट्रीयकरण के लिए कदम उठाए।
3.
उसने
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्पेन की महत्ता को स्थापित करने के लिए
साम्राज्यवादी नीति का अवलम्बन किया। अमरीका गोलार्ध के मैक्सिको, मध्य
अमरीका, पेरू, बोलिविया,
चिली, न्यू
ग्रानाडा एवं वेनेजुएला में स्पेनी उपनिवेश बसाने में उसने सफलता प्राप्त की।
परिणाम :
1.
संसद
की शक्ति सीमित हो जाने से स्पेन का वैधानिक विकास थम गया।
2.
उसने
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में स्पेन को प्रभुत्व प्रदान करने के लिए जिस
साम्राज्यवादी नीति को अपनाया उससे स्पेन के राजकोष पर गहरा असर पड़ा। स्पेनी राजकोष पर लगभग दो करोड़ पौण्ड का ऋण हो गया।
3.
उसकी
मूर-विरोधी नीति के कारण व्यापार में चतुर उद्योगशील मूर-जाति ने स्पेन को त्याग
दिया। निःसन्देह यह आर्थिक एवं औद्योगिक दृष्टि से अत्यन्त विनाशकारी सिद्ध हुआ।
4.
उसका
यह औपनिवेशिक विस्तार स्पेन के राष्ट्रीय विकास के लिए घातक साबित हुआ। अमरीका के
प्रदेशों से प्राप्त स्वर्ण ने स्पेनी जनता को विलासी बना दिया, इससे
स्पेन का नैतिक पतन तो हुआ ही साथ ही स्पेनी जनता में अकर्मण्यता भी आ गई।
2. नीदरलैण्ड्स का शासन
नीदरलैण्ड्स
में ही चार्ल्स पंचम का जन्म एवं पालन-पोषण हुआ था। अतः वहां के निवासियों में
चार्ल्स पंचम के लिए स्वभावतः श्रद्धा एवं सम्मान था। चार्ल्स ने नीदरलैण्ड्स की
जनता की भावनाओं का पूर्ण लाभ उठाते हुए नीदरलैण्ड्स में सफलतापूर्वक शासन किया।
एकीकरण का प्रयास:
उसने
नीदरलैण्ड्स के 17 प्रदेशों को मिलाकर एक संघ की स्थापना की। प्रशासनिक कार्यों
में संघ की सहायता के लिए एक स्टेट्स जनरल (संसद) एवं तीन कौन्सिलों की स्थापना
की।
अहस्तक्षेप :
उसने
न तो वैधानिक क्षेत्र में और न ही आर्थिक क्षेत्र में कोई हस्तक्षेप किया। उसकी इस
हस्तक्षेप न करने की नीति के कारण ही उस समय भी नीदरलैण्ड्स की आर्थिक स्थिति
सुदृढ़ हुई।
धार्मिक असहिष्णुता की नीति :
चार्ल्स
पंचम ने नीदरलैण्ड्स में धार्मिक असहिष्णुता की जो नीति अपनाई। चार्ल्स ने कट्टर
कैथोलिक होने के कारण नीदरलैण्ड्सके काल्विनवादियों का दमन किया। इस उद्देश्य की
पूर्ति के लिए नीदरलैण्ड्स के प्रायः सभी प्रान्तों में 'इन्क्वीजिशन' नामक
अदालतें स्थापित की गईं, किन्तु चार्ल्स की इस नीति के कारण
प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय का विकास नीदरलैण्ड्स में होता चला गया। इस दृष्टि से
चार्ल्स पंचम का नीदरलैण्ड्स में प्रशासन असफल ही माना जा सकता है।
3.
पवित्र
रोमन साम्राज्य का शासन
फ्रांस
का शासक फ्रांसिस प्रथम एवं इंग्लैण्ड के शासक हेनरी अष्टम को चुनाव
प्रतिद्वन्द्विता में परास्त कर 1520 ई. में चार्ल्स पंचम 'पवित्र
रोमन सम्राट' के रूप में प्रतिष्ठित हुआ था।
समस्या
:
पवित्र
रोमन साम्राज्य उसके लिए भयंकर समस्याएं लिए खड़ा था, सम्पूर्ण साम्राज्य
विशृंखलित था। छोटे-बड़े अर्धस्वतन्त्र राज्यों में विभक्त था। साम्राज्य में राजकुमार स्वतन्त्र नगर राज्य व सामन्त
अपने-अपने अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पारस्परिक युद्धों में संघर्षरत
थे।
समाधान
:
चार्ल्स
पंचम पवित्र रोमन साम्राज्य को सुसंगठित केन्द्रीय शासन के रूप में प्रतिष्ठित
करना चाहता था। अतः उसने जर्मनी में अपने व्यक्तिगत अधिकारों में वृद्धि एवं
जर्मनी को आर्थिक दृष्टि से एक रूप में बांधने का प्रयत्न किया।
परिणाम
:
परन्तु
उसके यह प्रयास निरर्थक रहे। इसका सबसे प्रधान कारण
नगरों के प्रभावशाली व्यापारियों एवं सामन्तों का विरोध था। दूसरी ओर वह फ्रांस के
साथ युद्ध में फंसा हुआ था। अतः पवित्र रोमन साम्राज्य की ओर वह विशेष ध्यान भी
नहीं दे सका।
उसी
समय मार्टिन लूथर के धर्म सुधार आन्दोलन ने आ घेरा। सामन्त वर्ग धर्म सुधार
आन्दोलन का लाभ उठाकर अपने अधिकारों में वृद्धि का प्रयत्न कर रहे थे। चार्ल्स
पंचम कैथोलिक सम्प्रदाय की प्रतिष्ठा को यथावत बनाए रखना चाहता था, अतः
उसने धर्म सुधार आन्दोलन का विरोध किया। अतः जर्मनी गृह-युद्ध की विभीषिका में जल
उठा।
इस
प्रकार स्पष्ट है कि चार्ल्स पंचम ने अपने विशाल साम्राज्य की आन्तरिक समस्याओं का
समाधान कर प्रजा में एकता स्थापित करने के जो प्रयत्न किए उसमें उसे सफलता प्राप्त
न हो सकी। उसने आन्तरिक समस्याओं से जूझने का आजीवन संघर्ष किया, परन्तु
इससे यह निष्कर्ष निकालना तर्कसंगत नहीं होगा कि वह अयोग्य था। निःसन्देह वह
आन्तरिक समस्याओं का सामना अपने धैर्य,
दृढ़ता, स्वाभाविक
गुणों एवं शैक्षणिक अनुभव के कारण ही करता रहा है। ‘“उसकी असफलता का कारण उसकी
अयोग्यता नहीं, अपितु उसके विशाल साम्राज्य में निहित अनेक प्रान्तों व
जातियों के परस्पर विरोधी हितों की प्रधानता थी।'
चार्ल्स पंचम की विदेश
नीति
आन्तरिक
समस्याओं के सदृश ही चार्ल्स पंचम को विदेश-राजनीति के सन्दर्भ में अनेक समस्याओं
का सामना करना पड़ा।
1.
उसका
विशाल साम्राज्य यूरोपीय शासकों के लिए असह्य था।
2.
फ्रांस
का शासक फ्रांसिस प्रथम उसका प्रबल प्रतिद्वन्द्वी था।
3.
तुर्कों
का पूर्वी यूरोप में डेन्यूब नदी की ओर अनवरत रूप से प्रसार एवं भूमध्यसागर में
तुर्कों की बढ़ती महत्ता निःसन्देह चार्ल्स पंचम की प्रमुख समस्या थी।
4.
रोम
के पोप तथा हेनरी अष्टम की विद्वेषपूर्ण नीति भी उसके सामने खड़ी थी।
कुल
मिलाकर उसका विशाल साम्राज्य ही अन्य यूरोपीय शक्तियों की आंखों का कांटा बना था।
चार्ल्स को यूरोपीय शक्तियों के गिद्ध नेत्रों से अपने साम्राज्य को सुरक्षित रख
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में हैप्सबर्ग वंश की प्रतिष्ठा को कायम रखना था। अपने इस
उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसे यूरोप की शक्तियों से संघर्ष भी करना पड़ा। यूरोप
के प्रमुख देशों से उसके सम्बन्धों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है :
1.
फ्रांस
से सम्बन्ध
अपनी
आन्तरिक समस्याओं से आहत चार्ल्स पंचम फ्रांस से मधुर सम्बन्ध बनाने का पक्षपाती
था, किन्तु उसे इस सन्दर्भ में निराशा का सामना करना पड़ा।
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में जो उठापटक चल रही थी,
उसके कारण युद्ध करके ही वह
हैप्सबर्ग वंश की प्रतिष्ठा एवं अपने साम्राज्य को बचा सकता था। अतः फ्रांस से उसे
युद्ध करने पड़े। वास्तव में फ्रांस के साथ उसकी शत्रुता के निम्नलिखित प्रमुख
कारण थे :
a. चार्ल्स पंचम एवं फ्रांसीसी नरेश फ्रांसिस
प्रथम दोनों ही पवित्र रोमन साम्राज्य के सम्राट के पद के दावेदार थे। इस
प्रतिद्वन्द्विता में चार्ल्स पंचम विजयी हुआ। अतः फ्रांसिस प्रथम की पराजय दोनों
के मध्य शत्रुता का कारण बन गई।
b. हैप्सबर्ग
साम्राज्य की विशालता के कारण फ्रांसीसी साम्राज्य की सीमाएं हैप्सबर्ग साम्राज्य
से चारों ओर से घिरी थीं। यह फ्रांस की सुरक्षा की दृष्टि से अत्यन्त घातक था।
फ्रांसिस प्रथम हैप्सबर्ग वंश को चुनौती देकर अपने साम्राज्य को सुरक्षित करना
चाहता था।
c. दोनों
राजवंशों की शत्रुता परम्परागत रूप से चली आ रही थी।
d. दोनों
शासक नेपल्स एवं सिसली पर अपना-अपना अधिकार बताते थे। चार्ल्स पंचम मिलान पर जिसे
कि फ्रांसिस प्रथम ने अपने अधिकार क्षेत्र में ले लिया था अपना अधिकार स्थापित
करना चाहता था। इधर फ्रांसिस प्रथम नावारे के दक्षिणी प्रान्तों पर अधिकार करना
चाहता था।
स्पष्ट
है कि दोनों राजवंशीय साम्राज्यों के मध्य युद्ध उक्त परिस्थितियों में
अवश्यम्भावी था।
पहला
युद्ध :
1522
ई. में जब फ्रांस व हैप्सबर्ग साम्राज्य के मध्य का युद्ध आरम्भ हो गया तो चार्ल्स
ने हेनरी अष्टम व रोम के पोप सहायता प्राप्त कर फ्रांसीसियों को उत्तर इटली से
निष्कासित कर मिलान के सिंहासन पर स्फोरजा परिवार को प्रतिष्ठित किया। 1525 ई. में
पैविया के घेरे में फ्रांस को स्पेन ने बुरी तरह पराजित किया।
परिणाम
:
फ्रांसिस
प्रथम ने जो कि युद्ध से थक चुका था अपनी माता को लिखा, "मेरे
जीवन व सम्मान के अतिरिक्त विश्व में कुछ भी शेष नहीं रह गया है।" हेज के
शब्दों में, "सब कुछ चार्ल्स के उद्देश्यों के लिए मंगलकारी
प्रतीत होता था।”” फ्रांसिस को बाध्य होकर बर्गण्डी,
नीदरलैण्ड्स व इटली के
प्रदेशों पर से अपने दावों को छोड़ने एवं चार्ल्स पंचम की बहिन से विवाह करने का
वचन देना पड़ा, किन्तु कारावास से छूटने के पश्चात् फ्रांस पहुंचते ही
फ्रांसिस प्रथम ने अपने दिए गए वचनों को अमान्य घोषित कर युद्ध को पुनः जन्म दे
दिया।
दूसरा
युद्ध :
1527
ई. में जब दोनों के मध्य पुनः युद्ध आरम्भ हुआ तो स्थिति पूर्ववत् नहीं थी। रोम के
पोप, फ्लोरेन्स,
मिलान एवं वेनिस को मिलाकर
एक संघ बना लिया था। वस्तुतः इन राज्यों के राजाओं का फ्रांस का साथ देने का
प्रमुख कारण पंचम की बढ़ती हुई प्रतिभा थी। चार्ल्स पंचम ने हिम्मत से काम किया और
1527 ई. में युद्ध आरम्भ होते ही चार्ल्स की सेना ने रोम पर भयंकर आक्रमण कर दिया।
चार्ल्स के विरुद्ध हेनरी अष्टम (इंग्लैण्ड के शासक) की सेना भी कारगर सिद्ध न
हुई।
कैम्ब्रे
की सन्धि :
1529
ई. में विवश होकर फ्रांसिस प्रथम को कैम्ब्रे की सन्धि स्वीकार
करनी पड़ी।
1.
सन्धि
के अनुबन्ध के अनुसार फ्रांस को नेपल्स,
मिलान व नीदरलैण्ड्स के
प्रदेशों पर अपने दावे छोड़ने पड़े।
2.
फ्रांसिस
प्रथम ने चार्ल्स पंचम की बहिन 'एलेनार'
के साथ विवाह करना स्वीकार
किया।
3.
बर्गण्डी के प्रान्त पर फ्रांस का अधिकार मान
लिया गया।
कैम्ब्रे
की सन्धि (1529 ई.) ने चार्ल्स पंचम की प्रतिष्ठा में चार चांद लगा दिए। फ्रांस
पराजित हो चुका था। पोप ने उसकी शक्ति का लोहा मान लिया और इंग्लैण्ड की प्रतिष्ठा
को धक्का लग गया। अब इटली व जर्मनी में सर्वेसर्वा कोई था तो वह था—चार्ल्स पंचम।
उसकी प्रतिष्ठा का अनुमान इसी बात से लग जाता है कि 1530 ई. में पोप ने स्वयं अपने
हाथों से उसे पवित्र रोमन सम्राट का स्वर्ण मुकुट पहनाया था।
किन्तु
कैम्ब्रे की सन्धि ने पूर्ण युद्ध विराम नहीं किया। फ्रांसिस प्रथम ने इटली पर
अधिकार करने के उद्देश्य से पुनः संघर्ष की तैयारी आरम्भ कर दी। मिलान के प्रश्न
पर पुनः 1536 ई. में हैप्सबर्ग साम्राज्य व फ्रांस के मध्य युद्ध छिड़ गया, 1538
ई. में 'नीस की सन्धि'
ने कुछ समय के लिए युद्ध
विराम किया, किन्तु 1542 में पुनः युद्ध आरम्भ हो गया जो कि 1559 की
कोटियो कैम्ब्रिसिस की सन्धि के पश्चात् ही थमा। इस सन्धि ने दीर्घकालीन युद्धों
का अन्त कर दिया। इस प्रकार चार्ल्स पंचम
एवं फ्रांसिस प्रथम के मध्य चलने वाले दीर्घकालीन युद्धों के अत्यन्त गम्भीर
परिणाम निकले। जिसने चार्ल्स पंचम की आन्तरिक समस्याओं को जटिल बना दिया।
2.
तुर्की
से सम्बन्ध
चार्ल्स
पंचम के फ्रांस के साथ अनवरत रूप से युद्धों में उलझे रहने का पूर्ण लाभ तुर्कों
ने उठाया। सुल्तान सुलेमान द्वितीय (1520-1566) के नेतृत्व में तो मिस्र से लेकर
अल्जीरिया तक का सम्पूर्ण अफ्रीकी तट उसके स्वामित्व को स्वीकार करता था। 1541 ई.
तक सुलेमान ने हंगरी पर अधिकार कर लिया। 1547 ई. में चार्ल्स पंचम एवं उसके भाई को
विवश होकर हंगरी पर तुर्कों के अधिकार को स्वीकृति देनी पड़ी।
इसी
समय ट्यूनिस एवं एलजीयर्स तुर्की सरदार,
बारबरोसा के अधिकार में आ
गए। उसने फ्रांस से सहायता प्राप्त कर भूमध्यसागर में तुर्की सेना का जमाव इस
प्रकार करना आरम्भ कर दिया कि इटली व स्पेन की सुरक्षा एवं व्यापारिक हितों के लिए
भय उत्पन्न हो गया। यही नहीं, बारबरोसा ने स्पेन से भगाए गए मूरों का समर्थन
प्राप्त कर भूमध्यसागर के यूरोपीय तटीय प्रदेशों में लूटपाट आरम्भ कर दी। ईसाई जगत
के सम्राट चार्ल्स के लिए यह एक गम्भीर चुनौती थी। उसने तुरन्त तीन सौ जहाजों का
एक बेड़ा एवं तीस हजार सैनिक बारबरोसा के दमनार्थ भेज दिए। 1535 ई. में चार्ल्स का
अधिकार ट्यूनिस पर हो गया और विद्रोहियों व लुटेरों को सदा के लिए समाप्त कर दिया
गया। चार्ल्स पंचम अपनी इस विजय से ईसाई धर्म के संरक्षक के रूप में गौरवान्वित
हुआ।
3.
इंग्लैण्ड
से सम्बन्ध
इंग्लैण्ड
के साथ स्पेन के हैप्सबर्ग राजवंश से सम्बन्ध की महत्ता स्पेन के शासक फर्डीनेण्ड
एवं ईसाबेला की पुत्री कैथरीन के इंग्लैण्ड के राजकुमार आर्थर से विवाह से ही
स्पष्ट हो जाती है। आर्थर की मृत्यु के पश्चात् कैथरीन का विवाह हेनरी अष्टम से हो
गया था। कैथरीन स्पेन के शासक चार्ल्स पंचम की मौंसी थी।
स्थिति
में परिवर्तन का सबसे महत्वपूर्ण कारण वास्तव में हेनरी अष्टम एवं कैथरीन के विवाह
सम्बन्ध में कटुता आ जाना था। हेनरी कैथरीन को तलाक देना चाहता था, किन्तु
चार्ल्स पंचम इसका विरोधी था। इधर रोम के पोप ने भी चार्ल्स पंचम से भयभीत होकर
हेनरी को तलाक की अनुमति न दी। अतः हेनरी अष्टम ने सभी सम्बन्धों को ताक में रखकर फ्रांस की
स्पेन के विरुद्ध पूर्ण सहायता तो की ही,
ही रोम के पोप व चार्ल्स
पंचम की कोई परवाह न करते हुए कैथरीन को तलाक देकर अपनी प्रेमिका 'ऐन
बोलेन' से विवाह कर लिया,
किन्तु 1553 ई . में कैथरीन
की पुत्री मेरी ट्यूडर के इंग्लैण्ड की शासिका हो जाने के पश्चात् चार्ल्स पंचम व
इंग्लैण्ड के सम्बन्ध मधुर हो गए। चार्ल्स पंचम ने अपने पुत्र फिलिप द्वितीय का
विवाह मेरी ट्यूडर से कर दिया। स्पेन व इंग्लैण्ड के सम्बन्ध अब उस समय तक मधुर
रहे जब तक कि 'एलिजाबेथ ट्यूडर'
के राज्यारोहण के साथ ही
इंग्लैण्ड की विदेश नीति में परिवर्तन नहीं आया।
इस
प्रकार स्पष्ट है कि चार्ल्स पंचम आजीवन संघर्ष करता रहा। 1547 ई. में फ्रांसिस
प्रथम व हेनरी अष्टम की मृत्यु के पश्चात् जब ऐसा प्रतीत होता था कि अब चार्ल्स की
समस्याओं का अन्त हो जाएगा, तो ठीक इसी समय 1550 ई. के पश्चात् चार्ल्स पर
समस्याओं का तांता पुनः टूट पड़ा। एक ओर इटली में विद्रोह होने लगे तो दूसरी ओर
जर्मनी में हो रहे धर्म सुधार आन्दोलन ने अब पूर्ण गति पकड़ ली थी । पूर्वी यूरोप
में तुर्की का प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ता जा रहा था। इधर चार्ल्स का स्वास्थ्य भी
दिन-प्रतिदिन गिरता चला जा रहा था। अतः 1555-56 में उसने अपने साम्राज्य को दो
भागों में विभक्त कर स्पेनी साम्राज्य एवं अमरीकी उपनिवेशों का उत्तराधिकार तो
अपने पुत्र फिलिप II को सौंप दिया और पवित्र रोयन साम्राज्य एवं हैप्सबर्ग के
पैतृक राज्यों का उत्तराधिकार अपने अनुज फर्डीनेण्ड को सौंपकर राजनीति से संन्यास
ले लिया और अपने जीवन के अन्तिम दो वर्ष स्पेन में शान्ति वातावरण में व्यतीत किए।
21 सितम्बर, 1558 में उसका निधन हो गया।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें