लुई चौदहवें ने अपने पूर्ववर्ती शासकों की ही भांति फ्रांस को यूरोप का सर्वोत्कृष्ट देश बनाने का स्वप्न देखा। अतः वह यूरोप में फ्रांस की सीमाओं में परिवर्तन का पक्षपाती था। वह यूरोपीय देशों की 'प्राकृतिक सीमाओं के सिद्धान्त' (Doctrine of natural boundaries) का हिमायती था। संक्षेप में, वह फ्रांस की सीमा को दक्षिण में आल्पस एवं पिरैनीज, पश्चिम में समुद्र एवं उत्तर-पूर्व में राइन नदी तक विस्तृत करना चाहता था। इसका सीधा अर्थ था कि उसे विदेशी शक्तियों से युद्ध करना पड़ता। इसके लिए सर्वप्रथम उसने दो विभागों को संगठित किया -
(अ)
सैन्य विभाग-लुई चतुर्दश एक केन्द्रीयकृत सशक्त सेना की स्थापना करना चाहता था।
अतः उसने योग्य एवं कुशल व्यक्ति 'लुवय'
को अपना युद्ध मन्त्री
नियुक्त किया। उसके निर्देशानुसार लुवय ने फ्रांसीसी सेना में कठोर अनुशासन, अभ्यास
एवं कुशल रणशिक्षा की समुचित व्यवस्था की। सेना में पदोन्नति का अधिकार योग्यता
रखा गया। उसकी सेना में कोंदे एवं ट्यूरैन जैसे योग्य सेनापति थे। युद्ध मन्त्री
प्रत्येक स्थिति में लुई चौदहवें के प्रति उत्तरदायी था।
(ब)
विदेश विभाग–लुई चौदहवें ने कुशल परराष्ट्र नीति की सार्थकता के लिए दक्ष, कुशल
एवं कूटनीतिज्ञ 'लियोन' को विदेश विभाग का मन्त्री नियुक्त किया।
फ्रांस की पूर्वी एवं उत्तरी सीमाओं पर दुर्ग बनवाकर किलेबन्दी की गई। विदेश
मन्त्री प्रत्येक स्थिति में शासक के प्रति उत्तरदायी था। युद्ध एवं सन्धि के
निर्णय शासक स्वयं लेता था।
1.
स्पेन
से डेवोल्यूशन का युद्ध
कारण :
· युद्ध का सर्वप्रधान कारण लुई चतुर्दश की
महत्वाकांक्षा एवं साम्राज्यवादी नीति थी। लुई अपनी इस नीति के सफल सम्पादन हेतु
स्पेनी नीदरलैण्ड्स (बेल्जियम) एवं फ्रैंच काम्टे को अपने साम्राज्य का अंग बनाना
चाहता था। अपने इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लुई चतुर्दश ने स्पेनी नीदरलैण्ड्स
में प्रचलित सामन्ती अथवा स्थानीय डेवोल्यूशन नामक उत्तराधिकार के नियम का आधार
लिया। इस नियम के अनुसार पैतृक सम्पत्ति पर पहली स्त्री की सन्तान का ही सर्वाधिक
अधिकार मान्य था।
· 1659
ई. की 'पिरैनीज की सन्धि'
के अनुसार स्पेनी नरेश फिलिप
चतुर्थ की पुत्री मेरिया थिरिजा से लुई चतुर्दश ने विवाह किया था। मेरिया थिरिजा
नरेश फिलिप की प्रथम पत्नी की पुत्री थी। अतः उक्त उत्तराधिकार के नियम के अनुसार
स्पेनी नीदरलैण्ड्स पर मेरिया थिरिजा का अधिकार सिद्ध होता था।
· डेवोल्यूशन के उत्तराधिकार के नियम को आधार
बनाकर यह युद्ध फ्रांस ने छेड़ा था। अतः इसे डेवोल्यूशन के युद्ध' के
नाम से जाना जाता है।
युद्ध की घटनाएं
· 1667
ई. में स्पेन के विरुद्ध युद्ध की घोषणा करते ही लुई चतुर्दश की सेना ने स्पेन की
दुर्बलता एवं पतनावस्था का लाभ उठाते हुए फ्रैंच काम्टे पर अधिकार कर लिया। इसके
पश्चात् फ्रांसीसी सेना स्पेनी नीदरलैण्ड्स में घुस गई।
· इस समय इतनी आसानी से फ्रांस की सफलता ने
इंग्लैण्ड, हालैण्ड एवं स्वीडन के कान खड़े कर दिए। इंग्लैण्ड व
हालैण्ड ने अपनी पारस्परिक प्रतिद्वन्द्विता का अन्त कर स्वीडन के साथ मिलकर 1668
ई. में त्रिगुट का निर्माण कर लिया। इस कदम ने निःसन्देह लुई चतुर्दश को 'एला
शैपल की सन्धि' के लिए विवश कर दिया।
एला शैपल की सन्धि
· इस सन्धि के अनुसार फ्रांस की सीमा पर लगे
टुर्नय (Tournai), चालेशय (Charlesai)
एवं लीले (Lille) जैसे
नगर स्पेन को फ्रांस को सौंपने पड़े। फ्रांस ने युद्ध में जीता स्पेनी नीदरलैण्ड्स
का अधिकांश भाग लौटा दिया। हेज के अनुसार,
'इस सन्धि ने लुई चतुर्दश की
पिपासा को अतृप्त ही रखा।'
2.
डचों
से युद्ध (1672-1678)
युद्ध के कारण:
· डेवोल्यूशन के युद्ध में विवश होकर लुई
चतुर्दश को एला-शैपल की सन्धि करनी पड़ी। लुई चतुर्दश ने इसका कारण हालैण्ड को
माना। अतः वह हालैण्ड से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था।
· लुई इस बात को भी भली-भांति समझता था कि
फ्रांस के साम्राज्य विस्तार एवं व्यापारिक उन्नति के लिए हालैण्ड सबसे बड़ी बाधा
है। वास्तव में, फ्रांस उत्तर-पूर्व की ओर फ्रांस के साम्राज्य विस्तार से
हालैण्ड की सुरक्षा को खतरा पहुंचता था। अतः हालैण्ड भी फ्रांस से संशकित था।
· लुई के लिए हालैण्ड के काल्विनवादी उसके कट्टर
कैथोलिक होने के कारण असह्य थे। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि हालैण्ड ने ही फ्रांस
से भागे ह्यूगनोटों को शरण दी थी।
युद्ध पूर्व कूटनीति :
· लुई ने हालैण्ड के युद्ध में परास्त करने के
लिए सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के शासक चार्ल्स द्वितीय को धन देकर 1670
में डोवर की सन्धि कर ली। इस सन्धि से उसने इंग्लैण्ड की तटस्थता प्राप्त कर ली।
· स्वीडन को भी धन देकर अपनी ओर मिला लिया। इस
प्रकार त्रिगुट को भंग कर लुई ने अपने लिए अनुकूल स्थिति उत्पन्न कर दी।
· इसके विपरीत हालैण्ड में इस समय
राजतन्त्रवादियों एवं गणतन्त्रवादियों में गृह-युद्ध चल रहा था। हालैण्ड की इस
आन्तरिक समस्या से लाभ उठाकर उसने 1672 ई. में हालैण्ड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर
दी।
युद्ध की घटनाएं :
· फ्रांस का हालैण्ड के साथ यह युद्ध 1672
ई. से 1678 ई. तक जारी रहा। फ्रांसीसी सेना का प्रतिनिधित्व कोदे एवं
ट्यूसे नामक सेनापतियों ने किया। फ्रांसीसी सेना ने शीघ्र ही लारेन पर अधिकार कर
लिया, फ्रांसीसी सेना के एम्सटरडम में प्रवेश करते ही डचों का
नेतृत्व करने वाले डी विट ने लुई चौदहवें से सन्धि वार्ता आरम्भ कर दी।
· डचों ने इस पर डी विट की हत्या कर दी और अब
डचों का नेतृत्व - लारेन के राजकुमार विलियम ने किया। विलियम ने तुरन्त समुद्री
बांध के द्वार खुलवा दिए। इसका परिणाम यह हुआ कि फ्रांसीसी सेना
एम्सटरडम पर अधिकार न कर सकी। विलियम ने तुरन्त लुई के विरुद्ध एक गुट के निर्माण
में पहल आरम्भ कर दी।
· इधर यूरोपीय देश फ्रांस की सफलता से आशंकित हो
चुके थे। आस्ट्रिया, डेनमार्क, ब्रेन्डेनबर्ग,
इंग्लैण्ड एवं स्पेन को अपने
पक्ष में कर विलियम ने लुई के विरुद्ध गुट बना ही लिया। स्वीडन ने लुई का साथ न
छोड़ा। 1678 ई. में दोनों पक्षों में 'निमवेजिन की सन्धि' हो
गई।
निमवेजिन की सन्धि :
निमवेजिन
की सन्धि से फ्रांस को स्पेन के फ्रेंच काम्टे तथा बेल्जियम के कई नगर प्राप्त हो
गए। लारेन पर फ्रांसीसी प्रभुत्व स्थापित हो गया। लुई का यह राइन नदी की ओर सीमा
विस्तार का महत्वपूर्ण प्रयास था।
परिणाम :
इस
सन्धि ने यूरोप में फ्रांस की प्रतिष्ठा को बढ़ा दिया, किन्तु
इसका प्रतिकूल प्रभाव फ्रांस की अर्थव्यवस्था पर पड़ा। फ्रांस दिन-प्रतिदिन आर्थिक
दृष्टि से दिवालिया होता चला गया।
3.
आग्सबर्ग
की लीग का युद्ध (1688-1697)
युद्ध के कारण :
· लुई को एलाशैपल एवं निमवेजिन की सन्धियों से
जो प्रदेश प्राप्त हो गए थे, उनको अपने नियन्त्रण में बनाए रखने के लिए लुई
चतुर्दश ने वहां पर विशेष अदालतें निर्मित कीं। इन अदालतों को 'चैम्बर्स
ऑफ रियूनियन' कहा जाता था। अदालतों के निर्देशानुसार लुई ने स्ट्रासबर्ग, आल्सेस
एवं जर्मनी के अन्य 20 नगरों में फ्रांसीसी अधिकार को स्पष्ट किया।
· लुई चतुर्दश के इन भयंकर कार्यों आतंकित होकर 1786 ई. में स्पेन,
आस्ट्रिया, कुछ
जर्मन राज्य, हालैण्ड एवं स्वीडन आदि ने संयुक्त रूप से 'आग्सबर्ग
की लीग' (League of Augsburg) की स्थापना की। लुई के लिए यह सब असह्य था।
युद्ध की घटनाएं :
यह
युद्ध 1688 ई. से 1697 ई. तक चला। इस युद्ध के क्षेत्र पैलाटाइन, भारत, अमरीका
एवं कोलोन थे। अमरीका एवं भारत में बसे अंग्रेज एवं फ्रांसीसियों के मध्य भयंकर
संघर्ष आरम्भ हो गया। 1697 ई. तक दोनों पक्ष युद्ध करते-करते थक चुके
थे। अतः दोनों पक्षों के मध्य 1697 में 'रिसविक की सन्धि' हो
गई।
रिसविक की सन्धि
20 सितम्बर,
1697 ई. को हुई रिसविक की सन्धि
की धाराएं इस प्रकार थीं :
· डचों को स्पेनी नीदरलैण्ड्स की सीमा की
किलेबन्दी का अधिकार प्राप्त हो गया।
· लुई ने स्ट्रासबर्ग को छोड़कर उन सभी प्रदेशों
पर अपना दावा छोड़ दिया जो कि 'चैम्बर्स ऑफ रियूनियन' के
द्वारा उसे प्राप्त हो गए थे।
· लुई चतुर्दश ने डचों के साथ एक व्यापारिक सन्धि
की।
· लुई ने पैराटिनेट के राज्य में अपने दावे
त्याग दिए।
· फ्रांस ने विलियम तृतीय को इंग्लैण्ड के शासक
के रूप में मान्यता दे दी।
· फ्रांस ने लारेन के प्रान्त पर अपना दावा
त्याग दिया।
इस
प्रकार सन्धि की धाराओं से स्पष्ट होता है कि इस सन्धि से फ्रांस को कोई विशेष
हानि नहीं हुई। उसकी सैन्य शक्ति अब भी सुसंगठित एवं विशाल थी। आल्सेस पर फ्रांस
का अधिकार यथावत् बना रहा, किन्तु यह तो मानना ही होगा कि "लीग के
युद्ध एवं रिसबिककी सन्धि से यूरोप के राज्य प्रथम बार लुई की महत्वाकांक्षा एवं
साम्राज्यवादी नीति को नियन्त्रित करने में सफल हुए।
4.
स्पेनी
उत्तराधिकार का युद्ध (1702-1713)
कारण
· स्पेन के विशाल साम्राज्य पर बूर्बां वंश का
अधिकार होगा या आस्ट्रिया के हैप्सबर्ग वंश का?
इसी समस्या के कारण स्पेनी
उत्तराधिकार का युद्ध (1702-1713) हुआ ।
· शक्ति सन्तुलन एवं औपनिवेशिक व्यापार दो ऐसे
प्रश्न थे जो कि स्पेन के उत्तराधिकार के प्रश्न के यूरोपीय महत्व से सम्बन्धित
थे। यदि स्पेन पर आस्ट्रिया के सम्राट लियोपोल्ड प्रथम का दावा स्वीकार कर लिया
जाता तो चार्ल्स पंचम के साम्राज्य की ही भांति लियोपोल्ड प्रथम का साम्राज्य हो
जाता। इससे हैप्सबर्ग वंश की शक्ति असीमित हो जाती। इधर यदि फ्रांस का प्रभुत्व
स्पेनी साम्राज्य में मान लिया जाता तो यूरोप में फ्रांस की शक्ति प्रचण्ड रूप
धारण कर लेती।
कूटनीति
· लुई चतुर्दश ने बिना युद्ध किए कूटनीति से
उत्तराधिकार के प्रश्न को हल करने का प्रयास किया। उसने तथा विलियम तृतीय ने 1698
ई. में बंटवारे की एक सन्धि की।
· इस सन्धि के अनुसार स्पेन के अमरीकी उपनिवेश
एवं स्पेनी नीदरलैण्ड्स वबेंरिया के शासक जोसेफ को मिलने निश्चित हुए। शेष साम्राज्य लुई के पुत्र डौफिन एवं लियोपोल्ड पुत्र
आर्च ड्यूक चार्ल्स के बीच विभक्त होना था। चार्ल्स द्वितीय को इस सन्धि से अलग-
रखा गया।
· 1700
ई. में लुई चौदहवें, विलियम तृतीय व लियोपोल्ड प्रथम ने एक सन्धि की। इस सन्धि
में यह व्यवस्था की गई कि स्पेनी बेल्जियम एवं अमरीकी उपनिवेश आर्च ड्यूक चार्ल्स
के होंगे। नेपल्स, मिलान एवं सिसली पर डौफिन का अधिकार होगा।
· चार्ल्स को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने क्रुद्ध
होकर लुई के पौत्र अर्थात् डौफिन के द्वितीय पुत्र फिलिप ऑफ आञ्जो को सम्पूर्ण
स्पेनी साम्राज्य का अधिकारी घोषित किया। यह घोषणा लुई चौदहवें के लिए तो वरदान थी, अतः
उसने पूर्व सन्धि को ताक में रखकर अपने पुत्र को स्पेनिश साम्राज्य का
उत्तराधिकारी कहना आरम्भ कर दिया।
इस
प्रकार यूरोप के दो खेमों में बंटते ही स्पेनी उत्तराधिकार के प्रश्न को लेकर
दोनों पक्षों में 1702 ई. में भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया।
घटनाएं
· स्पेन के उत्तराधिकार के युद्ध में प्रमुख
क्षेत्र इटली, स्पेन, नीदरलैण्ड्स एवं मध्य यूरोप थे। उत्तराधिकार
के इस युद्ध का श्रीगणेश इटली से हुआ।
· 1704
ई. के पश्चात् युद्ध ने भयानक रूप ले लिया। अब यह इटली, आस्ट्रिया, नीदरलैण्ड्स, स्पेन, भारत
एवं अमरीकी उपनिवेशों तक फैल गया।
· 1713 में आस्ट्रिया ने जब यूट्रेक्ट की सन्धि
को स्वीकार किया तब कहीं स्पेनी उत्तराधिकार का युद्ध समाप्त हुआ।
यूट्रेक्ट
की सन्धि:
· लुई
चतुर्दश के पौत्र फिलिप पंचम (फिलिप ऑफ आञ्जो) को स्पेन एवं पश्चिमी द्वीपसमूहों
का शासक मान लिया गया।
· यह
शर्त स्वीकार की गई कि फ्रांस व स्पेन का संयोजन किसी भी दृष्टि में न हो ।
· नेपल्स, सार्डीनिया, मिलान
एवं बेल्जियम को क्षतिपूर्ति के रूप में आस्ट्रिया को दे दिया गया।
· इंग्लैण्ड
को न्यूफाउण्डलैण्ड, नोवास्कोशिया,
हडसन की खाड़ी के भूमध्यसागर
में स्थित जिब्राल्टर एवं मिनरका प्राप्त हुए। उसे स्पेनी उपनिवेशों के साथ दास
व्यापार का एकाधिकार मिला।
यूट्रेक्ट
की सन्धि का यूरोप के इतिहास में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। यह ठीक है कि इस असुविधा
के अनुसार बेल्जियम को आस्ट्रिया, नीस को सेवाय और स्पेन व फ्रांस के कई अमरीकी
उपनिवेश इंग्लैण्ड को प्रदान कर राष्ट्रीयता एवं जन-आकांक्षाओं का गला घोंट दिया
गया, किन्तु यह तो मानना ही होगा कि इस सन्धि में शक्ति सन्तुलन
बनाने का पूर्ण प्रयास किया गया। सेवाय का राज्य विस्तार कालान्तर में इटली के
एकीकरण एवं प्रशा के स्वतन्त्र राज्य के स्थापन से जर्मनी का एकीकरण होने में
आसानी रही। आस्ट्रिया का साम्राज्य विस्तार सम्भव हो सका। फ्रांस का प्रभुत्व
यूरोप में समाप्त होना आरम्भ हो गया। निःसन्देह यह सन्धि राजनीतिक
प्रतिद्वन्द्विता के स्थान पर व्यापारिक एवं औपनिवेशिक प्रतिद्वन्द्विता के युग का
संकेत थी।
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