1688
ई. की वैभवपूर्ण क्रान्ति का इंग्लैण्ड के इतिहास में अत्यन्त महत्व है। इस
क्रान्ति के परिणामस्वरूप 1603 ई. अथवा उससे भी पूर्व से चले आ रहे संसद एवं राजा
के मध्य संघर्ष समाप्त हो गया। इस क्रांति का महत्त्व इस प्रकार है -
1.
राजनीति
के प्रमुख सिद्धांतों का स्पष्ट होना
इस
क्रान्ति ने उन समस्त सिद्धान्तों को स्पष्ट कर दिया जिनके कारण यह संघर्ष चल रहा
था जैसे राजा तथा संसद में किसके अधिकार सर्वोपरि हैं; इंग्लैण्ड
के चर्च का स्वरूप क्या है; राज्यमन्त्री राजा के प्रति उत्तरदायी हैं
अथवा संसद के; नागरिक स्वाधीनता की रक्षा, अधिनियम बनाना तथा कर लगाने का अधिकार किसकी
है; देश की वैदेशिक तथा गृह-नीति किसकी इच्छानुसार होनी चाहिए।
2.
राजा
के दैवी अधिकारों की अस्वीकृति
राजा
के दैवी अधिकारों (Divine Rights) को स्वीकार नहीं किया जा सकता। वह ईश्वर के
प्रति नहीं वरन् जनता की प्रतिनिधि संसद के प्रति उत्तरदायी है। जनता की शक्ति
सर्वोपरि है, अतः राजा को प्रचलित नियमों में परिवर्तन करने का अधिकार
नहीं है। राजा की वास्तविक शक्ति संसद के सहयोग पर ही निर्भर है। राजमन्त्रियों के
उत्तरदायित्व के सम्बन्ध में भी यह स्पष्ट हो गया कि वे संसद के प्रति ही
उत्तरदायी हैं।
3.
राजा
का संसदीय अधिकारों के अधीन होना
इस
क्रान्ति ने यह भी स्पष्ट किया कि नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा करना, कानून
बनाना तथा कर लगाना संसद के अधिकारों के अन्तर्गत हैं, राजा
इसमें किसी प्रकार हस्तक्षेप नहीं कर सकता। राज्य की गृह एवं वैदेशिक नीति का
निर्धारण भी राजा स्वेच्छा से नहीं अपितु संसद के परामर्श से करेगा।
4.
इंग्लैण्ड
में प्रोटेस्टेंट धर्म का वर्चश्व
धार्मिक
क्षेत्र में भी स्पष्ट हो गया कि इंग्लैण्ड का वास्तविक धर्म एंग्लिकन अथवा
प्रोटेस्टेण्ट है। चर्च पर से राजा के अधिकार को समाप्त किया गया तथा संसद को चर्च
का उत्तरदायित्व सौंपा गया। यह भी निश्चित किया गया कि कोई कैथोलिक व्यक्ति अथवा
जिसका विवाह कैथोलिक से हुआ हो, इंग्लैण्ड की राजगद्दी पर आसीन नहीं हो सकता
था। इस प्रकार कैथोलिक के खतरे को सदैव के लिए इंग्लैण्ड से समाप्त कर दिया गया
तथा प्रोटेस्टेण्ट धर्म इंग्लैण्ड में सदैव के लिए स्थापित हो गया।
5.
बिल
ऑफ राइट्स
1688
ई. में हुई वैभवपूर्ण क्रान्ति का महत्वपूर्ण परिणाम संसद का प्रशासकीय मामलों में
सर्वोपरि शक्ति के रूप में उभर कर सामने आना था। संसद की शक्ति में वृद्धि करने
वाला प्रमुख स्रोत बिल ऑफ राइट्स था। विलियम ने राजगद्दी पर आसीन होने से पूर्व
बिल ऑफ राइट्स को स्वीकार किया था।
इस
बिल ऑफ राइट्स की प्रमुख धाराएं
निम्नलिखित थीं :
· शान्तिकाल में राजा स्थायी सेना नहीं रखेगा।
· कोर्ट ऑफ हाई कमीशन की स्थापना अथवा प्रचलित
नियमों को भंग करने का राजा को अधिकार नहीं होगा।
· संसद का निर्वाचन स्वतन्त्र रूप से होगा तथा
संसद-सदस्यों को भाषण की पूर्ण स्वतन्त्रता होगी
· राजा संसद की अनुमति के बिना कर नहीं लगाएगा।
· भविष्य में इंग्लैण्ड के राजसिंहासन पर
कैथोलिक व्यक्ति नहीं बैठ सकेगा।
6.
कैबिनेट
प्रणाली का प्रारम्भ
विलियम
के शासनकाल से राजा मन्त्रियों की नियुक्ति करता था तथा ये राजा के प्रति
उत्तरदायी होते थे। चार्ल्स के समय में संसद में दो दल हो गए थे ढिग एवं टोरी। ये दोनों परस्पर विरोधी विचारधारा के थे। विलियम विवश
होकर दोनों ही दलों में से अपने मन्त्रियों को नियुक्त करता था। मन्त्रियों के
परस्पर विरोधी दलों के होने के कारण उनमें मतभेद रहता था, अतः
राज-कार्य करने में परेशानी होती थी। अर्ल ऑफ सेण्डरलैण्ड ने यह प्रस्ताव रखा कि
विलियम केवल एक ही दल के व्यक्तियों को मन्त्री नियुक्त करे क्योंकि वे सरलता से
एकमत होकर कार्य करेंगे तथा उन्हें संसद का भी विश्वास एवं समर्थन प्राप्त हो
सकेगा। विलियम ने इस परामर्श को स्वीकार किया तथा संसद में बहुमत वाले दल से
मन्त्रियों को नियुक्त करना प्रारम्भ किया। विलियम का यह प्रशिक्षण सफल रहा तथा
भविष्य में यह प्रथा स्थायी हो गयी। विलियम ने ह्निग दल के बहुमत में होने के कारण
इसी दल से अपने मन्त्रियों को नियुक्त करना प्रारम्भ किया था। मन्त्रियों की बैठक 'कैबिनेट' पड़ा
तथा दलबन्दी शासन (party government) की स्थापना भी इसी समय से जिस छोटे से कमरे
में होती थी उसका नाम कैबिनेट था उसी के नाम पर मन्त्रिमण्डल का नाम प्रारम्भ हुई।
इस
प्रकार इंग्लैण्ड के इतिहास में वैभवपूर्ण क्रान्ति का अत्यन्त महत्व है क्योंकि
इनमें राजाओं की निरंकुशता व स्वेच्छाचारिता के स्थान पर वास्तविक संसदीय प्रणाली
की स्थापना की। इस प्रकार सांविधानिक दृष्टिकोण से न केवल इंग्लैण्ड पर अपितु
सम्पूर्ण विश्व पर इसका प्रभाव पड़ा। इस क्रान्ति के कारण ही इंग्लैण्ड में
सहिष्णुता की भावना अधिक दृढ़ हुई तथा प्रेस पर से प्रतिबन्ध हटा लिया गया। न्याय
विभाग तथा कार्यकारिणी पृथक्-पृथक् किए तथा एक लोकप्रिय सरकार की स्थापना हुई जैसा
कि रैम्जे म्योर ने लिखा है, "इस स्मरणीय तथा नवीन युग-निर्मातृ घटना से इंग्लैण्ड
में लोकप्रिय सरकार का युग प्रारम्भ हुआ तथा सत्ता निरंकुश राजाओं के हाथ से
निकलकर संसद के हाथ में आ गयी।”
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