यूरोप
के इतिहास में 17वीं शताब्दी के आरम्भ में नवीन प्रकार के राजनीतिक राज्यों का
अस्तित्व सामने आया, जिनकी प्रकृति आटोमन साम्राज्य एवं पवित्र रोमन साम्राज्य
की प्रकृति से नितान्त भिन्न थी। निरंकुश राजतन्त्र यूरोप के आधुनिक राज्य प्रकार
की एक इकाई बनने लगा। सत्रहवीं शताब्दी के आरम्भ में फ़्रांस में निरंकुश राष्ट्रीय
राजतन्त्र के उदय के अग्रलिखित कारण थे—
1.
सामन्तवाद में कमजोरी आना
सामन्तों
ने शनैः-शनैः अपनी शक्ति में वृद्धि कर छोटे-छोटे राज्यों के समान राज्य करना
आरम्भ कर दिया था। वास्तव में सामन्त लोग ही छोटे-छोटे राजा थे जो परस्पर युद्ध
किया करते थे। यही नहीं, वे राजा से भी ठान लेते थे। सामंती व्यवस्था
में कृषकों की स्थिति भी अत्यन्त शोचनीय थी। शोषित प्रजा तो सामन्तवादी व्यवस्था
से अत्यन्त पीड़ित थी। अतः जनता एवं राजा के मध्य सीधा सम्पर्क स्थापित हो गया। जनता
द्वारा राजा का साथ दिए जाने से सामन्तवाद का पतन हुआ। राजा की शक्ति में वृद्धि
हुई। फलस्वरूप निरकुंश राजतन्त्रों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ।
2.
धार्मिक
सत्ता का कमजोर होना
मध्यकाल
के अन्त तक चर्च में अनेक दोष उत्पन्न हो गए थे। पोप जिसकी आज्ञा धार्मिक क्षेत्र
में सर्वोपरि होती थी, स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि समझने लगा। पोप
ने धार्मिक क्षेत्र के अतिरिक्त राजनीतिक क्षेत्र में भी हस्तक्षेप आरम्भ कर दिया, किन्तु
आधुनिक युग के आगमन एवं पुनर्जागरण के कारण यूरोप की जनता अब तर्कवादी हो चुकी थी।
उसने पोप की आचारहीनता, भ्रष्टता एवं विलासिता का विरोध किया। शासकों
ने जो कि राजनीतिक मामलों से पोप की सत्ता के विरोधी थे, जनता
की भावनाओं का लाभ उठाया और पोप की सत्ता का जबरदस्त विरोध किया। धर्म-सुधार
आन्दोलन के फलस्वरूप चर्च पूर्णतः राजा के अधीन हो गया। इससे राजा के सम्मान एवं
पद की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। गिरजाघरों का प्रशासन अब राजा के अधिकार में आ
गया। इस प्रकार राजतन्त्रों की शक्ति के विकास में पोपशाही की अवनति एक महत्वपूर्ण
कारक सिद्ध हुआ।
3.
मध्यम
वर्ग का उत्थान
सामन्ती
व्यवस्था का पतन मध्यम वर्ग के उत्थान की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध हुआ।
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में मध्यम वर्ग की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति अत्यन्त
सुदृढ़ हो गयी। मध्यम वर्ग ने अपने व्यापार एवं वाणिज्य के विकास एवं सुरक्षा की
दृष्टि से राजतंन्त्र का समर्थन किया। राजाओं ने भी व्यापार एवं वाणिज्य को
संरक्षण प्रदान कर मध्यम वर्ग की सहानुभूति प्राप्त कर ली। उपनिवेश स्थापना को
बढ़ावा मिला, प्रबुद्ध वर्ग ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास में
महत्वपूर्ण योगदान दिया। मैकियावेली द्वारा रचित 'प्रिन्स'
नामक ग्रन्थ में राजा के 'दैवी
अधिकारों के सिद्धान्त' की पुष्टि की। अतः यूरोप में राजतन्त्र की
स्थापना के महत्व को स्वीकार किया गया।
4.
नवीन
आविष्कार
पुनर्जागरण
काल में हो रहे नए आविष्कारों ने निरंकुश राजतन्त्रों के उत्थान में विशेष योगदान
दिया। बारूद का आविष्कार, तोपों का प्रयोग, युद्धकाल
में परिवर्तन, नए-नए उपनिवेशों की खोज,
एवं छापेखाने के आविष्कार इस
दृष्टि से अत्यन्त कारगर सिद्ध हुए।
5.
शासकों
के प्रयास
फ्रांस
यूरोप का ऐसा प्रथम देश था, जिसमें सर्वप्रथम राजनीतिक एकता स्थापित हुई। फ्रांस में तेरहवीं शताब्दी में ही सामन्तों का
दमन कर राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की जा चुकी थी। फ्रांस के राजा ने अपने
अधिकारों में हुई वृद्धि से लाभान्वित होकर भूमिकर लगाया तथा इस प्रकार अपार धन
लगाकर राजा की शक्ति में और वृद्धि की। राजा की शक्ति को बढ़ाने के लिए लुई-XI ने
अनेक सामन्तों की शक्ति को कुचल कर तथा चर्च के प्रभाव को कमजोर करके राजतन्त्र को
सशक्त बनाया। लुई तेरहवें के कार्यकाल में धार्मिक नेताओं के राजनीतिक तथा सैनिक
अधिकार को ख़त्म किया गया। सामंतों को कमजोर करके उनको सुन्दर कठपुतलियों में बदल
दिया गया, साथ ही प्रशासन का केन्द्रीयकरण किया गया।
6.
अनुकूल
यूरोपीय स्थिति
इस
समय के यूरोप की स्थिति फ़्रांस के लिए अनुकूल साबित हुई क्योंकि तीस वर्षीय युद्ध
के कारण आस्ट्रिया की शक्ति कमजोर हो चुकी थी, स्पेन पतन की कगार पर था, जर्मनी
अपनी राजनीतिक और आर्थिक समस्याओं से ग्रस्त था, इंग्लैण्ड उहापोह की स्थिति में
था। जबकि फ़्रांस रिश्लू तथा मेज़ारिन के प्रयासों से अच्छी स्थिति में था। हेज के
शब्दों में कहें तो “नव युग की शुरुआत के लिए अनुकूल पृष्ठभूमि” का निर्माण हो चुका
था।
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