जेम्स द्वितीय ने तीन वर्षों तक शासन किया, तत्पश्चात् उसे इंग्लैण्ड छोड़कर भागने पर विवश होना पड़ा। अपने तीन-वर्षीय अल्प शासनकाल में गृह-नीति के अन्तर्गत उसने जितने भी कार्य किए उनके परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में वैभवपूर्ण क्रान्ति का जन्म हुआ। इस कान्ति में एक बूंद भी रक्त धरती पर नहीं गिरा, इसी कारण इसे वैभवपूर्ण/गौरवपूर्ण क्रान्ति अथवा रक्तहीन कान्ति कहा जाता है। वैभवपूर्ण क्रान्ति के निम्नलिखित कारण थे :
1. राजा एवं संसद के मध्य संघर्ष
हेनरी
सप्तम द्वारा सामन्तों की शक्ति नष्ट किए जाने के पश्चात् से ट्यूडर शासक निरंकुश
हो गए थे। ट्यूडर शासकों द्वारा मध्यवर्ग को प्रोत्साहन दिया गया था। तथा इस वर्ग
ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। इसी काल में हुए पुनर्जागरण तथा धर्म-सुधार
आन्दोलनों के कारण मध्यवर्ग अपने अधिकारों के प्रति अत्यन्त जाग्रत हो चुका। 1603
ई. में स्टुअर्ट वंश की इंग्लैण्ड में स्थापना हुई। जेम्स प्रथम ने जनता पर अपने
दैविक अधिकारों को थोपने का प्रयत्न किया,
किन्तु जनता ने इसका विरोध
किया, परिणामस्वरूप इंग्लैण्ड में राजा एवं संसद के मध्य संघर्ष
प्रारम्भ हुआ। जेम्स द्वितीय के समय में राजा और संसद
का संघर्ष तीव्र हो गया तथा वैभवपूर्ण क्रान्ति के रूप में इसका अन्त हुआ।
2. जेम्स द्वितीय की निरंकुशता
जेम्स
द्वितीय ने प्रारम्भ से ही निरंकुशतापूर्वक शासन करने का प्रयत्न किया। वह अपनी
अत्याचारी एवं निरंकुश नीति से जनता में भय एवं आतंक उत्पन्न करना चाहता था, ताकि
वह स्वेच्छाचारिता से शासन कर सके। जेम्स द्वितीय कैथोलिक था तथा इंग्लैण्ड की
अधिकांश जनता प्रोटेस्टेण्ट थी। जेम्स कैथोलिक धर्म का इंग्लैण्ड में प्रचार करना
चाहता था, इसी उद्देश्य से जेम्स ने लन्दन में एक नवीन गिरजाघर
बनवाया जिसका जनता ने घोर विरोध किया। जेम्स ने अवसर पाकर अपनी सेना में वृद्धि की, ताकि
जनता को आतंकित कर सके। जनता इंग्लैण्ड में पुनः सैनिक शासन की स्थापना नहीं चाहती
थी अतः जेम्स की निरंकुश नीति का जनता द्वारा विरोध होना स्वाभाविक था।
3. खूनी न्यायालय
ह्निग
दल इंग्लैण्ड में जेम्स द्वितीय के राजगद्दी पर आसीन होने का विरोधी था। ह्निग
नेताओं ने चार्ल्स के अवैध पुत्र मन्मथ (Monmouth)
को विद्रोह करने के लिए
प्रेरित किया। मन्मथ ने सेना एकत्र करके स्वयं को इंग्लैण्ड का उत्तराधिकारी घोषित
किया। जेम्स द्वितीय ने सेजमूर नामक स्थान पर मन्मथ को परास्त करके बन्दी बनाया।
विद्रोहियों के साथ अमानुषिक व्यवहार किया गया तथा मन्मथको मृत्यु-दण्ड दिया गया।
इस न्यायालय को खूनी न्यायालय (Bloody Assizes) कहा गया तथा जनता का जेम्स द्वितीय की
अत्याचारी एवं कठोर नीति से घृणा हो गयी।
4. टेस्ट
नियम की अवहेलना
इंग्लैण्ड
में चार्ल्स द्वितीय के समय संसद ने टेस्ट अधिनियम पारित किया था। इस अधिनियम के
द्वारा केवल एंग्लिकन चर्च के अनुयायी ही सरकारी कर्मचारी हो सकते थे। अतः
कैथोलिकों को सरकारी सेवा से वंचित कर दिया गया था। जेम्स द्वितीय स्वयं कैथोलिक
था। अतः कैथोलिकों को सुविधा प्रदान करना चाहता था किन्तु टेस्ट अधिनियम के कारण
वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर सकता था। इंग्लैण्ड की संसद ने जेम्स के इन
कार्यों का विरोध किया। जेम्स ने संसद के विरोध की परवाह न की, अतः
जनता में विद्रोह की भावना जाग्रत होने लगी।
5. विश्वविद्यालयों में हस्तक्षेप
जेम्स
ने विश्वविद्यालयों में भी कैथोलिकों को नियुक्त करना प्रारम्भ किया। क्राइस्ट
चर्च कॉलेज में अधिष्ठाता (Dean) के पद पर एक कैथोलिक व्यक्ति की नियुक्ति की
गयी तथा मेक्डालेन विद्यालय के सभी शिक्षाधिकारियों को हटा दिया गया क्योंकि
उन्होंने जेम्स की इच्छा होते हुए भी एक कैथोलिक व्यक्ति को अपना सभापति बनाने से
इन्कार कर दिया था। इस प्रकार शिक्षा पर कैथोलिकों का आधिपत्य स्थापित करने का
जेम्स द्वितीय ने प्रयत्न किया जिससे प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय को खतरा उत्पन्न हो
गया अतः प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय के लिए आवश्यक हो गया कि वे जेम्स का विरोध करें।
6. फ्रांस से मित्रता
फ्रांस
के शासक लुई का प्रभाव इस समय यूरोप में छाया हुआ था। चार्ल्स द्वितीय के समान
जेम्स द्वितीय पर भी लुई चौदहवें का अत्यधिक प्रभाव था। वह फ्रांस से आर्थिक एवं
सैनिक सहायता प्राप्त कर अपने निरंकुश शासन को इंग्लैण्ड में स्थापित करना चाहता
था। लुई चौदहवां कट्टर कैथोलिक था तथा फ्रांस में प्रोटेस्टेण्ट वर्ग पर अत्यधिक
अत्याचार करता था, अतः इंग्लैण्ड की जनता लुई चौदहवें को पसन्द नहीं करती थी
तथा जेम्स से अपेक्षा करती थी कि वह फ्रांस से मित्रता न रखे।
7. धार्मिक अनुग्रह की घोषणाएं
जेम्स
द्वितीय पूर्णतः कैथोलिक तथा इंग्लैण्ड को एक कैथोलिक देश बनाना चाहता था। इसी
उद्देश्य की पूर्ति उसने टेस्ट अधिनियम की अवहेलना करके समस्त उच्च राजकीय पदों पर
कैथोलिकों को नियुक्त किया। जेम्स ने तदोपरान्त 1687 ई. में धर्म अनुग्रह की प्रथम
घोषणा की जिसके द्वारा कैथोलिकों तथा अन्य सम्प्रदायों पर लगे प्रतिबन्ध समाप्त कर
दिए। धार्मिक अनुग्रह की प्रथम घोषणा को अधिक समय नहीं हुआ था कि 1688 ई. में अपने
धार्मिक अनुग्रह की द्वितीय घोषणा की। इस घोषणा के द्वारा समस्त धर्मों को पूर्ण
स्वतन्त्रता प्रदान की गई तथा जेम्स द्वितीय ने वर्ग तथा धर्म का पक्षपात किए बिना
प्रत्येक को राजकीय पद को प्रदान करने की सुविधा दी। जेम्स के इस कार्य से
प्रोटेस्टेण्ट अत्यधिक क्रोधित हुए तथा क्रान्ति की भावना उनमें प्रबल होने लगी।
8. जेम्स
द्वारा जनता की शक्ति को न समझ पाना
जेम्स
का यह भ्रम था कि वह जनता को शक्ति के द्वारा भयभीत करके स्वेच्छाचारिता से शासन
कर सकता है। जेम्स द्वितीय को इतिहास से सबक लेना चाहिए था और उसे नहीं भूलना था
कि जनता ने चार्ल्स प्रथम के विरुद्ध किस प्रकार अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था
और चार्ल्स प्रथम को मृत्यु-दण्ड प्राप्त हुआ था। जेम्स के लिए यह आवश्यक था कि वह
जनता की भावना को परखता और चार्ल्स द्वितीय के समान शासन करना, किन्तु
उसने जनता की इच्छा के विरुद्ध कार्य किया तथा जनता की शक्ति को समझने में वह असफल
रहा।
9. जेम्स द्वितीय के पुत्र का जन्म
जेम्स
की प्रथम पत्नी से दो पुत्रियां थीं—मेरी तथा ऐन। ये दोनों ही प्रोटेस्टेण्ट थीं।
अतः जनता का विचार था कि जेम्स द्वितीय की मृत्यु के पश्चात् मेरी ही रानी बनेगी, अतः
प्रोटेस्टेण्ट सम्प्रदाय को सुविधाएं प्राप्त हो सकेंगी, किन्तु
10 जून, 1588 को जेम्स द्वितीय की द्वितीय पत्नी मोडेना ने पुत्र
को जन्म दिया। जेम्स की पुत्र की प्राप्ति उसके लिए अत्यन्त भयंकर प्रमाणित हुई
क्योंकि जनता को विश्वास हो गया कि जेम्स अपने पुत्र को कैथोलिक शिक्षा प्रदान
करेगा, अतः उन्हें कैथोलिक राजाओं के अत्याचार से कभी मुक्ति नहीं
मिलेगी। जनता ने अब जेम्स द्वितीय के विरुद्ध क्रान्ति करना आवश्यक समझा।
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