बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम का जन्म 1523 ई. में हुआ था। इसकी माता दिलदार बेगम थी। हिन्दाल, गुलबदन का सगा भाई था। इनका विवाह ख़िज़ ख़्वाजा ख़ाँ मुग़ल से हुआ था। अकबरनामा के लिये सामग्री एकत्र करने के उद्देश्य से, बहुत से लोगों को अकबर ने आदेश दिया कि बाबर तथा हुमायूँ के सम्बन्ध में जो जानकारी रखते हों, उसे लिपिबद्ध करें। गुलबदन बेगम द्वारा रचित हुमायूँ नामा भी इसी आदेश का परिणाम है। उसने अपनी रचना को दो भागों में बांटा है- एक में बाबर सम्बन्धी घटनायें तथा दूसरे में हुमायूँ का इतिहास। यद्यपि हुमायूँ नामा मूलरूप से फ़ारसी भाषा में लिखा गया है मगर इसमें तुर्की तथा फ़ारसी शब्दों का मिश्रण है। इससे ऐसा अनुभव होता है कि रचियता न केवल विदूषी थी अपितु पढ़ने लिखने की शोकीन भी थी। श्रीमती बेवरिज ने गुलबदन के मूल ग्रंथ का संस्करण सम्पादित किया है तथा टिप्पणियों के साथ उसका अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित किया है। यह ग्रंथ एशियाटिक सोसायटी द्वारा प्रकाशित हुआ है।
हुमायूँ नामा के गुण
स्त्री जीवन के बारे में जानकारी
स्त्री
होने के कारण अन्य लेखकों से इसका दृष्टिकोण भिन्न है तथा इसने मुग़ल स्त्रियों के
विषय में महत्वपूर्ण बातों का वर्णन किया है। मुग़ल काल की बेगमों की दशा की
जानकारी के लिए यह ग्रंथ महत्त्वपूर्ण है।
1. युद्ध और प्रेम में स्त्री का वर्णन : प्रो. रिज़वी अनुसार, "इसके इतिहास की विशेषता स्त्रियों के जीवन के सजीव चित्र एवं उनके चरित्र का रोचक विवरण है। सुलेमान मिर्जा मीरान शाही की पत्नी हरम बेगम द्वारा सेना के नेतृत्व का उल्लेख बेगम ने बड़े स्पष्ट रूप से किया है। मिर्ज़ा कामरान की मूर्खता एवं हरम बेगम से ईश्क की घोषणा के दुष्परिणाम की गुलबदन बेगम ने सविस्तार चर्चा की है।"
2. पारिवारिक बिखराव के शोक और संताप का वर्णन : इसके
अतिरिक्त प्रो. रिजवी के अनुसार, "बेगम ने मिर्जा हुमायूँ के शोक एवं बेगेमों के
विलाप तथा उसकी लाश के दफ़न का उल्लेख किया है। मिर्जा कामरान के बन्दी बना लिये
जाने पर हुमायूँ ने जिस प्रकार उसकी हत्या के विरुद्ध आपत्ति प्रकट की उसका गुलबदन
बेगम ने बड़े मार्मिक शब्दों में उल्लेख किया है।"
3. पुत्र की आकांक्षा का सनातन स्त्री भाव का वर्णन : उसने लिखा है कि माहम बेगम को हुमायू के पुत्र न होने की कितनी चिन्ता थी और उसने किस प्रकार प्रयत्न करके मेवा जान से उसका विवाह कराया। मेवा जान द्वारा पुत्र जन्म पर माहम बेगम ने उत्सव के लिये जिस प्रकार की तैयारियां कराई उनका विवरण गुलबदन बेगम ने खुलकर किया है।
4. विवाह के चयन पर स्त्री अधिकार का वर्णन : गुलबदन ने हुमायूँ की सिन्ध यात्रा तथा हमीदा
बेगम से उसके विवाह को विस्तार से लिखा है
गुलबदन के अनुसार लगभग 40 दिन तक हमीदा बानो से विवाह का आग्रह चलता रहा। हमीदा का कहना था कि वह उस व्यक्ति से विवाह करना पसंद
करेगी जिसके गिरेबान तक उसका हाथ पहुँच सके। अन्त में हमीदा बानो की माता दिलदार
वेगम के कहने पर वह राजी हुई।
मुग़ल परिवार के बारे में जानकारी
गुलबदन
के इस विवरण से हमें यह पता चलता है कि उस समय मुग़ल परिवार में क्या चल रहा था, अमीरों
व मिर्जाओं का सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन कैसा था और किस प्रकार मिर्ज़ा लोग एक
दूसरे के विरुद्ध कार्य कर रहे थे।
1. विजय उत्सव का वर्णन : पानीपत में इब्राहीम लोदी की पराजय के बाद बाबर ने जिस प्रकार दिल खोलकर दान दिया था, गुलबदन ने उसका बड़ा ही रोचक वर्णन किया है। उसके अनुसार न केवल उसने अपने सम्बन्धियों को उपहार भेजे अपितु अनेक फकीरों और सन्तों को भी भेंट भेजीं।
2. बाबर का अपने सम्बन्धियों से स्नेह का वर्णन : गुलबदन के बाबर सम्बन्धी विवरण से यह भी जानकारी मिलती है कि वह अपने सम्बन्धियों से किस प्रकार स्नेह करता था। अपने सम्बन्धियों से निश्चित दिन मिलने में किसी भी प्रकार का प्राकृतिक प्रकोप उसके आड़े नहीं आ सकता था। गुलबदन ने काबुल से आगरा की यात्रा की कई रोचक घटनाओं का वर्णन किया है जिससे मालुम पड़ता है कि बाबर कितनी उत्सुकता से उनकी प्रतिक्षा कर रहा था। हुमायूँ के प्रति बाबर का स्नेह भी गुलबदन ने बड़े ही रोमांचित ढंग से लिखा है। मिर्जा हिन्दाल के प्रति बाबर के स्नेह की जानकारी भी उसी की रचना से मिलती है।
3. परिवार में एकता के लिए प्रयास का वर्णन : कन्नौज के युद्ध में पराजित होने पर जब हुमायूँ आगरे पहुँचा तो गुलबदन बेगम ने भाइयों का पुनः संगठित करने के जो प्रयास किये उनका उसने रोचक वर्णन किया है और जब कुछ समय के लिये सब भाई संगठित हो गये तब हुमायूँ ने जिस प्रकार से इस अवसर पर उत्सव मनाया उसका गुलबदन ने विस्तार से वर्णन किया है। गुलबदन की रचना से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि हुमायूँ को अपनी माता, बहनों व वेगमों से कितना अधिक स्नेह था और वह उनके लिये कितना चिंतित रहता था।
4. विवाह तथा उत्सवों का वर्णन : इत्यादि उसने हिन्दाल मिर्ज़ा के विवाह का वर्णन और भी अधिक विस्तार से किया है और विभिन्न सम्बन्धियों के न केवल बैठने के स्थान को बताया है अपितु विवाह के लिये बनाये गये घर का बहुत ही बारीकी से विवरण दिया है। उसने दावत में दिये गये अनेक खाद्यानों का वर्णन किया है और इनाम- इकराम का बड़ी ही सजगता से रोचक वर्णन छोड़ा है। इस प्रकार गुलबदन बेगम उत्सवों आदि के विवरण में सिद्धहस्त मालुम पड़ती है। वह उस समय के रीति-रिवाजों का वर्णन करने में भी अनूठी है। राजनीतिक घटनाओं के अतिरिक्त इसमें समकालीन रीति-रिवाज़, सामाजिक मान्यताओं इत्यादि का भी वर्णन है।
हुमायूँ नामा के
दोष
1. संक्षिप्त राजनीतिक विवरण तथा दोषपूर्ण तिथिक्रम : गुलबदन बेगम ने लिखा है कि, "जिस समय बाबर की मृत्यु हुई उस समय वह मात्र 8 वर्ष की बालिका थी और इसलिये उसे जो कुछ भी याद रहा उसे उसने दूसरों द्वारा दी गई जानकारी मिलाकर लिखा। इसीलिये बाबर सम्बन्धी उसका विवरण बहुत ही संक्षिप्त है।" गुलबदन बेगम का तिथिक्रम कहीं-कहीं दोषपूर्ण है और उस द्वारा दिया गया सूक्ष्म राजनैतिक वर्णन बड़ा ही अखरता है।
2. युद्ध और हिंसा में कम रूचि का स्त्री स्वभाव : गुलबदन एक स्त्री थी और स्वाभाविक रूप से उसमें युद्धों और युद्ध रचनाओं के प्रति कम रूचि थी। इसीलिये उसने साधारणतया युद्धों का बड़ा ही कम वर्णन किया है। हुमायूँ के गौंड़ पर अधिकार का विवरण केवल कुछ पंक्तियों में है। चौसा के युद्ध के सम्बन्ध में भी वह बहुत ही कम जानकारी देती है। उसने लिखा है कि, "मुगल सैनिक असावधान थे कि शेर खाँ ने पहुँच कर आक्रमण कर दिया। सेना पराजित हुई और अधिकांश लोग एवं परिवार वाले बन्दी बना लिये गये’’। उसकी रचना में कामरान को अन्धा करने की घटना नहीं मिल पाती है। सम्भवतः इसका कारण था कि वह इस हृदय विदारक घटना को लिखना नहीं चाहती थी।
निष्कर्ष
गुलबदन
बेगम इतिहासकार नहीं थी। हुमायूँनामा उसका संस्मरण है। वह इसमें वर्णित घटनाओं से
संबंधित थी। इससे कहीं - कहीं वह भावनाओं से प्रभावित हो जाती है तथा निष्पक्ष
नहीं रह जाती। उदाहरणतया, अपने सगे भाई हिन्दाल के प्रति वह कहीं-कहीं
पक्षपात करती है, उसकी मृत्यु की घटनाएँ तो अत्यन्त ही मार्मिक शब्दों में
वर्णित हैं। माहम बेगम द्वारा
जश्नों का आयोजन, तिलिस्म का जश्न,
हिन्दाल मिर्ज़ा के विवाह का
जश्न, माहम की हुमायूँ के पुत्र-जन्म की आकांक्षा तथा सुंदर
लड़कियों से हुमायूँ के विवाह के लिए उनका प्रयत्न,
मुग़ल स्त्रियों की
पारस्परिक स्पर्द्धा तथा ऐसी अनेक घटनाएँ गुलबदन के वर्णन के बिना अप्राप्य रहतीं। गुलबदन बेगम का
तिथिक्रम कहीं-कहीं दोषपूर्ण है और उस द्वारा दिया गया सूक्ष्म राजनैतिक वर्णन
बड़ा ही अखरता है। इस कमी के बाद भी
उसने हुमायूँ के व्यक्तिगत गुणों और उसकी कमियों का जिस प्रकार चित्रण किया है वह
निश्चित ही रोचक है।
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