लॉर्ड कैनिंग के समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना 1857 का विप्लव था, जो 1858 तक पूर्णतया दबा दिया गया। विद्रोह के प्रभाव में से एक प्रभाव यह हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर दिया गया तथा भारत सरकार का उत्तरदायित्व इंग्लैंड के सम्राट या सम्राज्ञी ने अपने हाथों में ले लिया। इस प्रकार लॉर्ड कैनिंग कंपनी का अंतिम गवर्नर जनरल तथा क्राउन या सम्राट के अधीन प्रथम वायसराय था।
1857 के पूर्व के सुधार
1856 में कैनिंग की सरकार ने “सामान्य सेना भर्ती अधिनियम” पारित किया, जिसके अनुसार बंगाल सेना के सभी भावी सैनिकों को यह स्वीकार करना पड़ता था कि जहाँ कहीं भी सरकार को आवश्यकता होगी वे वहीँ कार्य करेंगे। इस अधिनियम का प्रभाव पुराने सैनिकों पर नहीं था परन्तु सैनिक सेवा प्रायः वंशानुगत होती थी अतएव यह अधिनियम बहुत अप्रिय हुआ।
1857 के बाद के सुधार
1-
सेना का पुनर्गठन
1857 के विप्लव से पूर्व भारत में अंग्रेजी सेना दो भागों में विभाजित थी एक कंपनी की रेजीमेंट कहलाती थी जिसमें समस्त सैनिक भारतीय थे, किंतु अफसर अंग्रेज थे। दूसरा क्वीन रेजीमेंट कहलाती थी, जिसमें समस्त सैनिक एवं अफसर अंग्रेज थे। क्वीन रेजीमेंट के सैनिकों को कंपनी रेजीमेंट की तुलना में अधिक वेतन और अन्य सुविधाएं भी अधिक प्राप्त थी। विद्रोह समाप्ति के पश्चात ट्रेनिंग में सेना के इस विभाजन को समाप्त कर दिया। क्वीन रेजीमेंट के सैनिकों ने इस निर्णय पर विरोध किया, इस पर कैनिंग ने स्पष्ट रूप से कहा कि जो सैनिक संगठन में रहने के इच्छुक नहीं है वह वापस इंग्लैंड जा सकते हैं। कैनिंग ने सेना को एक कर दिया, इसे सेना समिश्रण योजना कहा गया। चूँकि 1857 की क्रांति के लिए मुख्यतः सेना ही जिम्मेदार थी अतः इसका पूर्णतया पुनर्गठन किया गया और इसका गठन विभाजन और प्रतितोलन की नीति पर किया गया। इसके अनुसार कुछ सैनिक टुकड़ियों में पूर्ण रूप से अंग्रेज सैनिकों को रखा और कुछ में पूर्ण रूप से भारतीय सैनिकों को रखा। भारतीय सैनिकों के टुकड़ियों में राजपूतों, मराठों, सिक्खों, गोरखाओ की अलग-अलग टुकड़िया बनाई गई। अर्थात भारतीय सैनिक की टुकड़ियों का गठन जातिगत आधार पर किया गया। साथ ही यूरोपीय सैनिकों की 1857 से पहले की संख्या जो 40000 थी अब उसे 65000 कर दी गई और भारतीय सेना की संख्या जो पहले 238000 थी अब 140000 निश्चित कर दी गई। भारतीय सैनिक के दस्तों या टुकड़ियों की अपेक्षा अंग्रेज सैनिक के दस्तों को वेतन, अधिकार, सुविधाएं एवं पेंशन आदि अधिक देना तय किया गया परिणाम स्वरूप भारतीयों एवं अंग्रेजों के बीच एक गहरी खाई तैयार हो गई।
2-
प्रशासनिक विकेंद्रीयकरण
लॉर्ड कैनिंग के शासनकाल में 1861 में
‘इंडियन काउंसिल एक्ट’ पारित किया
गया।
इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों को कानून बनाने के संबंध में
कुछ अधिकार दिए गए। वायसराय को अपने काउंसिल के सदस्यों में कार्य विभाजित करने का
अधिकार दिया गया। इस
अधिनियम से पूर्व समस्त शासन एक ही कील पर घूमता था किंतु अब शासन को अलग-अलग
विभागों में बांटा गया तथा काउंसिल परिषद के प्रत्येक सदस्य को अलग-अलग विभागों के
लिए उत्तरदायी बना दिया गया। परिषद के सदस्य अपने विभागों से संबंधित मामलों पर अंतिम
निर्णय ले सकते थे। केवल नीति संबंधी मामले ही वायसराय के समक्ष प्रस्तुत किए जाते
थे तथा मतभेद होने की स्थिति में मामला परिषद के समक्ष रखा जाता था।
इस अधिनियम से शासन का विकेंद्रीकरण आरंभ हो गया था किंतु
इस अधिनियम से वायसराय और उसकी कार्यकारिणी की शक्तियों में बहुत अधिक वृद्धि हो
गई थी। एक
प्रतिक्रियावादी कार्य यह किया गया कि इस अधिनियम द्वारा वायसराय को जरूरत पड़ने
पर अध्यादेश जारी करने का अधिकार दे दिया गया। शासन के इस विकेंद्रीकरण के परिणाम स्वरूप भारतीयों को
ब्रिटिश शासन से सम्बद्ध कर दिया गया परंतु वह कार्यकारिणी के कार्यों में
हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे।
3-
भूमि
व्यवस्था में परिवर्तन
विप्लव के बाद कैनिंग ने ब्रिटिश सम्राट की सुरक्षा के लिए भारतीय कुलीन वर्ग, राजाओं, जमीदारों एवं तालुकदारो का समर्थन प्राप्त करने का निश्चय
किया। भारतीय
शासकों का समर्थन प्राप्त करने के लिए उसने आगरा एवं लाहौर में दरबार आयोजित किया
और विप्लव काल में अंग्रेजों की सहायता करने वाले राजाओं को पुरस्कार दिये।
अवध के तालुकदारो को अपने ताल्लुके में मुकदमे सुनने का
अधिकार दिया गया ताकि वे अंग्रेज के समर्थक बने रहें। उसने बंगाल के जमींदारों को भी छोटे-छोटे मुकदमे तय करने का
अधिकार दिया। इसी
प्रकार की नीति पंजाब, मध्य प्रदेश, मध्य प्रांत, संयुक्त प्रांत, पश्चिमी प्रांत में भी लागू किया। कैनिंग ने इस नीति से भारत के उच्च वर्गों का समर्थन
प्राप्त कर लिया परंतु किसानों का शोषण आरंभ हो गया था। भारत में जमींदारों के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना अत्यंत
ही कठिन कार्य था ऐसी स्थिति में 1859 में ‘बंगाल किराया अधिनियम’ स्वीकृत किया
गया यह अधिनियम आगरा, अवध,
बिहार और मध्य प्रांत में भी लागू किया गया।
इस अधिनियम के अनुसार जिन किसानों का 12 वर्ष से किसी भूमि
पर अधिकार था उन्हें उस भूमि का मलिक स्वीकार कर लिया गया तथा किसानों द्वारा जमीदार
को दी जाने वाली लगान की राशि भी निश्चित कर दी गई। इस निश्चित लगान में कानूनी अदालत की अनुमति के बिना वृद्धि
नहीं की जा सकती थी। जिन किसानों के पास 1793 से भूमि थी उनका किराया किसी भी स्थिति में बढ़ाया
नहीं जा सकता था। इस
अधिनियम का मुख्य उद्देश्य किसानों को लगान वृद्धि से बचाना था।
किंतु जमीदारों ने इसके नियमों को पालन नहीं किया जिससे
किसानों का असंतोष बढ़ता गया। 1861 ईस्वी में
बेयर्ड स्मिथ ने बंगाल की स्थाई भूमि व्यवस्था को (स्थाई बंदोबस्त) सारे
भारत में लागू करने का प्रस्ताव रखा। उस समय इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया किंतु लॉर्ड
मेयो के समय में इस प्रस्ताव का विरोध किया गया तथा लॉर्ड रिपन के समय में इस
प्रस्ताव को पूर्णता छोड़ दिया गया।
4-
वित्तीय नीति
लॉर्ड कैनिंग की सरकार को आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ा।
इसका कारण यह था कि बहुत सारे साधन 1857 के गदर के दमन में तथा कुछ धन
समाज सुधार के कार्यों में खर्च हो गया था। उस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता थी- खर्च को कम करना तथा आय
में वृद्धि करना था। अतः कैनिंग ने बहुत से फौजी दस्ते समाप्त कर दिए। इंग्लैंड का एक महान अर्थशास्त्री जॉन विल्सन 1859 में भारत आया परंतु भारत आगमन के 1 वर्ष से कम
समय में उसकी मृत्यु हो गई उसके काम को सैमुअल लैंग ने जारी रखा अपनी मृत्यु से
पूर्व विल्सन ने 3 नए करों को लगाने की सिफारिश की थी-
1-
आयकर
2-
व्यापार
तथा विभिन्न पेशो पर लाइसेंस कर
3-
घरेलू
तंबाकू पर चुंगी
आयकर का प्रस्ताव प्रयोग के रूप में स्वीकार कर लिया गया यह वार्षिक ₹500 से
अधिक की आय पर 5 वर्षों के लिए 5% के हिसाब से लगाया गया। विल्सन ने 10% के हिसाब से एक जैसे आयात कर की स्थापना की
तथा नमक पर
कर लगाने जाने का सुझाव रखा। इस प्रकार विल्सन तथा लैंग के सुधारों का परिणाम यह हुआ कि कैनिंग जब भारत
से रवाना होने लगे तब घाटे का बजट नहीं था।
5-
न्याय एवं पुलिस विभाग में सुधार
लॉर्ड कैनिंग ने न्याय एवं पुलिस विभाग में भी कई
सुधार किये। इस समय
कानूनों की संहिता बनाई गयी।
लॉर्ड मेकाले द्वारा प्रस्तावित भारतीय दंड संहिता 1858 में
कुछ आवश्यक परिवर्तनों के पश्चात कानून बन गया। 1859 में नागरिक कानून संहिता को, 1860 में भारतीय दंड संहिता को और 1862 में आपराधिक संहिता को लागू किया गया। जैसा कि राधिका सिंह
का तर्क है, इन नई
संहिताओं ने “अविभाज्य प्रभुसत्ता की एक धारणा और एकसमान अमूर्त और सार्वभौम विधिक
प्रजा पर दावों” के आधार पर “न्यायविधान के सार्वभौम सिंद्धांतों” की स्थापना के
प्रयास किए। 1860 में गठित पुलिस आयोग ने भारतीय साम्राज्य के लिए एक पुलिस
प्रतिष्ठान का बुनियादी ढाँचा पेश किया और इसे 1861 के पुलिस ऐक्ट में मूर्त रूप दिया
गया। उसके बाद केवल मामूली फेरबदल के साथ वही ढाँचा ब्रिटिश राज की अगली सदी में
जारी रहा।
6- सार्वजनिक हित के कार्य
उसने सार्वजनिक हित के भी कई कार्य किए उनके समय
में अनेक सड़कों, रेलमार्गो एवं नहरों का निर्माण करवाया गया। शिक्षा संचालक के नियंत्रण में शिक्षा विभाग खोला गया तथा
1857 में लंदन विश्वविद्यालय के नमूने पर कोलकाता, मुंबई, मद्रास में
विश्वविद्यालय खोले गए। 1861 में आगरा तथा अवध के उत्तर पश्चिम प्रांतों में तथा
पंजाब एवं राजपूताना के कुछ भागों में एक अत्यंत भयंकर अकाल आरंभ हुआ जिससे
जनसंख्या का लगभग 10% भाग समाप्त हो गया कैनिंग ने पीड़ितों की सहायता करने के लिए
बहुत सा धन खर्च किया।
1857 की क्रांति के बाद सिपाहियों के अत्याचारों की कहानियों के कारण सज़ा और
बदले की भावना बढ़ने लगी और जब वायसरॉय लॉर्ड कैनिंग जैसे समझदार तत्त्वों ने इस
जुनून को रोकने की कोशिश की, तो उसके देशवासी ही उसे “क्लेमेंसी कैनिंग” कहने लगे और उसे
वापस बुलाने के लिए प्रार्थनापत्र भेजने लगे। इस प्रकार 1862 में कैनिंग स्वदेश
लौट गया।
1 टिप्पणी:
Jay hind sir
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