इंग्लैंड में अपनी पढ़ाई करते हुए कर्जन ने वायसराय पद के प्रलोभन तथा
उत्तरदायित्व के बारे में लिखा था। भारतीय वायसराय का वेतन इंग्लैंड के
प्रधानमंत्री से दोगुना था तथा उसकी सेवा के लिए 700 कर्मचारी नियुक्त थे। कर्जन यह विश्वास करता था कि वह इसी
पद के लिए जन्मा है। भारत के बारे में उसे किसी भी अन्य वायसराय से ज्यादा जानकारी
थी। इसके लिए उसने भारतीय उपमहाद्वीप की कई बार यात्रा की थी। उसने एशिया की
समस्याओं पर तीन ग्रंथ लिखा था। फिर भी उसका मानना था कि पूरब एक ऐसा
विश्वविद्यालय है जहां विद्यार्थी को प्रमाण पत्र कभी नहीं मिलता है।
भारत में उसकी चुनौतियां
भारत में उसे जिन चुनौतियों से निपटना पड़ा वह इस प्रकार थी-
1.
अकाल
और प्लेग के पृष्ठ प्रभाव : राजस्व घाटा
2.
प्रशासनिक
शिथिलता : फाइलें धरती के दैनिक चक्र की भांति चलती थी, शान से, गंभीरता से, और मंद गति से
3.
जागृत
भारत : कांग्रेस का नरमपंथी दौर और औपनिवेशिक अर्थतंत्र की मीमांसा
4.
साम्राज्य
की रक्षा का प्रश्न : प्रथम विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि और रूस का भय
सुधार की दृष्टि
उसका मानना था कि शासित लोगों के संतोष का दूसरा नाम प्रशासन है। लेकिन जैसा
कि बिपिन चंद्र पाल कहते हैं कि उसका लक्ष्य स्वायत्तता प्राप्त करना था परंतु
भारतीय सरकार के लिए, न की भारतीय लोगों के लिए जैसा की रिपन चाहता था।
1.
पुलिस सुधार
1902 में सर एंड्रू फ्रेजर की अध्यक्षता में पुलिस आयोग गठित
किया गया जिसने 1903 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। जिसका कहना था कि पुलिस बल सर्वथा अक्षम, प्रशिक्षण और संगठन में दोषपूर्ण तथा भ्रष्ट और दमनकारी है।
कर्जन का स्वयं मानना था कि इससे अधिक स्पष्ट और लाभदायक रिपोर्ट कभी नहीं
प्रस्तुत की गई। रिपोर्ट के सुझावों में वेतन वृद्धि, संख्या वृद्धि, पुलिस विद्यालय तथा गुप्तचर विभाग की स्थापना थी। जाहिर है
कि इससे सरकारी व्यय में वृद्धि हुई जो 1898 में 2117000 पाउंड थी से बढ़कर 1908 में 3212189 पाउंड तक पहुंच गया।
2.
शिक्षा
में सुधार
कर्जन का मानना था कि शिक्षा संस्थान राजनीतिक विद्रोहियों के कारखाने बन चुके
थे। अतः उसने 1902 में
विश्वविद्यालय आयोग बनाया। 1904 में एक विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया। जिसके
द्वारा सरकारी नियंत्रण बढ़ाया गया तथा सीनेट में सरकार द्वारा मनोनीत सदस्यों की
संख्या में वृद्धि की गई। शोध और अध्ययन पर बल दिया गया।
3.
आर्थिक
सुधार
नमक कर घटा दिया गया तथा आयकर की सीमा बढ़ाकर ₹1000 सालाना कर दिया गया। सर एंटनी मैकडॉनल्ड की अध्यक्षता में
एक अकाल आयोग बनाया गया। 1901 में कोलिन स्कॉट मानक्रीक की अध्यक्षता में एक सिंचाई आयोग बनाया गया। एक
महानिरीक्षक के अधीन साम्राज्यिक कृषि विभाग बनाया गया। वाणिज्य और उद्योग नाम का
एक नया विभाग बनाया गया। 1899 में टंकण एवं पत्र मुद्रा अधिनियम लाया गया। अंग्रेजी पाउंड को भारत में
ग्राह्य टेंडर बना दिया गया। एक पाउंड ₹15 के बराबर था। जिसे भारत के स्वर्ण प्रमाप पर रखा गया। भारत
में सबसे अधिक रेलवे लाइन कर्जन के समय में बिछाया गया। मिस्टर टॉमस रॉबर्टसन जो
एक रेलवे विशेषज्ञ थे इंग्लैंड से भारत आमंत्रित किया गया। उन्होंने रेलवे बोर्ड
की स्थापना का सुझाव दिया।
4.
न्यायिक
सुधार
कर्जन के काल में कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या बढ़ा दी गई
है। साथ ही अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों का वेतन तथा पेंशन भी बढ़ा दिया
गया। इसके काल में भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता को भी संशोधित किया गया।
5.
सैनिक
सुधार
सेना के पुनर्गठन का दायित्व लॉर्ड किचनर के जिम्मे था। वह 1902-1908 तक मुख्य सेनापति था। भारतीय सेना को दो कमान में विभाजित
कर दिया गया उत्तरी कमान मरी में थी जिसका प्रहार केंद्र पेशावर था तथा दक्षिणी
कमान पूना थी जिसका प्रहार केंद्र क्वेटा था। दोनों भागों में तीन ब्रिगेड थे
जिसमें दो स्थानीय तथा एक अंग्रेज ब्रिगेड थी। सेना के प्रशिक्षण के लिए इंग्लैंड
के केंबरले कॉलेज की तर्ज पर क्वेटा में कालेज खोला गया। प्रत्येक बटालियन को एक
कड़े परीक्षण से गुजरना होता था जिसे किचनर टेस्ट कहते थे।
6.
कोलकाता
निगम अधिनियम
जो भी उत्तम कार्य रिपन ने स्थानीय स्वशासन के क्षेत्र में किया था वह सब
कर्जन ने कार्यकुशलता की आड़ में समाप्त कर दिया। कोलकाता निगम अधिनियम के अनुसार
चुने हुए सदस्यों की संख्या कम कर दी गई। अन्य समितियों में अंग्रेजों की संख्या
बढ़ा दी गई। निगम केवल एंग्लो इंडियन सभा के रूप में रह गया। इस सुधार के विरोध
में 28 चुने हुए भारतीय सदस्यों ने त्यागपत्र दिया। वह स्थानीय
स्वशासन को संदेह की दृष्टि से देखता था और उसका कहना था की वायसराय पद से रिटायर
होने के बाद वह कलकत्ता का महापौर होना वह पसंद करेगा।
7.
प्राचीन
स्मारक परिरक्षण अधिनियम 1904
कर्जन इतिहास एवं पुरातत्व का विद्वान था उसने प्राचीन स्मारकों की मरम्मत
प्रतिस्थापना और रक्षण के लिए एक अधिनियम पारित किया। इसके लिए 50000 पाउंड का बजट निश्चित किया गया। तथा संग्रहालय बनाने के
प्रयास पर जोर दिया गया।
8.
बंगाल
विभाजन 1905
कर्जन ने भारत में सर्वाधिक निंदनीय कार्य 1905 में बंगाल का विभाजन करके किया था। इसका कहना था कि बंगाल के
बड़ा होने से प्रशासनिक असुविधा होती है। परंतु यह राजनीतिक तथा साम्प्रदायिक उद्देश्य
से जुड़ा था। बंगाल प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर एंड्रयू फ्रेजर ने सांप्रदायिक
आधार पर कहा था कि मेरी दो पत्नियां हैं जिसमें मुसलमान पत्नी मुझे अधिक पसंद है।
यद्यपि 1911 में यह विभाजन रद्द कर दिया गया परंतु कर्जन अपने
सांप्रदायिक उद्देश्य में सफल रहा।
9.
कर्जन
किचनर विवाद एवं कर्जन का त्यागपत्र
गवर्नर जनरल की परिषद में 2 सैन्य अधिकारी भी होते थे। 1902 में भारत में किचनर मुख्य सेनापति बनकर आया। उससे लॉर्ड
कर्जन का परिषद के सैन्य अधिकारी के अधिकारों के प्रश्न पर मतभेद हो गया। इस झगड़े
में भारत सचिव ने किचनर का पक्ष लिया था अतः कर्जन ने अगस्त 1905 में अपना त्यागपत्र दे दिया।
मूल्यांकन
कुछ कार्यों के कारण कर्जन को अपने प्रारंभिक दिनों में भारतीयों के बीच
लोकप्रियता मिली। यह कार्य थे रंगून में एक स्त्री के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए
श्वेत सैनिकों को दंड देना। सियालकोट में एक भारतीय को पीट कर मार डालने के लिए
नाइंथ लांसर्स के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करना। तथा असम के चाय बागान के
प्रबंधक को एक कुली हत्या के मामले में दंड देना। लेकिन कर्जन अपने बुनियादी
सवालों पर उतना ही नस्लवादी था जितना कोई अन्य होता और कहा जाता है कि जब वह
भारतीयों से बहुत मधुर बोलता था तो ऐसे लहजे में बोलता था जो उत्तम रूप से पालतू
पशुओं के लिए प्रयुक्त किए जाते हैं। रविंद्र नाथ टैगोर के अनुसार उसमें मानव तत्व
नहीं था। मोंटेग्यू का कहना था कि वह मोटर की साफ सफाई करता रहता था क्योंकि उसे
पता नहीं था कि उसे जाना कहां है। गोखले ने उसकी तुलना औरंगजेब से की है।
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