सल्तनत कालीन भारतीय इतिहास का ज्ञान प्राप्त करने के लिए विभिन्न स्रोत हैं। इनमें प्रथम स्थान ऐतिहासिक रचनाओं का है जिनमें से अधिकांश फारसी भाषा में लिखे गए हैं। इस काल में विभिन्न कारणों से बड़े पैमाने पर इतिहास लेखन का कार्य हुआ जिसकी प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं।
1.
इतिहास
लेखन का उपदेशात्मक होना
उपदेशात्मक
इतिहास, वह इतिहास है जो नैतिक शिक्षा देता है। भारत में मुसलमान इतिहासकारों का
उद्देश्य सामान्यतः उपदेशात्मक था जिसके अंतर्गत अल्लाह के तरीकों को इंसान के
सामने प्रकट किया जाता है। शासक या सुल्तान दैवी प्रयोजन को पूरा करने का माध्यम
भर था। शासकों के अच्छे - बुरे कामों को लिपिबद्ध करने का उद्देश्य पूरे मुस्लिम
समुदाय को प्रोत्साहित करना, उन्हें परामर्श देना तथा चेतावनी देना था
मिन्हाज,अमीर खुसरो,
बरनी इन सबने उपदेशात्मक
इतिहास पर बल दिया जिसे आचारशास्त्र की एक शाखा और नैतिक उपदेशों का भंडार माना
गया।
2.
शोध
की कमी और स्रोत केंद्रित आलोचना की कमी
सल्तनत
कालीन मुस्लिम इतिहास लेखन की सबसे बड़ी विशेषता इसकी प्रकृति का विद्वता रहित, प्रभाववादी
होना था जिसके फलस्वरूप अतीत का एक यथार्थपरक चित्रण हआ। आरंभिक इंडो - मुस्लिम
इतिहासकारों के लिए इतिहास वही था जो विश्वस्त प्रतिवेदकों ने कहा था और अधिक
पुरानी किताबों में संग्रहित - समाहित था । यह 'अधिकार'
से लिखा गया इतिहास था न कि
अतीत के खोज किए ज्ञान का ब्यौरा या लेखा - जोखा किसी भी तरह के शोध या अनुसंधान
का इसमें अभाव था। मध्यकालीन इंडो - मुस्लिम इतिहासकार के बारे में हार्डी लिखते हैं
: इतिहासकार एक शोधकर्ता की बजाय एक लिपिक है और उसकी कृति सृजन नहीं बल्कि संचार
या संप्रेषण है। वह अपनी सामग्री को सजा-संवार सकता है और काट-छांट भी सकता है, पर
वह इसे अपने मस्तिष्क में रूपांतरित नहीं करता या इस
पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाता।
3.
एक
विषय के तौर पर इतिहास की गौण भूमिका
पीटर
हार्डी हमें सतर्क करते हैं कि भारत पर इस्लामी प्रभुत्व के आरंभिक चरण में
तुलनात्मक रूप से ऐतिहासिक लेखन की बहुलता को देखकर हमें यह नहीं मानना चाहिए कि
इतिहास को उस काल में एक स्वतंत्र बौद्धिक विषय माना जाता था। मुस्लिम बौद्धिक
जीवन में इसकी भूमिका गौण थी। बरनी ने इतिहास को धार्मिक विज्ञानों के बाद रखा और
उसे उनका अनुचर माना। यह राजकुमारों के लिए ललित शिक्षा का विषय था। किंतु मदरसों
और महाविद्यालयों के पाठ्यक्रम में इसे कोई स्थान नहीं दिया गया था।
4.
अतीत
को एक प्रक्रिया के रूप में नहीं देखना
हार्डी
यह भी कहते हैं कि एक प्रक्रिया के रूप में इतिहास की अवधारणा संभव नहीं हो पाई थी
क्योंकि इसके ठोस रूप ग्रहण करने में अभी बहुत देर थी। भारत के मध्य कालीन मुसलमान
इतिहासकारों की दृष्टि में इतिहास परस्पर स्वतंत्र घटनाओं की एक श्रृंखला थी जिसे
ईश्वर द्वारा अर्थ प्रदान किया गया। उन्होंने अतीत को व्यक्तिगत संदर्भ में और
जीवनियों के रूप में देखा। मुसलमान समुदाय को भी ऐतिहासिक अध्ययन के एक एकीकृत
अवयव के रूप में नहीं देखा गया न ही उनकी अंतःक्रिया पर गौर किया गया। न सिर्फ
ईश्वर को इतिहास की सभी घटनाओं के लिए उत्तरदायी माना गया बल्कि यह भी कहा गया कि
यह सामाजिक शक्तियों या युग चेतना के माध्यम से नहीं बल्कि व्यक्तियों के माध्यम
से कार्य करता है।
5.
धार्मिक
इतिहास लेखन
हार्डी
ध्यान दिलाते हैं कि मुस्लिम इतिहासकारों ने जिनमें बरनी एक अपवाद है, अतीत
को इस प्रकार नहीं देखा कि यह परिवर्तन की प्रक्रिया हो या कुछ नया होने या बनने
की एक कहानी हो। वर्तमान अतीत का अनुगमन करता है,
अतीत की परिणति नहीं है
उनमें से अधिकांश की दृष्टि में इतिहास दैवी विधान का भव्य प्रदर्शन है जिसमें
मनुष्य अभिव्यक्ति का केवल माध्यम था।
इतिहास मानव क्रिया की नहीं बल्कि दैवी क्रिया की कथा थी। इतिहास का इस्तेमाल
इस्लाम को गरिमा मंडित करने के लिए किया गया।
6.
विषय
क्षेत्र की संकीर्णता
अंततः
यह तथ्य भी ध्यातव्य है कि सल्तनत काल का इतिहास - लेख विषय क्षेत्र की दृष्टि से
अत्यधिक संकीर्ण था। आरंभिक इंडो - मुस्लिम इतिहासकारों ने इतिहास के केंद्र में
महान धार्मिक व्यक्तियों और शासकों जैसे पैगंबरों,
सुल्तानों, कुलीनों
और संतों आदि को रखा। गरीब, निम्न जाति या कुल के दीन-हीन आम लोगों के
जीवन तथा स्थितियों पर इतिहास द्वारा कभी प्रकाश नहीं डाला गया। आबादी का विशाल
बहुसंख्यक भाग अर्थात् हिंदू समुदाय इस तरह की कृतियों में हाशिये पर रहा और उनका
उल्लेख 'काफिर' के रूप में किया गया। इसमें सामाजिक ढांचे के खिलाफ
किसी चुनौती का भी अभाव दिखता है।
निष्कर्ष
इस
प्रकार मध्यकालीन इतिहास के एक विद्यार्थी के लिये यह आवश्यक है कि वह इस काल के
इतिहास लेखन का अध्ययन बेहद सावधानी के साथ तथा आलोचनात्मक दृष्टि से करे। तब उसे
मूल्यवान तथा प्रचुर अध्ययन सामग्री प्राप्त होगी।
सल्तनत कालीन इतिहास-लेखन में वृद्धि का कारण
1.
मंगोलियन
अस्थिरता के कारण मध्य एशिया से विद्वानों का पलायन
2.
भारत
में अनेक कालेजों की स्थापना
3.
साम्राज्य
की स्थिरता
4.
इतिहासलेखन
की इस्लामी परंपरा
5.
कागज़
का प्रयोग
6.
शासकों
की व्यक्तिगत रुचि
7.
फारसी
का सरकारी भाषा होना
8. संतों की जीवनियों तथा वार्तालाप का लेखन
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