सल्तनत कालीन भारत में सरकार की प्रशासनिक संरचना मुख्यत: फारसी अरबी पद्धति पर आधारित थी। किंतु सैन्य संगठन तुर्क मंगोल पद्धति से किया गया था, जबकि हिंदूओं की भूराजस्व पद्धति को भी कायम रखा गया था। इस प्रकार प्रशासनिक पद्धति मिश्रित ढंग की थी।
1.
सुल्तान
:
सुल्तान
राज्य का सर्वोच्च संचालक, न्यायाधिकरण में सबसे बड़ा निर्णायक, कानून
का सूत्रधार और सेनाओं का प्रधान सेनापति होता था। इस
पर भी वह पूर्णतः निरंकुश होने की स्थिति में नहीं था। उसे शरीअत का पालन करना
होता था साथ ही उसे उलेमा तथा मुल्लाओं की सलाह माननी पड़ती थी तथा ऐसी कोई भी
अनुचित कार्रवाई से बचना पड़ता था जिसके कारण विद्रोह की संभावना हो। इसके अलावा
एक मंत्री परिषद भी थी,
जिसे मजलिस-ए-खलवत कहा जाता
था, जिसमें कि बादशाह कार्यकारिणी, विधायी
तथा वित्तीय महत्व के मामलों पर विचार किया करता था। बहरहाल इस परिषद की सलाह
बादशाह के लिए बाध्यकर नहीं थी। बादशाह अपने बार-ए-खास नामक दरबार में अपने सभी
दरबारियों खानों, मलिकों,
अमीरों और अन्य रईसों को
बुलाया करता था । सुल्तान बार-ए-आजम में जो बाद के 'दरबार-ए-आम' की
तरह था, राजकाज का अधिकांश कार्य पूरा करता था। यहां
वह सर्वोच्च न्यायाधीश के रूप में बैठकर निर्णय करता, जनता
से दरखास्त लेता और व्यक्तिगत तकलीफों को भी सुनता था तथा इनके लिए आदेश जारी करता
था।
2.
वजीर
: प्रधान मंत्री
बादशाह
जब राजधानी में नहीं होता था तो उसकी अनुपस्थिति में प्रधानमंत्री या वजीर बादशाह
के बदले कार्य संचालन करता था। वह बादशाह का मुख्य सलाहकार था, जो
प्रायः गोपनीय और संदिग्ध मामलों में परामर्श देता था । यह साम्राज्य के अंदर किसी
असैनिक कर्मचारी को प्राप्त हो सकने वाला उच्चतम पद था । वह वित्तीय विभाग जिसमें
दीवान-ए-इसराफ (लेखा परीक्षा विभाग),
दीवान-ए-विजारत (राजस्व
विभाग), दीवान-ए-इमारत (लोक निर्माण), दीवान-ए-कोही
(कृषि विभाग), सम्मिलित थे - के मंत्रियों का प्रभारी था। वह
गुप्तचर और डाक विभाग, धर्मार्थ संस्थाओं और कारखानों का भी
प्रभारी होता था। इस प्रकार उसके अधिकार व्यापक और सुसंपन्न थे । प्रांतों के सभी
गवर्नर (संचालक) उचित परीक्षण के लिए अपने खाते उन्हें प्रस्तुत करते थे। कारखानों
के प्रधान की हैसियत से वह सेना को सब सामान जुटाने के लिए उत्तरदायी होता था। उसे
छोटा वजीर तथा अन्य अनेक अधिकारीगण जैसे मुस्तफा-ए-मामलिक अथवा महालेखापरीक्षक, मुसरिफ-ए-मामलिक
या महालेखा कार, मजुमदार,
जो शेष राशि का हिसाब रखता
और खाजिन या कोषाध्यक्ष सहायता करते थे।
3.
आरिज-ए-मामलिक
: सेना का मंत्री
यह
सैनिकों की भर्ती तथा सेना के साज-सामान जुटाने के लिए उत्तरदायी होता था। युद्ध
के समय वह रसद, शस्त्रादि का प्रबंध करता था। किंतु वह प्रधान
सेनापति नहीं होता था, जिसे सुल्तान विशेष युद्ध अभियान के लिए
नियुक्त करता था। सैन्यनीति से संबंधित सभी मामलों का निर्णय बादशाह स्वयं लेता था, जिसके
लिए वह आरिज-ए- ममालिक की सलाह लिया करता था। अभियानों में शाही सेना के हाथ में
आने वाले लूट से प्राप्त सामान को भी वही रखता था ।
4.
दबीर-ए-खास
: पत्राचार मंत्री
यह
बादशाह और प्रांतीय गवर्नरों के बीच होने वाले पत्राचार की व्यवस्था रखता था। वह
प्राप्त पत्रों को पढ़ता था तथा सुल्तान की ओर से उनके उत्तर का प्रारूप तैयार
करता था। बहुधा बादशाहं स्वयं भी पत्र लिखवा दिया करता था। बादशाह की अनुमति से
दबीर समस्त सरकारी आदेशों, फतहनामों (विजय घोषणाओं) और फरमानों को
जारी करता था। उसके पास कार्य में सहयोग के लिए अनेक सचिव और दबीर होते थे। ऐसा
प्रतीत होता है कि इस विभाग का स्तर फिरोज तुगलक के समय में नीचा कर दिया गया और
इसके बाद यह मंत्रिमंडलीय पद नहीं माना जाने लगा। शायद उसका स्थान न्याय विभाग के
प्रमुख द्वारा लिया गया था, फिर बाद में गुलामों के विभाग के नाम से
नया विभाग, जो (दीवान-ए-बंदगान् ) कहा जाता है, के
प्रधान द्वारा संभाला गया।
5.
काजी-ए-ममालिक
: मुख्य न्यायाधीश
यह
सुल्तान के बाद सर्वोच्च न्यायिक अधिकारी था। वह मुख्य अपीलीय न्यायालय का मुख्य
न्यायाधीश होता था। अधीनस्थ न्यायालयों में काजियों के सभी फैसलों, फौजदारी
या दीवानी, की अपीलें यहां भेजी जाती थीं। वह राज के
धार्मिक मामलों की देखरेख करता था,
जिसमें मदरसों की देखभाल और
विद्वान तथा जरूरतमंदों, दरवेशों को खैरात देना भी शामिल है। इस
हैसियत में वह सद्र अल-सदूर समझा जाता था ।
6.
दीवान-ए-रिसालत
: अपील मंत्रालय
अपील
मंत्रालय का मुख्य काम प्रजा की शिकायतें सुनकर बादशाह की तरफ से उन्हें राहत
पहुंचाना होता था। वह काजी के फैसले के विरुद्ध अपीलों को भी सुनता था ।
7.
अन्य
विभाग :
इसके
अलावा ऐसे ही कई अन्य महत्वपूर्ण विभाग भी थे। एक खुफिया विभाग भी था, जिसका
प्रधान बरीद-ए-मामलिक या मुख्य आयुक्त ( खुफिया) होता था। उसका काम बादशाह को
राज्य में होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी देना था। सल्तनत के सभी क्षेत्रीय
स्थानों में एक बरीद या संवाददाता रहता था,
जो सुल्तान को राज्य के
अधिकारियों के कार्यों के विषय में तथा बाजार में कारोबार और अन्य घटनाओं की सूचना
देता था। अलाउद्दीन ने बाजार को नियंत्रित करने के लिए दीवान ए रियासत बनाया। अमीर-ए कोही कृषि विभाग का अधिकारी होता था। मीर-ए-अमारत भवन निर्माण की
देखभाल करता था। मुहम्मद बिन तुगलक ने सियासत अथवा दंड विभाग बनाया जो उसकी
योजनाओं के विरोधियों की जांच करता था। फिरोज तुगलक ने खैरात विभाग खोला था, जिससे
जरूरतमंद तथा उन निर्धन मुसलमानों की सहायता हो सके जो धनाभाव के कारण अपनी
बेटियों की शादी करने में असमर्थ थे। शाही घरेलू विभाग का स्थान महत्वपूर्ण था।
इसका अफसर वकील काफी प्रभाव रखता था। वह बादशाह के समस्त घरेलू कार्यों पर
नियंत्रण करता था तथा बादशाह के निजी कर्मचारियों को वेतन देता था। वह शाही
बावर्ची खाना, शराब विभाग तथा शादी समारोहों का भी इंतजामकार
था।
8.
राजधानी
दिल्ली का प्रशासन
राजधानी
दिल्ली का प्रशासन एक कोतवाल को गया था,
जो न्यायिक तथा पुलिस कार्य
करता था। वह शहर में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी था, किसी
अपराध के होने पर अपराधी को पकड़कर न्यायालय के सामने पेश करने का काम भी उसी का
था। अल्लाउद्दीन ने व्यापारियों पर विशेष ध्यान रखने के लिए दीवान-ए-रियासत का पद
बनाया था। दीवान बाजारों पर नियंत्रण रखता था तथा माप और तौल का भी निरीक्षण करता
था। मुहतसिब शहर के अंदर दूसरा महत्वपूर्ण अधिकारी था । इसका कार्य लोगों के
सामान्य आचरण का रिकार्ड रखना तथा नैतिक नियमों को लागू करना था।
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