अबुल फजल के अनुसार, अपने शासन के चौबीसवें वर्ष अपने साम्राज्य को बारह प्रान्तों में विभक्त करने के समय अकबर ने प्रत्येक सूबे में एक सिपहसालार, एक दीवान, एक बख्शी, एक मीर अदल, एक सद्र, एक कोतवाल, एक मीर-ए-बहर तथा एक वाकियानवीस नियुक्त किया। प्रान्तों की संख्या 1602 ईसवी सन में 15 हुई जो शाहजहाँ के समय 18 तथा औरंगजेब के समय तक 20 हो गई।
1.
सिपहसालार अथवा नाज़िम
एक प्रांत के प्रमुख
कार्यवाही अफसर या प्रांतीय अफसर को अकबर के समय सिपहसालार तथा बाद में नाज़िम कहा
जाता था। लेकिन वह सूबेदार या सूबा के नाम से अधिक लोकप्रिय था। उसका मुख्य काम प्रांत
में कानून और व्यवस्था बनाए रखना तथा शाही फरमानों की तालीम कराना था । वह आंतरिक
लड़ाई झगड़ों तथा बलवों को दबाकर शांत किया करता था और बाहरी आक्रमण की स्थिति में
केंद्र से सहायता लेता था। वह स्थानीय राजा रजवाड़ों से नजराना भी लिया करता था
तथा जरूरत पड़ने पर वसूल करने में दीवान की सहायता करता था। वह इजलास में बैठकर
अधिकतर फौजदारी मुकद्दमों का फैसला भी किया करता था। वह पदोन्नति तथा पुरस्कार के
लिए अपने मातहत अफसरों की सिफारिश लिख कर केंद्र को भेजा करता। अपने प्रांत में
होने वाली घटनाओं के संबंध में वह केंद्र को साप्ताहिक रिपोर्ट भेजता था। सूबेदार
की नियुक्ति के लिए फरमान-ए साबती नामक एक विशेष फरमान जारी किया जाता था, उसके कर्तव्यों के लिए विशेष आदेश "हिदायत-उल- कवायद जारी होता था।
लगभग दो हजार से पांच हजार सिपाहियों को रखने वाले श्रेष्ठ मनसबदारों को ही इस पद
पर नियुक्त किया जाता था।
2.
दीवान :
प्रांत में दूसरा
महत्वपूर्ण अफसर दीवान होता था, जिसका काम राजस्व से
संबंधित था। वह शाही दीवान के प्रति उत्तरदायी था और उसी के द्वारा नियुक्त किया
जाता था। उसका मुख्य काम अपने अफसरों अमील, तहसीलदार आदि के
द्वारा भूमिकर, बिक्रीकर, राहदारीकर,
चुंगीकर आदि वसूल कर केंद्र को भेजना था। वह वसूली, उसके लेखे जोखे तथा लेखा परीक्षा के लिए उत्तरदायी होता था वह शाही हुकूमत
के द्वारा अनुमोदित कार्यों के लिए धन की स्वीकृति भी देता था। जहां फसलें मारी
जातीं वहां के लिए राजस्व में छूट देने का अधिकार भी इसे प्राप्त था। वह प्रत्येक
पखवारे में अपने सूबे की रिपोर्ट केंद्र को भेजता था। इस प्रकार दीवान वहां के
सूबेदार पर एक अंकुश स्वरूप था, हालांकि वह मनसबदार के रूप
में काफी छोटा अफसर था और कम वेतन पाता था। बुलाए जाने पर उसे सूबेदार के इजलास में
उपस्थित होने का अधिकार भी था, अन्यथा दीवान अपने से वरिष्ठ
रूप में सूबेदार को मान्यता नहीं देता था। इन दो अफसरों में बहुधा झगड़ा होने की
घटनाएं हुई हैं, जिनमें केंद्र को दखल देना पड़ा। कई बार
गवर्नर ने खिलाफत की है, किंतु वह अपने साथ दीवान को सहमत
नहीं कर पाया। फिर भी, अकबर द्वारा बड़ी चतुराई से प्रतिबंध
और संतुलन के लिए चलाई गई यह प्रथा
औरंगजेब काल में अवरुद्ध हो गई, जबकि एक ही व्यक्ति
को सूबेदार और दीवान दोनों का पद दिया जाने लगा।
3. बख्शी
प्रांत में बख्शी
दूसरा महत्वपूर्ण अफसर होता था। वह मीरबख्शी का प्रतिनिधि होता था और उसकी राय से
नियुक्त किया जाता था। वह प्रांत में फौजी इंतजाम का प्रभारी अधिकारी होता था तथा
सैनिकों की भर्ती तथा उनके साज सामान के बारे में दिए गए शाही एलान का पालन करवाया
करता था। वह मनसबदारों के द्वारा रखे जाने वाले फौजी दस्तों का मुआइना करता था तथा
उनके बारे में सालाना रिपोर्ट भी बनाता था। युद्ध के समय वह यह सुनिश्चित करता था
कि अफसरों के पास उचित संख्या में सिपाही हैं तथा उन से सेना की आवश्यकता पूरी हो
जाएगी। वास्तविक रूप में अभियान के समय उसका एक प्रतिनिधि भी सेना के साथ होता था।
मनसबदारों तथा उनके सिपाहियों के निमित्त भुगतान के लिए बिल पास करने का
उत्तरदायित्व भी उसी का था। मुख्य रिपोर्टर या वाकयानवीस के रूप में प्रांतीय
मामलों के संबंध में नियमित रूप से वह केंद्र को रिपोर्ट भेजा करता था जिसकी सूचना
वह प्रत्येक परगना में रखे गए अपने एजेंट से लेता था ।
4.
दीवान-ए-बयूतात:
प्रांत में सरकारी
इमारतों,
कारखानों तथा सड़कों के रख रखाव के लिए दीवान-ए-बयूतात जिम्मेवार
होता था। वह किसी मृत मनसबदार की संपत्ति का भार भी संभालता था और उसकी तालिका
बनाकर केंद्र को भेज देता था। जब कभी बादशाह उस प्रांत का दौरा करता तो उसके आराम
और देख-रेख की जिम्मेदारी भी दीवान-ए-बयूतात की होती थी।
5.
प्रांतीय सद्र
केंद्र के सद्र उस सूदूर
की संतुति पर सम्राट प्रांत में एक सद्र की नियुक्ति करता था। प्रांतीय सद्र अपने
क्षेत्र में इस्लाम धर्म के हित के लिए उत्तरदायी था। इस सन्दर्भ में उसका प्रमुख
कार्य धार्मिक, शैक्षणिक अनुदानों तथा भूमि अनुदानों का वितरण करना था।
6.
क़ाज़ी-ए-सूबा
प्रान्त में प्रमुख
न्यायिक अधिकारी क़ाज़ी-ए-सूबा था। उसकी नियुक्ति सम्राट क़ाज़ी-उल–कुज़ात की संस्तुति
पर करता था। उसे दीवानी तथा फ़ौजदारी दोनों, तरह के मुकदमों का फैसला करने का
अधिकार था। वह मुसलमानों के वैवाहिक तथा सम्पति सम्बन्धी मुकदमों का भी फैसला करता
था।
7.
अन्य अफसर :
प्रांत के अन्य
अफसरों में पुलिस और जेल का प्रभारी कोतवाल, लोक नैतिकता
को देखने वाला मुहतसिब तथ्यों की जांच करने वाला मीर अदल तथा जल मार्गों की देख
रेख करने वाला मीर बहर प्रमुख था।
अकबर ने प्रांतीय
शासन पर अंकुश लगाने और अधिकारियों में संतुलन बनाये रखने की नीति अपनाई थी और
इसके लिए वह सदैव सतर्क दृष्टि और कड़ा नियंत्रण रखता था जिसकी वजह से उसका
प्रांतीय शासन सुचारू रूप से चला जो बाद के शासकों के काल में लापरवाही के कारण
भंग होने लगा।
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