मुगलों के आगमन ने सुल्तानों के द्वारा चलाई गई शासन पद्धति को शीघ्र ही नहीं बदला। प्रथम मुगल बादशाह बाबर के पास पुनर्निर्माण के लिए विचार करने का समय नहीं था। शेरशाह में ऐसा सामर्थ्य था, किंतु उसका राज्यकाल बहुत संक्षिप्त था। फिर भी, उसके सुधारों ने उत्तराधिकारियों का पथ प्रदर्शन किया है।
1.
बादशाह
:
उत्तर
भारत में सदियों तक मुस्लिम शासन के दौरान किए गए कारनामों से प्राप्त सबक के
अनुसार पुनर्निर्माण के कार्य का जिम्मा अकबर को मिला। शेरशाह ने सत्ता के
अधिकारों को सम्राट के हाथों में केंद्रित करने की बात पर जोर दिया था, अकबर
ने उसे अपनाया । अपने धर्मभीरु पूर्वजों की भांति अकबर ने भी यह माना कि
राज्यसत्ता ईश्वरीय देन है। उसके इतिहासकार अबुल फजल
का कथन है : 'बादशाहत ईश्वर की देन है और यह तब तक नहीं
प्रदत्त की जाती है, जब तक कि किसी एक व्यक्ति में कई हजार उत्तम
गुण एक साथ ही प्रगट न हो जाएं।' इस प्रकार बादशाह पृथ्वी पर ईश्वर की
छाया के रूप में प्रशासन का शीर्षस्थ बिंदु होता था। वह समग्र सैनिक और नागरिक
सत्ता का केंद्र था तथा सभी न्यायिक और कार्यपालक मामलों में अपील का उच्चतम
न्यायाधिकरण था।
2.
वजीर या प्रधानमंत्री :
सल्तनत
काल में बादशाह की सहायता के लिए 'वजीर'
या प्रधान मंत्री होता था।
वह सुल्तान के बहुत से अधिकारों तथा विशेषाधिकारों को हथिया लिया करता था और इस
प्रकार निरंतर सम्राट वजीर और अमीरों के मध्य कलह का कारण बनता था। अकबर ने 'पूर्ण
अधिकार संपन्न वजीर' का पद समाप्त कर दिया तथा अपने अधिकारों तथा
कार्यों को चार मंत्रियों में बांट दिया।
3.
दीवान या वित्तमंत्री :
दीवान
राजस्व तथा वित्त विभागों का प्रधान होता था। इब्न
हसन ने अपनी पुस्तक 'सेंट्रल स्ट्रक्चर आफ दि मुगल अंपायार' में
उसके अधिकार तथा कर्त्तव्यों के बारे में लिखा है
कि 'दीवान' की
नजर राज्य के ऐसे प्रत्येक अफसर पर होती थी जो अपना वेतन
जागीर से प्राप्त करता था। अपने राजस्व अधिकारों के अलावा, राज्य
के मुख्य कार्यकारी अफसर होने के नाते उसका नियंत्रण प्रान्तों तथा प्रांतीय
अफसरों पर भी था, जिसमें गवर्नर से लेकर 'अमील'
और 'पटवारी' तक
थे। वित्तमंत्री के रूप में उसे प्रत्येक ऐसी पाई (दाम) का
हिसाब मालूम रहता था, जो शाही खजाने में आई हो या निकाली जा
रही सरकार के तीनों विभागों में रहता था। वह 'सूबेदारों, फौजदारों, दीवानों, करोड़ियों, अमीनों, तहसीलदारों, खजांचियों' आदि
की नियुक्ति तथा तबादला भी करता था। निम्नलिखित अधिकारी इसकी सहायता करते थे (1)
दीवान-ए-खालसा, (2) दीवान-ए-तन अथवा दीवान-ए-तनख़ा, (3)
दीवान-ए-जागीर, (4) दीवान-एक-बयूतात, (5)
मदद-ए-माश तथा धर्म सम्वन्धी हिसाब,
(6) खजाना, (7)
मुशरिफ (प्रमुख लेखापाल), (8) मुस्तौफी (लेखा-परीक्षक)।
4.
मीर
बख्शी :
जैसा
कि इब्न हसन ने कहा है, 'सैनिक व्यवस्था के अनुसार सेनाओं में
भर्ती, किसी अफसर का ओहदा उसके द्वारा रखे गए सैनिकों
की संख्या के अनुपात में होना तथा उसके द्वारा वेतन प्राप्ति के लिए एक निश्चित संख्या
में घुड़सवार सैनिकों का एक अवधि पर प्रस्तुत किया जाना, ऐसी
बातें थीं जिससे वजीर और मीर बख्शी के उत्तरदायित्व और सम्मान में समकक्षता आ गई
थी। उसके विभाग का काम सभी श्रेणी के मनसबों की नियुक्ति कर आदेश जारी करना था।
राजधानी में प्रांतों से आने वाले सभी ऊंचे अफसर तथा दूसरे देशों से आए हुए
राजदूतों को वही बादशाह के सामने पेश करता था । राज संबंधी
गोपनीय और महत्वपूर्ण बातचीत में बादशाह के साथ उसके दरबार तथा निजी कमरे में भी
वह सदैव मौजूद रहता था । प्रांतों से वाकयानवीस अपनी गोपनीय रिपोर्ट उसके पास ही
भेजते थे, जिसे वह बादशाह को देता था। सैनिकों के आराम
के लिए जरूरी व्यवस्था करने का उत्तरदायित्व भी उसी का था।
5.
मीर
समन :
यह
बादशाह की घरेलू व्यवस्था, शाही इमारतों, सड़कों, बागों, भंडारों, कारखानों
और खरीद का प्रभारी मंत्री होता था । शाही घरेलू व्यवस्था का प्रभारी मंत्री होने
के नाते 'मीर समन'
की जिम्मेवारी शाही परिवार
के लिए जवाहरात से लेकर तोप और तलवार सब कुछ की व्यवस्था करने की थी। वह बादशाह के
अभियान के लिए भी जरूरी प्रबंध किया करता था। वह बादशाह की ओर से श्रेष्ठ
सेनापतियों और मनसबदारों, कलाकारों तथा विदेशी राजदूतों को दी जाने
वाली भेंट का चुनाव भी करता था। मीर समन कारखानों की देखरेख भी करता था, जहां
देश के गहने (जेवर) और अन्य विलास सामग्रियों का निर्माण होता था। ये कारखाने
राजधानी में तथा प्रांतों में भी स्थित थे । वह राज्य की ओर से सब प्रकार की खरीद
करता था, साथ ही राज्य में नमक, हाथी, जवाहरात
आदि के एकाधिकार से संबंधित बातों की देखरेख करता था। किसी अमीर की मृत्यु हो जाने
पर यह विभाग नियमानुसार उसकी जायदाद को अपने नियंत्रण में लेकर एक फेहरिश्त तैयार
करता था।
6.
सद्र
:
मुसलमान
न्यायवेत्ताओं के अनुसार सद्र प्रजा और बादशाह के बीच एक संपर्क सूत्र, 'शरा' का
निर्वाह करने वाला और उलेमा की और से प्रबोधक था । इस प्रकार सिद्धांत रूप में ही
सही, सद्र धार्मिक मामलों, खैरात
और धार्मिक संस्थाओं का निदेशक तथा न्याय विभाग का प्रधान होता था। वह राज्य में
शिक्षा से संबंधित मामलों की देखरेख भी करता था। किंतु वास्तविक रूप में ऐसा
प्रतीत होता है कि उसका अधिकार विद्वानों और जरूरतमंद लोगों को जागीर और वजीफा
देने तक सीमित था। फिर भी पक्षपात तथा सरकारी धन की गड़बड़ी के कई मामले बादशाह की
जानकारी में आए जिसके कारण अकबर को इस विभाग की देखभाल खुद करनी पड़ी। उसने वजीफा
देने संबंधी सद्र के अधिकारों को कम कर दिया तथा जो अनुदान दिए गए थे उसमें भी कमी
कर दी। बहुधा एक ही व्यक्ति काजी और सद्र दोनों का पद संभालता था। 'काजी
अल- कजात' के रूप में सद्र अपना दरबार लगाता और
न्यायपालिका के अफसरों की नियुक्ति के लिए सिफारिश करता और अपने विभाग के कामों का
निरीक्षण करता था। अकबर और औरंगजेब के समय में हम पाते हैं कि मुख्य काजी और सद्र
के पदों पर अलग-अलग व्यक्तियों की नियुक्ति की गई।
7.
मुहतसिब या लोक नैतिकता का जांचकर्ता
केंद्र
के अन्यमहत्वपूर्ण अफसरों में मुहतसिब या लोक नैतिकता का जांचकर्ता होता था।
नापतोल की जांच तथा मद्यपान और जुआ निषेध के अलावा वह यह भी देखता था कि मुसलमान
कुरान के अनुसार नमाज पढ़ना, रमजान में उपवास रखना, शराब
से परहेज करना जैसे धार्मिक आचरण रखते हैं या नहीं। औरंगजेब के राज्यकाल में
मुहतासिब के अधिकार काफी बढ़ गए थे। उसने धार्मिक नियमों के पालन में कड़ाई की थी, साथ
ही उसने बृहस्पतिवार को दरगाहों पर संगीत के साथ दिया जलाना, जीवों की शक्ल के
खिलौनों की बिक्री, धार्मिक नियमों में बताए गए आकार से अलग
प्रकार की दाढ़ी रखना इत्यादि की मनाही कर दी थी। उसके समय में मुहतसिब को
नवनिर्मित हिंदू मंदिरों को तोड कर गिरा देने का अतिरिक्त काम भी सौंप दिया गया
था।
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