मंगलवार, 14 मार्च 2023

मार्टिन लूथर की शिक्षायें

लूथर की शिक्षा बाइबिल पर विश्वास के साथ जुड़ी हुई है साथ ही अनजाने में ही सही लेकिन उसकी व्याख्याएं मध्यकालीन परम्परों के साथ जुड़ी हुई थी। इसका विद्रोह कैथोलिक संगठन और कर्मकांड के विरुद्ध था न कि कैथोलिक सिद्धांत के विरुद्ध था।

(1)      बाइबिल के मूल सिद्धांतों के साथ सहमति

लूथर के सिद्धान्त पवित्र वाइविल के नवीन संस्करण पर आधारित थे। उसने अनेक ऐसे नियम स्वीकार किए जो प्रत्यक्षतः पवित्र ग्रंथ द्वारा निषिद्ध नहीं थे। लूथर के सिद्धान्त 'ईश्वरीय प्रेम' पर आधारित थे उसने धर्म-शास्त्र की सत्ता को सर्वोच्च घोषित किया। उसने पूर्व-निश्चित भाग्य पर अधिक वल दिया।

(2)     ईश्वर की यहूदी धारणा पर ज़ोर

लूथर ईश्वर की यहूदी अवधारणा में विश्वास करता था। उसका ईश्वर दया और अनुग्रह की वाक्पटुता के साथ के साथ बदला लेने वाले के रूप में थी, उसका मानना था कि नाराज़ परमेश्वर ने लगभग सभी मानव जाति को बाढ़ में डुबो दिया था, और अपने क्रोध की सांस और अपने हाथ की लहर से भूमि, लोगों और साम्राज्यों को नष्ट कर दिया था। भगवान ने पुरुषों को उनके पापों के लिए दंडित करने के लिए जंगली जानवरों, कीड़े और दुष्ट महिलाओं को नियुक्त किया था। जब एक परेशान युवा धर्मशास्त्री ने उनसे पूछा कि दुनिया के निर्माण से पहले भगवान कहाँ थे, तो उत्तर दिया: "वह आपके जैसे अभिमानी, फड़फड़ाने वाले और जिज्ञासु आत्माओं के लिए नरक का निर्माण कर रहा था।"

(3)     स्वर्ग नर्क तथा शैतान की धारणा में विश्वास

यह स्वर्ग और नर्क में विश्वास करता था। उसने सुखों के स्वर्ग का वर्णन किया, जिसमें पालतू कुत्ते भी शामिल हैं, "कीमती पत्थरों की तरह चमकते हुए सुनहरे बालों के साथ" । उसने एक्विनास की तरह आत्मविश्वास के साथ देवदूतों के बारे में बात की जो शरीरहीन होते थे। उसने पृथ्वी पर भटकने वाले शैतानों की मध्यकालीन अवधारणा को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया, जो मनुष्यों के लिए प्रलोभन, पाप और दुर्भाग्य लाते हैं, और मनुष्य के लिए नरक में रास्ता आसान करते हैं। इसने जादू टोना को वास्तविकताओं के रूप में स्वीकार किया, और चुड़ैलों को जलाना एक साधारण ईसाई कर्तव्य समझा।

(4)     संस्कार पद्धति में संशोधन

मार्टिन लूथर ने कैथोलिक चर्च की संस्कार पद्धति की आलोचना करते हुए केवल जन्म (Baptism), प्रायश्चित (Penance) एवं पवित्र प्रसाद (Holy Eucharist) के संस्कारों को ही आवश्यक बताया।

(5)     पूजा पद्धति में परिवर्तन

 उसने पूजा की विधि में भी परिवर्तन करने का प्रयास किया। उस समय 'तत्वान्तरण'  विधि प्रचलित थी जिसमें रोटी पर शराव छिड़की जाती थी और ऐसा समझा जाता था कि धर्माचार्यों की विशेष शक्ति के कारण यह रोटी और शराब का ईसामसीह के शरीर और रक्त में परिवर्तन हो जाता है। लूथर ने इसका विरोध किया तथा एक दूसरे सिद्धान्त का प्रतिपादन किया जिसे 'द्वितत्ववाद' का नाम दिया गया। इसके अनुसार रोटी और शराब ईसामसीह के शरीर और रक्त में परिवर्तित नहीं होती वरन् उसमें एक अन्य तत्व मिश्रित हो जाता है। उसने कहा कि इस संस्कार-विधि में धर्म-गुरुओं की शक्ति का कोई प्रभाव नहीं होता ।

(6)     मोक्ष का साधन

ईश्वर ने उन ईसाइयों को जिन्हें अपने कार्यों के लिए सच्चा पश्चाताप होता है पहले ही क्षमा-दान दे देता है तथा उन्हें उन 'क्षमापत्रों'  को खरीदने की आवश्यकता नहीं है जो उन्हें लौकिक दण्डों से मुक्त कर सकते हैं। इस प्रकार उसने पोप तथा चर्च-संगठन का विरोध किया और यह कहा कि पोप को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। लूथर ने मोक्ष प्राप्ति के विषय में कहा कि यह 'सत्कर्म' द्वारा नहीं अपितु ईश्वर में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। सत्कर्म केवल इस ओर बढ़ने की सीढ़ी मात्र है। ईश्वर पर श्रद्धा रखकर ही कोई व्यक्ति वास्तविक ईसाई-जीवन व्यतीत कर सकता है।

(7)     पाप मुक्ति के लिए पश्चाताप

 उसने व्रत, तीर्थयात्रा और सन्तों की पूजा को अनावश्यक बताया उसने कहा कि मोक्ष केवल ईश्वर की दया पर निर्भर है जो ईश्वर की भक्ति द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। लूथर ने सेवा-धर्म को भी एक आवश्यक सिद्धान्त वताया। उसने कहा कि ईश्वर की कृपा पर विश्वास करते हुए अपने पड़ोसियो की सेवा करने से मोक्ष मिल सकता है।

(8)     वैराग्य की जगह गृहस्थ धर्म

लूथर ने वैराग्य को अमान्य घोषित करते हुए यह कहा कि धर्माचार्य भी विवाह कर जीवन व्यतीत कर सकते हैं। उसने स्वयं भी विवाह किया। मार्टिन लूथर ने कहा कि यह संसार भी ईश्वर का उतना ही है जितना कि स्वर्ग। इसलिए दैनिक कार्यों को करते हुए भी मनुष्य द्वारा आध्यात्मिक चिन्तन किया जा सकता है।

(9)     राष्ट्रीय चर्च की स्थापना पर जोर

उसने एक राष्ट्रीय-चर्च की स्थापना पर अधिक वल दिया। उसने पूजा-पाठ की विधियों की भाषा में भी परिवर्तन किया। पूजा-पाठ की भाषा लैटिन के स्थान पर अव जर्मन कर दी गयी तथा वाइविल का भी जर्मन भाषा में अनुवाद किया गया।

इस प्रकार लूथर के इन सिद्धान्तों की व्याख्या करते हुए निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि उसने मुख्यतः कैथोलिक चर्च से भ्रष्टाचार और अनाचार को दूर करने और बाइबिल की प्रमाणिकता को स्थापित करने करने के लिए ही उपर्युक्त सिद्धान्तों की व्याख्या की तथा 'क्षमापत्रों' की बिक्री का विरोध आरम्भ किया। हालांकि कुछ अवसरों पर लूथर पुनर्जागरण कालीन अन्य आलोचकों के समक्ष पश्चगामी नज़र आता है।

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