भारत
में राष्ट्रवाद 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में, ब्रिटिश साम्राज्यवादी
नीतियों के प्रत्युत्तर में शुरू हुआ। भारत में राष्ट्रीय भावना के विकास के लिए
स्वयं ब्रिटिश शासन ने आधार तैयार किया। इस राष्ट्र्रवाद के उदय के विभिन्न कारण
निम्नलिखित थे-
1.
औपनिवेशिक
अर्थ तंत्र की समीक्षा
अंग्रेजों
द्वारा भारत का आर्थिक शोषण राष्ट्रवाद की उत्पत्ति का
सर्वप्रमुख कारण माना जाता है। दादाभाई नौराजी ने "धन निष्कासन के
सिद्धान्त" को समझाकर अंग्रेजों के शोषण का खाका खींचा। अंग्रेजों की भारत
विरोधी आर्थिक नीति ने भारतीयों के मन में विदेशी राज्य के प्रति नफरत एवं स्वदेशी
राज्य के प्रति प्रेम को जगा दिया।
2.
आधुनिक
शिक्षा का प्रचलन
पाश्चात्य
शिक्षा एवं संस्कृति ने राष्ट्रवादी भावना जगाने में महत्वपूर्ण भमिका निभाई।
अंग्रेजों ने पाश्चात्य शिक्षा का प्रचलन ब्रिटिश प्रशासन के लिए
"क्लर्क" पैदा करने हेतु किया था,
परन्तु भारतीयों में बर्क, जेम्स
मिल, ग्लैडस्टन,
स्पेन्सर, रूसो, वाल्टेयर
आदि के विचारों ने स्वतंत्रता, राष्ट्रीयता तथा स्वशासन की भावनाएँ जगाने में
महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
3.
आधुनिक
समाचार पत्रों का उदय
आधुनिक
समाचार पत्रों एवं प्रेस का राष्ट्रीयता के उदय में महत्वपूर्ण योगदान है। भारत
में राजा राममोहन राय ने राष्ट्रीय प्रेस की नींव डाली। उन्होंने "संवाद
कौमुदी" (बंगाल) एवं मिरात-उल-अखबार (फारसी) जैसे समाचार पत्रों का सम्पादन
कर भारत में राजनीतिक जागरण की दिशा में प्रथम प्रयास किया। इसके अतिरिक्त बंगदूत, अमृत
बाजार पत्रिका, केसरी, हिन्दू,
पायनियर, मराठा, इण्डियन
मिरर आदि ने ब्रिटिश हुकूमत की गलत नीतियों की आलोचना कर भारतीयों में राष्ट्रवाद
की भावना जगायी ।
4.
राष्ट्रीय
साहित्य का प्रभाव
राष्ट्रीय
साहित्य भी राष्ट्रीयता की उत्पत्ति के लिए एक प्रमुख कारण है। आधुनिक खड़ी बोली
के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 1876 ई.) में लिखे अपने नाटक "भारत
दुर्दशा" में अंग्रेजों की भारत के प्रति आक्रामक नीति का उल्लेख किया। अन्य
भाषाओं- जैसे उर्दू में मोहम्मद हुसैन,
अल्ताफ हुसैन हाली, बंगाली
में बंकिम चन्द्र चटर्जी, मराठी में चिपलूणकर ; गुजराती
में नर्मद; तमिल में सुब्रह्मण्यम भारती आदि की रचनाओं में देश-प्रेम
की भावना मिलती है।
5.
तीव्र
परिवहन तथा संचार साधनों का विकास
रेल, डाक, तार
आदि संचार साधनों के विकास ने भी भारत में राष्ट्रीयता की जड़ों को मजबूत किया।
रेलवे ने इसमें मुख्य भूमिका का निर्वाह किया। कार्ल मार्क्स ने भी लिखा था कि
रेलवे राष्ट्रीयता के उत्थान में सहायक होगी। 1865 ई० में एडिसिन ने लिखा था "रेलवे भारत
के लिए वह कार्य कर देगी जो बड़े-बड़े वर्गों ने पहले कभी नहीं किया।"
6.
सामाजिक
एवं धार्मिक पुनर्जागरण
बौद्धिक
पुनर्जागरण ने राष्ट्रवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजा राममोहन राय, स्वामी
दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द आदि ने भारतीयों के अन्तर्मन को झकझोरा।
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कहा “स्वदेशी राज्य सर्वोपरि एवं सर्वोत्तम होता है।”
स्वामी रामतीर्थ ने कहा कि "मैं सशरीर भारत सारा भारत मेरा शरीर है
7.
शासकों
का प्रजातिगत अहंकार
इस
समय अंग्रेजों ने रंगभेद की नीति अपनाई,
जिसका शिक्षित भारतीयों
द्वारा विरोध किया गया। नौकरियों के सम्बन्ध में काले-गोरे का भेदभाव किया जाता
था। बहुत से सामाजिक क्लब केवल यूरोपियों के लिए होते थे, यहाँ
तक कि कानूनी अदालतों में भी यूरोपियों के समक्ष भारतीयों से अनुचित व्यवहार किया
जाता था। इस प्रकार उत्पन्न हुए वैमनस्य से भारतीयों में एकता उत्पन्न हुई।
8.
लार्ड
लिटन की प्रतिक्रियावादी नीतियाँ
लिटन
के प्रतिक्रियावादी कार्य जैसे दिल्ली दरबार,
वर्नाक्युलर प्रेस ऐक्ट, आर्म्स
ऐक्ट, I.C.S परीक्षा की आयु 21 वर्ष से घटाकर 19
वर्ष करना, द्वितीय आंग्ल-अफगान युद्ध आदि ने राष्ट्रीयता के उदय का
मार्ग प्रशस्त किया।
9.
इल्बर्ट
बिल विवाद
भारत
के सबसे लोकप्रिय वायय रिपन के समय में इल्बर्ट बिल पारित हुआ। इस बिल ने जानपद
सेवा के भारतीय जिला तथा सत्र न्यायाधीशों को वही शक्तियाँ तथा अधिकार देने का
प्रयत्न किया जो कि उनके यूरोपीय साथियों को मिले हुए थे। यूरोपीय लोगों की
प्रतिक्रिया इतनी कटु थी कि वायसराय को यह अधिनियम बदलना पड़ा। भारतीयों की इस
झगड़े में आंखें खुल गईं। उन्होंने देखा कि जहाँ यूरोपीय लोगों के विशेषाधिकार का
प्रश्न है, उन्हें न्याय नहीं मिल सकता।
संक्षेप
में, भारत के लोगों ने ब्रिटिश चुनौती का जवाब कई रूपों में दिया उसमें सशस्त्र
विद्रोह, समाज सुधार आंदोलन तथा एक अखिल भारतीय राष्ट्रवादी संगठन का निर्माण
समाहित था। उन लोगों ने एक राष्ट्रवादी आंदोलन संचालित किया जिसके माध्यम से भारत
1947 में आजाद हुआ।
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