शुक्रवार, 24 मार्च 2023

अलीगढ़ आन्दोलन और सैयद अहमद खां का योगदान

 

                  ईमान बेचने को तो तैयार हैं हम भी

                  लेकिन ख़रीद हो जो अलीगढ़ के भाव से 

                                                ---अकबर इलाहाबादी 

सैयद अहमद खां के मन पर पाश्चात्य ज्ञान का बहुत प्रभाव पड़ा था और वह इस ज्ञान को समस्त वास्तविक प्रगति का आधार मानते थे। उसके साथ ही सैयद अहमद खां ने यह भी स्पष्ट रूप से समझ लिया था कि वह कट्टरपंथी मुस्लिम धार्मिक दर्शन को छोड़ नहीं सकते थे क्योंकि मुसलमान लोग ऐसे व्यक्ति को कभी नेता स्वीकार नहीं करेंगे जब तक उसके विचार शुद्ध रूप से धर्म पर आधारित न हों। ऐसा लगता है कि शासकों के प्रति राजभक्ति सैयद अहमद के रक्त में थी। 1857 के विद्रोह के समय उन्होंने अपने यूरोपीय स्वामियों के प्रति अपनी राजभक्ति का विशेष प्रमाण दिया। 1869 में सैयद अहमद खां इंग्लैण्ड गये, वहां उन्होंने महारानी विक्टोरिया से भेंट की। जब वह भारत लौटे तो उन्होंने यह निश्चय कर लिया था कि वह भारतीय मुसलमानों के पुनरुत्थान के लिये प्रयत्न करेंगे।

                अलीगढ़ आंदोलन

1870 में उनके इंग्लैण्ड से लौटने पर सैयद अहमद खां ने भारतीय मुसलमानों के पुनरुद्धार के लिये एक निश्चित योजना बनायी जिसको प्रायः अलीगढ़ आन्दोलन का नाम दिया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य यह था कि भारतीय मुसलमानों का आधुनिकीकरण किया जाय। उनका उद्देश्य यह भी था कि मुसलमान एक समाज के रूप में भी भारत के धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक जीवन में एक प्रमुख भूमिका निभायें जैसा कि उनके पूर्वज पुराने समय में किया करते थे। इस उद्देश्य को व्यवहार में लाने के लिये उनकी योजना यह थी कि, पाश्चात्य शिक्षा और सभ्यता का ज्ञान कराया जाये तथा मुस्लिम धर्म, दर्शन, इतिहास तथा संस्कृति भी पढ़ाई जाये। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये सरकारी संरक्षण बहुत सहायक सिद्ध हो सकता था और इसीलिये उन्होंने अंग्रेजी प्रशासकों के प्रति राजभक्ति पर बहुत बल दिया।

                आन्दोलन का शैक्षणिक पक्ष

अलीगढ़ में कॉलेज

बहुत ही सोच-विचार के उपरान्त यह योजना बनायी गयी कि मुसलमान लड़कों के लिए 'मोहमेडन ऐंग्लो-ओरिएन्टल कालेज' खोला जाए। संस्था के लिए स्थान के चयन के विषय में अलीगढ़ चुना गया क्योंकि एक तो उसका नाम 'अली का गढ़' था और दूसरे यह कि वह उर्दू भाषा बोलने वाले क्षेत्र के मध्य में था और आसपास के जिलों में मुसलमानों की एक बहुत बड़ी संख्या रहती थी। इसके अतिरिक्त यह भी आशा थी कि आसपास के मुस्लिम अभिजात वर्ग के लोग उदार मन से सहायता करेंगे।

अलीगढ़ कालेज मुस्लिम विशिष्ट वर्ग के लिए ही शिक्षा का केन्द्र था न कि जनसाधारण के लिए। यहां जो शिक्षा दी जाती थी वह उस शिक्षा से भिन्न प्रकार की थी जो अन्य स्थानों पर मिलती थी। कालेज का उद्देश्य यह नहीं था कि वह विद्वान और किताबी कीड़ो को उत्पन्न करे जो केवल ज्ञान के प्रति समर्पित हों अतएव परीक्षा देना एक गौण महत्व की बात थी जैसा कि पहले प्रिंसिपल श्री बैक ने कहा था, "परीक्षा पास करना आपकी शिक्षा का मुख्य उद्देश्य नहीं है, इसको आप आवश्यक समझिए परन्तु एक अप्रिय आवश्यकता ।”

उद्देश्य

1.   अंग्रेजों के लिए उपयोगी प्रजा तैयार करना

मई 1875 में 'मोहमेडन ऐंग्लो-ओरिएन्टल कालेज' एक प्राथमिक पाठशाला के रूप में प्रारम्भ किया गया। उसी वर्ष भारतीय जानपद सेवा की प्रतियोगिता के लिए एक प्रशिक्षण केन्द्र भी खोल दिया गया। इस कालेज का विधिवत् आधारशिला समारोह 8 जनवरी, 1877 को लार्ड लिटन ने किया था। कालेज समिति के अध्यक्ष ने लार्ड लिटन को दिए गए स्वागत भाषण में भारत में अंग्रेजी राज्य के वरदान की बात कही और ऐसी शिक्षा प्रणाली की ओर ध्यान आकर्षित किया था जो मुसलमानों को अंग्रेजों की उपयोगी प्रजा बना सकें।

2.  मुस्लिम समाज के लिए भावी नेता पैदा करना

अलीगढ़ कॉलेज का उद्देश्य यह था कि वह मुस्लिम समाज के भावी नेता पैदा करे। कॉलेज का उद्देश्य यह था कि वह मुस्लिम यवकों में एकता की भावना पैदा करें और उन्हें इस देश में उनकी ऐतिहासिक भूमिका के प्रति जाग्रत करे। इसके विद्यार्थियों से यह आशा की जाती थी कि वे नवीन विचार प्राप्त करें और फिर इन नवीन विचारों को मुसलमान जनता में शिक्षा द्वारा फैलायें ।

3.  मुस्लिम पहचान और भाईचारे का निर्माण करना

अलीगढ़ कालेज के विद्यार्थियों से यह आशा की जाती थी कि वे एक भ्रातृभाव की विशेष भावना उत्पन्न करें, और अलीगढ़ के विद्यार्थी कुछ विशेष तत्व उत्पन्न कर लेते थे और कोई भी आकस्मिक रूप से देखने वाला इन विद्यार्थियों को अन्य विद्यार्थियों से अलग कर सकता था क्योंकि अपनी विशेष वेश-भूषा, आचार-विचार तथा भाषा सभी से ये लोग अलग किए जा सकते थे।

                   आन्दोलन का राजनीतिक पक्ष

1.    राजनीतिक आन्दोलन का केन्द्रबिन्दु

यद्यपि यह शैक्षणिक संस्था थी परन्तु सैयद अहमद के मन में राजनीतिक प्रश्न सबसे प्रमुख थे। अलीगढ़ कालेज शीघ्र ही मुसलमानों में एक नवीन राजनीतिक आन्दोलन का केन्द्रबिन्दु बन गया। यहां तक कि लार्ड कर्जन ने भी सैयद अहमद को उसकी राजनीतिक दूरदर्शिता के लिए बधाई दी क्योंकि कर्जन के अनुसार मुसलमान शिक्षा के द्वारा ही वे अस्त्रशस्त्र प्राप्त कर सकेंगे जो उन्हें, “भारत में अपनी खोई हुई प्रभुसत्ता के एक अंश को पुनः प्राप्त करने में सहायता देंगे ।"

2.   राज-द्रोह के काले धब्बे को मिटाना  

सैयद अहमद का उद्देश्य यह था कि वह मुसलमानों पर 1857 में लगे राज- द्रोह के काले धब्बे को मिटा दे । संयद अहमद के किए गए लगातार प्रयत्नों का यह फल हुआ कि अंग्रेजों के रुख में स्पष्ट परिवर्तन आया । यह W. W. Hunter की प्रसिद्ध पुस्तक 'इण्डियन मुसलमान्ज' जो 1876 में छपी, में स्पष्ट देखने को मिलता है क्योंकि इसमें मुसलमानों की राजभक्ति के प्रति सहानुभूतिपूर्ण नीति अपनाई गई है।

3.   अंग्रेजों का पक्ष लेना

सैयद अहमद ने रूस- तुर्की-युद्ध (1877-78), आंग्ल-अफगान युद्ध (1878-80), आंग्ल-मिश्री युद्ध (1882) और सूडान के मेहदी के विद्रोह में अंग्रेजों के पक्ष का समर्थन किया। उनके प्रयत्न सफल हुए और उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेजों के सच्चे राजभक्त के रूप में परिवर्तित कर दिया। इसके प्रति सरकारी प्रतिक्रिया भी बहुत अच्छी रही । प्रायः यह समझा जाता था कि अलीगढ़ का व्यक्ति अंग्रेजों का विश्वासपात्र है।

4.   अलगाव वाद तथा मुस्लिम साम्प्रदायिकता

सैयद अहमद के ये शब्द प्रायः उद्धृत किए जाते हैं। “हिन्दू तथा मुसलमान एक सुन्दर वधू अर्थात् भारत की, दो आंखें हैं।" इन जैसे शब्दों पर अपना मत व्यक्त हुए एम० एस० जैन टिप्पणी करते हैं: "सर सैयद की हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात पीढ़ियों तक स्वार्थी दलों ने कही है।" दूसरी ओर मोनी शाकिर यह कहते हैं कि हिन्दी-उर्दू के झगड़े के कारण जो 1867 में आरम्भ हुआ, उनके विचारों में परिवर्तन आया और वह साम्प्रदायवाद की ओर झुक गए। श्री एम० एस० जैन जिन्होंने अलीगढ़ आन्दोलन का विशेष अध्ययन किया है, यह विश्वास करते हैं कि आरम्भ से ही यह एक अलगाववादी आन्दोलन था। वह भारतीय मुसलमानों के लिए हिन्दूओं से भिन्न एक अलग हैसियत मांगते थे।

5.   कांग्रेस का विरोध

सैयद अहमद खाँ तथा अलीगढ़ आन्दोलन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस तथा उसके उद्देश्यों के प्रति आरम्भ से ही एक विशिष्ट शत्रुता दिखलाई। सैयद अहमद ने कहा कि भारत एक राष्ट्र नहीं है, न ही कांग्रेस 'राष्ट्रीय' है और कहा कि यह तो मुस्लिम समाज के विरुद्ध विशेषतः, तथा भारत के हितों के विरुद्ध सामान्यतः, कार्य कर रही है । उन्होंने यह कहा कि कांग्रेस एक हिन्दू संस्था है, जो हिन्दुओं ने बनाई है और जिसका उद्देश्य मुसलमानों के हितों के मूल्य पर हिन्दू समाज के हितों को बढ़ावा देना है। सैयद अहमद के अनुसार वास्तव में " कांग्रेस एक शस्त्ररहित गृह- युद्ध है।” उन्होंने 1888 में एक संयुक्त भारतीय राजभक्त सभा (United Patriotic Association) बनाई।  

                अलीगढ़ आन्दोलन का भारतीय राजनीति पर प्रभाव

आर० साईमन्ड्स (R. Symonds) के अनुसार, अलीगढ़ आन्दोलन चार आधारभूत तत्वों पर आधारित था :

1.     हिन्दू तथा मुसलमान दो अलग राजनीतिक सत्ताएं ( entities) हैं।

2.    लोकतन्त्र के नियमों पर आधारित प्रतिनिधि संस्थाओं की स्थापना से मुसलमानों को हानि होगी।

3.    मुसलमानों का हित इसी में है कि भारत में अंग्रेजी सत्ता बनी रहे।

4.    मुसलमानों को राजनीति से अलग ही रहना चाहिए सिवाय इसके कि जब कभी हिन्दुओं के आन्दोलन से होने वाली शरारत को नकारना हो ।

के० एम० पणिक्कर के अनुसार सैयद अहमद तथा अलीगढ़ आन्दोलन ने मुसलमानों का महत्व तथा प्रभाव बढ़ा दिया। श्री एम० एस० जैन इससे एक चरण आगे जाकर कहते हैं कि सैयद अहमद ने मुसलमानों को धर्म के आधार पर एक राष्ट्र में संगठित कर दिया और उन्हें एक अलग विचारधारा दे दी और यह कि अलीगढ़ के विद्यार्थियों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रतिक्रियावादी तथा राष्ट्रविरोधी भूमिका निभाई। कोई इन अतिशयोक्तियों से सहमत हो अथवा न हो, परन्तु यह सत्य है कि अलीगढ़ आन्दोलन, भारत के कोने-कोने में मुस्लिम आन्दोलन का सूत्रधार बना और इसने भारतीय राजनीति में अलगाववादी शक्तियों को बढ़ावा दिया।

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